डी.पी. विप्र महाविद्यालय में स्वामी विवेकानंद की स्मृति में : अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन, डॉ. अंजू शुक्ला बनी छत्तीसगढ़ प्रदेश के तुलसी पीठ अध्यक्ष
डी.पी. विप्र महाविद्यालय में स्वामी विवेकानंद की स्मृति में : अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन, डॉ. अंजू शुक्ला बनी छत्तीसगढ़ प्रदेश के तुलसी पीठ अध्यक्ष
भुवन वर्मा बिलासपुर 14 जनवरी 2024
बिलासपुर।डी.पी. विप्र महाविद्यालय में 12 जनवरी को हिंदी एवं आई.क्यू.ए.सी. विभाग के संयुक्त तत्वावधान में स्वामी विवेकानंद के स्मृति में एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी “वर्तमान समाज में रामकथा की प्रासंगिकता” पर आयोजित किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता डॉ. स्वामी भगवदाचार्य जी अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री तुलसी जन्मभूमि न्यास सनातन धर्म परिषद् (उ.प्र.), प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री तुलसी जन्मभूमि न्यास सनातन धर्म परिषद् जबलपुर (म.प्र.), डॉ. स्नेह ठाकुर वरिष्ठ साहित्यकार कनाडा, राजकुमार अग्रवाल, वरिष्ठ सदस्य प्रशासन समिति, मानस मर्मज्ञ पं. सुरेशचन्द्र तिवारी, आचार्य श्री मनोहर गुरूजी महायोगधारा बिजौर, डॉ. (श्रीमती) अंजू शुक्ला प्राचार्य, डी.पी. विप्र महाविद्यालय, डॉ. अंकुर शुक्ला, कु. शिक्षा शर्मा उपस्थित रहे।
मुख्य वक्ता डॉ. स्वामी भगवदाचार्य जी ने अपने वक्तव्य में सत्संग की महिमा का बखान करते हुए इन्हें मानव जीवन के सबसे अनमोल क्षणों में से एक बतलाया। राम नाम का जाप सभी पापों को नष्ट कर मुक्ति प्रदान करने वाला है। राजकुमार अग्रवाल ल ने अपने उद्बोधन में कहा कि दाम्पत्य जीवन का सार रामचरितमानस में छिपा है जो इनके पालन से ही जीवन में आत्मसात हो सकता है। प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रत्येक मनुष्य में रामतत्व की खोज ही मानव जीवन का ध्येय है। किसी कार्य को पूर्ण समर्पण एवं संपूर्णता के साथ करना ही राममय होना है। महायोगधारा बिजौर के आचार्य श्री मनोहर गुरूजी ने रामनाम का अनुभव योग के माध्यम से कराकर संगोष्ठी में एक नई ऊर्जा प्रवाहित की।
पं. सुरेशचन्द्र तिवारी जी ने अपने उद्बोधन में कहा जब तक इस धरती कल-कल करने वाली सरिता प्रवाहित होती रहेंगी तब तक रामकथा इस धरती में मंदाकिनी की भांति प्रवाहमान रहेगी। रामचरितमानस में भव-सागर से पार लगाने के लिए रामनाम को जलयान के समान बताया। डॉ. (श्रीमती) अंजू शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा कि गोस्वामी तुलसीदास की रचना ‘श्रीरामचरितमानस‘ का प्रारम्भ संतो की वंदना ‘‘बंदउ प्रथम महीसुर चरना मोह जनित संशय सब हरना। सुजन समाज सकल गुन खानी, करऊ प्रनाम सप्रेम सुबानी।‘‘ से हुई है जो इस बात को इंगित करता है कि परमात्मा की असीम अनुकम्पा से ही संत मिलन का सौभाग्य प्राप्त होता है। राममय इस जगत में रामकथा पर विद्वत जनों की चर्चा मानो स्वयं मंदाकिनी गंगा का भगीरथ के द्वार आने के समान है। साथ ही स्वामी विवेकानंद जयन्ती के संबंध में स्वामी जी को याद करते हुए उनके संदेश उठो जागो और श्रेष्ठता को प्राप्त करने के संबंध में व्याख्या की। तुलसी के ‘‘रामकाज किन्है बिना मोहि कहॉं विश्राम‘‘ का संदेश दिया।
तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. स्नेह ठाकुर ने श्रीराम की नारी के प्रति संवेदना को बताते हुए कहा कि ‘नारी हूँ पुरूष और पुरूषार्थ की जननी हूँ‘ जिनकी संवेदना कभी मरती नहीं हाँ अंतरमन के किसी कोने में जा छिपती है जो श्रीराम जैसे आदर्श को पाकर पुनः प्रस्फुटित हो उठती है। डॉ. अंकुर शुक्ला ने राम के व्यवहारिक पक्ष पर विस्तार पर प्रकाश डाला । इस अवसर पर स्वामी भगवदाचार्य महराज जी द्वारा प्राचार्य डॉ. (श्रीमती) अंजू शुक्ला को छत्तीसगढ़ तुलसी पीठ का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। महाविद्यालय द्वारा पं. सुरेशचंद्र तिवारी को मानस भूषण सम्मान 2024 एवं कु. शिक्षा शर्मा को छ.ग. लोक सेवा आयोग 2023 की परीक्षा में चतुर्थ स्थान पर चयनित होने पर प्रतिभा सम्मान 2024 प्रदान किया गया। संगोष्ठी में श्री सौरभ सराफ, नई दिल्ली, अंजू कमलेश, डॉ. सुनीता यादव सिहोर आदि द्वारा शोध पत्र पढ़े गये।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुरुचि मिश्रा एवं आभार प्रदर्शन डॉ. आभा तिवारी के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में डॉ. मनीष तिवारी, डॉ. विवेक अम्बलकर, डॉ. एम.एल. जायसवाल, डॉ. सुषमा शर्मा, प्रो. ए.श्रीराम, डॉ. आशीष शर्मा, प्रो. तोषिमा मिश्रा, प्रो. निधिष चौबे, प्रो. विश्वास विक्टर, डॉ. ऋचा हाण्डा, डॉ. किरण दुबे, प्रो. रूपेन्द्र शर्मा, श्री शैलेन्द्र कुमार तिवारी, प्रो. लोकेश वर्मा, प्रो. ज्योति तिवारी, प्रो. सुचित दुबे, प्रो. कांची वाजपेयी, प्रो. आभा वाजपेयी, श्री सगराम चन्द्रवंशी एन.सी.सी., एन.एस.एस. एवं अन्य महाविद्यालयों से आये प्राध्यापकगण एवं छात्र-छात्राए उपस्थित रहे।