छत्तीसगढ़ राज्य की अनोखी परंपरा है-भोजली, अच्छी फसल से लेकर दोस्ती तक का प्रतीक: भोजली तिहार
रायपुर।कोई भी राज्य हो उसकी सार्थक पहचान उनकी संस्कृति से होती हैं। इसमें हमारा राज्य छत्तीसगढ़ देश का एक ऐसा राज्य हैं; जहॉ मुख्य फसल धान है; जिसके कारण इसे ”धान का कटोरा” कहा जाता है। भारत वर्ष के अनेक राज्यों में विभिन्न लोक पर्व व त्यौहार मनाए जाते हैं। ऐसा ही छत्तीसगढ़ राज्य में एक खास लोक परंपरा व त्यौहार है- भोजली तिहार। ज्ञातव्य हो कि छत्तीसगढ़ में राखी के दूसरे दिन भोजली तिहार के दिन ”मितान” बनाने की परंपरा है अर्थात छत्तीसगढ़ में ”मित्रता दिवस”रक्षा बंधन के दूसरे दिन को माना जाता है। आपको बताते चले कि छत्तीसगढ़ में मित्रता के लिए कई पावन नाम व परंपरा भी है जैसे- गंगाजल, भोजली, जंवारा, महाप्रसाद, गजामूंग, तुलसीदल, गोदना, गिंयाँ इत्यादि।
भोजली तिहार कब मनाया जाता हैं?
भोजली तिहार भाद्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन मनाया जाता है अर्थात् अर्थात भोजली त्यौहार हर साल रक्षा बंधन के दूसरे दिन को माना जाता है।
भोजली क्या है?:-
भोजली गेहूं /ज्वार के बीज को भिगोकर बांस के एक टोकरी में मिट्टी और खाद डाल कर उसमे गेहूं बीज को डाला जाता है। इस भोजली को घर के अंदर छांव में रखा जाता है जो पॉच से छः दिनों में गेहूं से पौधे (भोजली) निकलकर बड़े हो जाते हैं। गेहूं से पौधे जो अंदर छांव में तैयार किया जाता है; उसे ही छत्तीसगढ़ी में भोजली कहते है। कई ग्रामीण इलाकों में रक्षाबंधन की पूजा में इसको भी पूजा जाता है और भोजली के कुछ हरे पौधे भाई को दिए जाते है या उसके कान में लगाने का रिवाज है।
भोजली उगाने की तैयारी कैसे किया जाता हैं?
माह भाद्र पद्वा की शुक्ल अमावस्या तक खेतों में धान की बुआई व प्रारंभिक निराई-गुडाई का काम समापन की ओर होता है। किसानों की लड़कियाँ अच्छी वर्षा एवं भरपूर भंडार देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्मक रूप से भोजली का आयोजन करती हैं। इस भोजली को पहले नागपंचमी के दिन कुवारी मिट्टी लाकर बोया जाता था, लेकिन अब इसे पंचमी से लेकर नवमी तिथि तक बोया जाता है। जिस टोकरी या गमले में ये दाने बोए जाते हैं; उसे घर के किसी पवित्र स्थान एवं छायादार जगह में स्थापित किया जाता है तथा उनमें रोज़ पानी देते हुए देखभाल की जाती है; जिससे गेंहू के दाने धीरे-धीरे पौधे बनकर बढ़ते हैं, महिलाएं इस पौधे (भोजली) को देवी के समान मानकर पूजा करती है। जिस प्रकार देवी-गीतों को गाकर जवांरा – जस – सेवा गीत गाया जाता है; ठीक वैसे ही भोजली दाई (देवी) के सम्मान में भोजली सेवा गीत गाए जाते हैं। सावन की पूर्णिमा तक इनमें 4 से 6 इंच तक के पौधे निकल आते हैं। सामूहिक स्वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्तीसगढ की शान हैं। इसके बाद इसे रक्षा बंधन तक विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। भोजली को लगाने के बाद इसमें हल्दी पानी का भी छिड़काव किया जाता है।
भोजली तिहार कैसे मनाया जाता हैं?
भोजली का त्यौहार सिर्फ मित्रता का ही उत्सव नहीं है, बल्कि नई फसल की कामना के लिए गांवों में यह त्यौहार मनाया जाता है। भोजली को नई फ़सल की प्रतीक भी मानते है। छत्तीसगढ़ में मनाया जाने वाला भोजली त्यौहार के दिन महिलाएं और कुंआरी कन्याएं भोजली को लेकर पांपरिक गीत गाते हुए तालाब में विसंर्जन के लिए जाती है; इन्हें भोजली गीत कहते हैं और ये कुछ इस तरह से होते हैं:-
देवी गंगा! देवी गंगा!! लहर तिरंगा!!!
हमरो भोजली दाई के, भिगे आठों अंगा!!!
आहो देवी गंगा…..
भोजली विसर्जन के समय लोग उत्साह से गाते और बाजे बजाते हुए गांव के मुख्य गलियों से होते हुए तालाब में जाते है। सभी पारंपरिक रस्मों के साथ युवक, महिलाएं और युवतियों द्वारा भोजली की टोकरियां सिर पर रखकर नदी या तालाब किनारे भोजली गीत गाते हुए नारियल फोड़कर भोजली को नदी में विसर्जित किया जाता है। भोजली को नदी, तालाब और सागर में विसर्जित करते हुए अच्छी फ़सल की कामना की जाती है। भोजली विसर्जन के बाद इसके ऊपरी हिस्से को बचा कर रख लिया जाता है; जिसे लोग एक-दूसरे के कानों में खोंचकर भोजली, गियां, मितान, सखी, महाप्रसाद, दोनापान बदते हैं। कान में भोजली खोंचकर मितानी के अटूट बंधन में बंधने का पर्व भोजली तिहार मनाया जाता है। इस प्रकार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में भोजली को कान में लगाकर मित्र बनाए जाते हैं और इस मित्रता को जीवन भर निभाया जाता है। इसके बाद, सभी को प्रसाद दिया जाता है और फिर लोग अपने-अपने घर लौट जाते हैं।
भोजली पर्व को छत्तीसगढ़ लोगों के लिए बहुत अहम माना जाता है। राज्य के अधिकतर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं एक- दूसरे को भोजली का दूब भेंट कर जीवन भर मित्रता का धर्म निभाने का संकल्प लेती हैं। भोजली तिहार को ब्रज और उसके निकटवर्ती प्रान्तों में इसे भुजरियाँ कहते हैं। कई स्थानों में इसे कजलियॉ, फुलरिया, धुधिया, धैंगा और जवारा (मालवा) या भोजली भी कहते हैं। यह ऐसा त्यौहार है जो मित्रता के रिस्ते को और प्रगाण बनाया जाता है। इस दिन को छत्तीसगढ़ राज्य में मितान दिवस / मित्रता दिवस कहे तो ज्यादा प्रासंगिक होगा। इस प्रकार छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक वैभव के प्रतीक भोजली पर्व की अपनी अलग महत्ता है।
– डॉ. जीतेन्द्र सिंगरौल,
तथागत बुद्ध चौक, मोछ (तखतपुर),
जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 495003
मोबाईल-9425522629,
About The Author




For the reason that the admin of this site is working, no uncertainty very quickly it will be renowned, due to its quality contents.
Konular mükemmel olduğu gibi site teması da içeriğe müthiş uyum sağlamış. Tebrikler
Are there community issues in the area?
bayrampaşa çiçekçi