पुरी शंकराचार्यजी का तीन दिवसीय न्यायधानी आगमन 30 सितम्बर को

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अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

बिलासपुर – हिन्दू राष्ट्र निर्माण प्रणेता एवं विश्व मानवता के रक्षक तथा हिन्दुओं के सार्वभौम धर्मगुरु श्रीगोवर्द्धनमठ पुरी पीठ ओड़िसा के 145 वें श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज का अंबिकापुर एक्सप्रेस द्वारा कल 30 सितम्बर सोमवार को प्रात: लगभग साढ़े छह बजे न्यायधानी माता शबरी की नगरी बिलासपुर के उसलापुर रेलवे स्टेशन पर मंगलमय पदार्पण हो रहा है। रेलवे स्टेशन पर श्रीशंकराचार्य स्वागत एवं सेवा समिति तथा शिष्यों द्वारा नगरवासियों की ओर से वैदिक परम्परा अनुरुप भव्य एवं आत्मीय स्वागत किया जायेगा। इसके पश्चात पूज्य शंकराचार्यजी निवासस्थल , अशोक वाटिका , अशोक नगर, बिरकोना रोड प्रस्थान करेंगे जहां पर उनका 02 अक्टूबर के दोपहर तक प्रवास कार्यक्रम निर्धारित है। गौरतलब है कि पूज्य पुरी शंकराचार्यजी प्रति वर्ष गुरुपूर्णिमा के पश्चात श्रीगोवर्द्धनमठ पुरी में चातुर्मास्य व्यतीत करते हैं , तत्पश्चात उनका राष्ट्रोत्कर्ष अभियान अंतर्गत राष्ट्रव्यापी प्रवास निर्धारित रहता है। बिलासपुर वासियों का यह परम सौभाग्य है कि पितृपक्ष में पहली बार श्री शंकराचार्यजी का नगर आगमन हो रहा है।

इस कार्यक्रम के तहत 30 सितम्बर एवं 01 अक्टूबर को प्रात:कालीन सत्र में दोपहर बारह बजे से दो बजे तक दर्शन – दीक्षा और हिन्दू राष्ट्र संगोष्ठी आयोजित है , जिसमें उपस्थित सनातनी भक्त वृन्द धर्म – राष्ट्र और आध्यात्म से संबंधित जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। वहीं सायंकालीन सत्र में पांच बजे से सात बजे तक पुन: दर्शन एवं श्रीशंकराचार्यजी के श्रीमुख से आध्यात्मिक संदेश श्रवण का सुअवसर सुलभ रहेगा। आगमन दिवस 30 सितम्बर को ही अपरान्ह लगभग डेढ़ बजे पत्रकार वार्ता आयोजित की गयी है। इसी कड़ी में 02 अक्टूबर को अपरान्ह दो बजे उसलापुर रेलवे स्टेशन से रेलमार्ग से दुर्ग उधमपुर एक्सप्रेस से आगरा प्रस्थान के पूर्व श्रीशंकराचार्यजी का बारह बजे निवासस्थल पर दर्शन सुलभ रहेगा तथा महाराजश्री एक बजे अशोकवाटिका से उसलापुर के लिये प्रस्थान करेंगे।

धर्मसंघ पीठपरिषद् , आदित्यवाहिनी – आनन्दवाहिनी संगठन ने पुरी शंकराचार्यजी के बिलासपुर आगमन के शुभ अवसर पर उपरोक्तानुसार प्रात:कालीन एवं सायं के सत्र में उपस्थित रहकर दर्शन तथा आध्यात्मिक संदेश श्रवण का लाभ लेने की सभी नगरवासी / क्षेत्र के लोगों से अपील की है। इसकी जानकारी श्रीसुदर्शन संस्थानम् , पुरी शंकराचार्य आश्रम / मीडिया प्रभारी अरविन्द तिवारी ने दी।

