रतनपुर खुटाघाट टापू में प्रवासी पक्षियों का आना लगातार जारी है : ढूंढ रहे हैं अपना आशियाना यहाँ काट दिए गए हैं पूरे पेड़ – प्रजनन हेतु आए हजारों पक्षियों की चिंता किसी को नहीं

रतनपुर खुटाघाट टापू में प्रवासी पक्षियों का आना लगातार जारी है : ढूंढ रहे हैं अपना आशियाना यहाँ काट दिए गए हैं पूरे पेड़ – प्रजनन हेतु आए हजारों पक्षियों की चिंता किसी को नहीं
भुवन वर्मा बिलासपुर 06 जुलाई 2023

बिलासपुर । ऐतिहासिक धार्मिक नगरी रतनपुर खुटाघाट बांध के बीच के टप्पू को छत्तीसगढ़ शासन द्वारा पर्यटन स्थल के रूप में रिसोर्ट बनाने की तैयारी चल रही है । इस बीच जोरो से पेड़ों की कटाई भी चल रही है । नगर के बाहुबली भू माफिया रिसोर्ट के निर्माता की बल्ले-बल्ले है ।वही प्रति वर्ष की भांति हजारों की संख्या में अप्रवासी पक्षी प्रजनन हेतु खुटाघाट आया करते हैं । जो अपनी परंपरा के अनुरूप इस वर्ष भी आए हैं । अभी यहाँ हजारों किमी दूर से प्रवासी पक्षी आ रहे है और अपना बसेरा ढूंढ रहे है । कुछ दिन पहले इस टापू इस सैकड़ो पेड़ काट दिया गया है, जिसके कारण ये आस पास के पेड़ मे, गांव में जा रहे है और अपना बसेरा बना रहे है, घोसले बना रहे है पर गांव वाले उनके अंडे तोड़ दे रहे है या पक्षियों को मार दे रहे हैं। ये बेहद दुखद है।हम सब आगे आकर मदद कर सकते है। प्रवासी पक्षियों के लिए पर्यावरण प्रेमी पक्षी प्रेमी को आगे आना चाहिए और इन पर गंभीरता से विचार कर उनकी व्यवस्था पर सोचनी चाहिए । खुटाघाट बांध में प्रवासी पक्षियों के आशियाने की जगह ,बगीचा और ग्लास हाउस बनाने की योजना है ।
जो पर्यावरणप्रेमी एवं प्रवासी पक्षियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा ।
विदित हो कि छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले के अंतर्गत पर्यटन स्थल रतनपुर का प्रसिद्ध खुटाघाट बांध में प्रवासी साइबेरियन पक्षियों का हर साल जमावड़ा रहता है. इसी कारण पर्यटक भी दूर-दूर से आते रहते हैं. खुंटाघाट का यह द्वीप, खूबसूरती प्रवासी पक्षियों के आशियाने के कारण ही बन पाया है, खुटाघाट के इस टापू में प्रवासी पक्षियों के आशियाने को प्रभावित करना निश्चित ही पर्यावरण को नुकसान करना है. क्योंकि यहां पर प्रवासी पक्षी सात समंदर पार करके हजारों किलोमीटर की लंबी यात्रा के दौरान यहां प्रजनन करने प्रतिवर्ष यहां पर आते हैं. क्योंकि इन पक्षियों को यहां पर प्रजनन के लिए अनुकूल वातावरण मिलता है.
अब तक यहां पर आम लोगों का आना जाना नहीं होता रहा है । यदि यह टापू ग्लास हाउस या बगीचे में परिवर्तित हो जाएगा तो निश्चित ही इन पक्षियों का आना और प्रजनन यहां संभव नहीं हो पाएगा जोकि पर्यावरण की दृष्टि से अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसी बात होगी. इस बात को लेकर छत्तीसगढ़ और अन्य प्रदेशों के पर्यावरण प्रेमियों में निराशा है और आने वाले दिनों में खुले तौर पर शासन की इस अप्राकृतिक योजना पर अपना विरोध प्रकट जरूर करेंगे । क्योंकि जाहिर सी बात है ,आने वाले दिनों में चुनाव है और प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वाले लोगों को जनता बिल्कुल पसंद नहीं करेंगी । दुर्भाग्य की बात है पर्यावरण पक्षी प्रेमी भी आंख कान बंद कर बैठे हुए हैं ।
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