मैक्सिकन बीटल खत्म करेगा गाजर घास

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भुवन वर्मा, बिलासपुर 10 मई 2020

टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन बिलासपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ आर के एस तोमर को रिसर्च में मिली यह सफलता

बिलासपुर। कुदरत का करिश्मा। गाजर घास उन्मूलन के लिए ना तो केमिकल की छिड़काव की जरूरत पड़ेगी और ना जड़ सहित उखाड़ने की बेकार की मेहनत करनी पड़ेगी। यह काम पूरी तरह प्राकृतिक तरीके से किया जाएगा और इस काम होने मदद करेगा एक कीड़ा जिसे “मैक्सिकन बीटल” के नाम से जाना जाता है। अनुसंधान में मिली सफलता के बाद इसके उपयोग के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र को रिपोर्ट भेज कर अनुमति का इंतजार किया जा रहा है।

टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन बिलासपुर नाम है उस अनुसंधान केंद्र का जहां गाजर घास के प्राकृतिक रूप से उन्मूलन के लिए अनुसंधान किया गया। डॉ आर के एस तोमर नाम है उस प्रमुख कृषि वैज्ञानिक जिन्होंने कई अनुसंधान के बाद मैक्सिकन बीटल नामक कीड़े को व्यापक समस्या के निदान के लिए उपयुक्त पाया। रिसर्च के बाद मिली सफलता की रिपोर्ट भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के पास भेजी जा चुकी है जहां से इस पर तेजी से काम करने की अनुमति का इंतजार किया जा रहा है। इसके बाद इस कीड़े की एक बड़ी खेप गाजर घास से प्रभावित क्षेत्र में छोड़ी जाएगी और नष्ट किया जा सकेगा इस सबसे तेजी से फैलने वाली खरपतवार को जिसने कई तरह की स्वास्थ्यगत समस्या को जन्म दिया है।


क्या है मैक्सिकन बीटल
मैक्सिकन बीटल एक प्रकार का कीट है जिसका जिसका वैज्ञानिक नाम जाइकोग्रामा बैकोलोराटा हैं। यह गाजर घास में ही प्रजनन करता है और इसके अलावा तेजी से गाजर घास की पत्तियों को खाते हैं यानी प्रजनन और गाजर घास उन्मूलन का काम समान रूप से चलता है। इस तरह गाजर घास को प्राकृतिक रूप से खत्म करने की क्षमता केवल मैक्सिकन बीटल पर ही पाई गई है।


ऐसे काम करेगा मैक्सिकन बीटल
मैक्सिकन बीटल ऐसा कीड़ा है जिसका प्रजनन काल जुलाई और अगस्त माह का महीना माना गया है। इस कीड़े को गाजर घास की पत्तियों पर रख दिया जाता है। सप्ताह भर के भीतर पौधे की एक-एक पत्तियां ना केवल यह खा जाता है बल्कि उस पौधे का जीवन चक्र भी समाप्त कर देता है। इस काल में पौधे में नए बीज नहीं बन पाते। इस तरह नए पौधों की संभावना पूरी तरह खत्म हो जाती है।


क्या है गाजर घास
1950 के दशक में अमेरिका से भारत को गेहूं निर्यात में गाजर घास के बीज उसके साथ भारत आए। सबसे पहले इसे 1955 में महाराष्ट्र के पुणे में देखा गया। एक से 2 मीटर ऊंचाई वाले गाजर घास का एक पौधा 10 से 25000 बीज बना सकने में सक्षम है। जो हर प्रकार की जलवायु में तेजी से पनपता है और अपना असर दिखाता है याने इसका जीवन चक्र पूरे शहर सकरी रहता है।


नुकसान गाजर घास
मानव और पशु दोनों के लिए हर हाल में नुकसान दे है गाजर घास। भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के निर्देशन में जबलपुर के खरपतवार विज्ञान अनुसंधान केंद्र के रिसर्च में गाजर घास में सेस्क्यूटरयिन लैक्टॉन नामक जहरीला पदार्थ का होना पाया गया है। यह अपने क्षेत्र की हर फसल को 40 से 45% तक नुकसान पहुंचाता है। घास समझ कर खाए जाने से दुधारू मवेशियों में दुग्ध उत्पादन क्षमता 40% तक कम हो जाती है। इसके परागकण हवा में हमेशा सक्रिय रहते हैं इसी की वजह से मानव संपर्क में आने के बाद अस्थमा चर्म रोग जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं।


देश में फैलाव क्षेत्र
दक्षिण मध्य अमेरिका का मुख्य खरपतवार गाजर घास 1950 में गेहूं के साथ भारत पहुंचा। 1955 में इसे पहली बार महाराष्ट्र के पुणे में देखा गया। नुकसान की आशंका पर कर्नाटक के बेंगलुरु में पहला रिसर्च हुआ। किसी कारणवश इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया और देखते ही देखते 2012 तक यह देश के 350 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैल चुका था। नुकसान की बढ़ती शिकायत के बाद पहली बार इस पर रिसर्च हुआ। उसके बाद देश के हर कृषि विश्वविद्यालय में इस पर काम करने का फैसला लिया गया। अब इसे खत्म करने की प्राकृतिक विधि मैक्सिकन बीटल के रूप में उपलब्ध हो चुकी है।

” गाजर घास के प्राकृतिक उन्मूलन के लिए मैक्सिकन बीटल को इसकी पत्तियों पर छोड़ा जाता है। इस पर किया गया अनुसंधान सफल रहा है। रिसर्च की रिपोर्ट भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र को भेज दी गई है, अनुमति का इंतजार है ” – डॉ आर के एस तोमर, प्रमुख वैज्ञानिक
टीसीबी कॉलेज ऑफ एग्री एंड रिसर्च स्टेशन बिलासपुर।

विशेष संवाददाता – भूपेंद्र वर्मा भाठापारा की रपट

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