भारत के शासनतंत्र और जनमानस को पुरी शंकराचार्य ने दिया संदेश
भुवन वर्मा, बिलासपुर 16 अप्रैल 2020
जगन्नाथपुरी– प्राप्त विभीषिका ने स्वस्थ मस्तिष्क से विकास की वर्तमान परिभाषा और उसके क्रियान्वयन की भौतिकी विधा पर विचार करनेकी परिस्थिति समुत्पन्न कर दी है। प्रकृति परमेश्वर की शक्ति है। उसकी अभिव्यक्ति आकाश, वायु, तेज, जल तथा पृथिवी उसके परिकर हैं। इनमें विकृति विप्लव है। इन्हीं का सङ्घात हमारा जीवन है। बाह्य विकृति हमारे जीवन की विकृति में हेतु है। हमारे जीवन की विकृति बाह्य जगत् की विकृति में हेतु है। प्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्ति के विघातक बहिर्मुख जीवन की संरचना विकास नहीं, विनाश है। अतः प्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्ति के पोषक प्रकल्पों का क्रियान्वयन अपेक्षित है। तदर्थ महायन्त्रों के प्रचुर आविष्कार और प्रयोग को प्रतिबन्धित, श्रमजीवी और बुद्धिजीवी की विभाजक रेख को विगलित करने की आवश्यकता है।तद्वत् परिश्रम और परस्पर सहयोग से सुलभ सामग्री के बल पर कुटीर और लघु उद्योग का क्रियान्वयन अपेक्षित है। आध्यात्मिक मनीषियों से परामर्श लेकर नीति तथा अध्यात्म समन्वित शिक्षापद्धति के माध्यम से सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ तथा सर्वहितप्रद व्यक्ति और समाज की संरचना का मार्ग प्रशस्त करना आवश्यक है।
अरविन्द तिवारी की रपट