विश्व मानवता के एकमात्र रक्षक हैं पूज्यपाद पुरी शंकराचार्यजी

वर्तमान संक्रमण काल में एकमात्र ज्योतिपुंज पुरी शंकराचार्यजी ही हैं जिनके मार्गदर्शन से सम्पूर्ण विश्व में मानवता की रक्षा हो सकती है। यह ध्रुव सत्य है कि सतयुग से आज तक वही शासक सफल रहा है जिसने मान्य आचार्य का संरक्षण एवं मार्गदर्शन प्राप्त किया। वर्तमान यांत्रिक युग में जिस प्रकार विकास को परिभाषित किया जा रहा है उससे विकास के स्थान पर विनाश ही परिलक्षित हो रहा है। महाराजश्री उद्घृत करते हैं कि शास्त्र सम्मत नीतियों के क्रियान्वयन की विधा भी यदि शास्त्र अनुकुल हो तभी सफलता की आशा की जा सकती है। वर्तमान कम्यूटर , मोबाईल , परमाणु बम के युग में भी हमारा सनातन सिद्धान्त सर्वोच्च ही नहीं बल्कि सर्वोत्कृष्ट भी है। सभी मानव के पूर्वज सनातनी वैदिक आर्य हिन्दू ही सिद्ध होते हैं और इस कल्प में लगभग 02 अरब पूर्व सृष्टि संरचना के साथ ही सनातन सिद्धांत का भी प्रादुर्भाव हुआ है। हमारा कर्तव्य बनता है कि वैदिक शास्त्रों में मौजूद गूढ़ तथ्यों को यदि समझने की हमारी क्षमता नहीं है और कोई मनीषी अपने एक – सवा घंटे के आध्यात्मिक संदेश में उन वैदिक सिद्धान्तों को जनसामान्य के लिये सरलतम शब्दों में परिभाषित करें ऐसे एकमात्र मनीषी पुरी पीठ के वर्तमान 145 वें शंकराचार्य स्वामीश्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज हैं जो सनातन संस्कृति संरक्षणार्थ तथा रामराज्य समन्वित हिन्दू राष्ट्र निर्माण की उद्घोष के साथ निरन्तर राष्ट्र व्यापी प्रवास पर रहकर हिन्दुओं को कर्तव्य बोध कराते हुये जनचेतना जागृत कर रहे हैं।

महाराजश्री छोटे – छोटे सूत्रों के माध्यम से समझाते हैं कि यदि प्रत्येक हिन्दू परिवार से प्रतिदिन एक रूपया अर्थ दान तथा सेवा प्रकल्प के रूप में एक घंटा श्रमदान प्राप्त कर उसका सदुपयोग अपने क्षेत्र में स्थित मठ – मन्दिर को केन्द्र बनाकर उस क्षेत्र को समृद्ध ,स्वालम्बी बनाने का प्रयत्न करे तथा संगठन से प्राप्त श्रम , अर्थ तथा तकनीक का समन्वय होतो क्षेत्र की अस्सी प्रतिशत समस्या का निराकरण बिना शासन की सहायता से हो सकता है , सोलह प्रतिशत का निराकरण राज्य शासन के आधीन तथ शेष चार प्रतिशत बड़ी परियोजनायें ही केन्द्र शासन द्वारा संचालित हों तो लोगों की शासन पर निर्भरता कम होगी। शास्त्र सम्मत राजनीति को परिभाषित करते हुये महाराजश्री उद्घृत करते हैं कि धर्म नियन्त्रित , पक्षपात विहीन , शोषण विनिर्मुक्त , सर्वहितप्रद शासनतन्त्र की स्थापना ही राजनीति का मूलमन्त्र होना चाहिये। यूट्यूब पर उपलब्ध सनातन सिद्धांत पर आधारित उनके आध्यात्मिक संदेश को श्रवण – मनन कर भी हम सब सनातन जीवन पद्धति को अपना सकते हैं।

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