आरक्षण के पेंच में इंजीनियरिंग, कृषि, बीएड, डीएलएड समेत महत्वपूर्ण परीक्षाओं की तारीख भी नहीं आ रही : व्यापम ने भी अब तक प्रवेश परीक्षाओं के बारे में कोई विचार- विमर्श नही- युवाओं के भविष्य अंधकार में बढ़ते आयु से युवाओं बड़ा वर्ग मानसिक पीड़ा में
आरक्षण के पेंच में इंजीनियरिंग, कृषि, बीएड, डीएलएड समेत महत्वपूर्ण परीक्षाओं की तारीख भी नहीं आ रही : व्यापम ने भी अब तक प्रवेश परीक्षाओं के बारे में कोई विचार-विमर्श नही- युवाओं के भविष्य अंधकार में बढ़ते आयु से युवाओं बड़ा वर्ग मानसिक पीड़ा में
भुवन वर्मा बिलासपुर 18 अप्रेल 2023

रायपुर । प्रवेश परीक्षा के परिणाम और नई नियुक्तियों में आवेदन करने के इंतजार में युवा वर्ग बुढ़ापे की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं । आरक्षण के विषय इसी तरह लटका रहा तो बहुत से होनहार युवक इन परीक्षाओं से वंचित हो जाएंगे । हमारे छत्तीसगढ़ में अब तक आरक्षण का क्या रास्ता निकलेगा स्थिति स्पष्ट नहीं है ।
राजभवन और सरकार के तर्क के बीच अब महत्वपूर्ण बात यह है कि युवाओं के भविष्य को ध्यान में रख कर जल्द ही फैसला लेना होगा। अन्यथा युवाओं का एक बड़ा वर्ग मानसिक पीड़ा झेलता रहेगा, यह अच्छी बात नहीं है।इधर छतीसगढ़ में प्रवेश परीक्षाओं का इंतजार कर रहे युवाओं का भविष्य अधर में अटक गया है। आरक्षण के पेंच में फंसी प्रवेश परीक्षाओं पर कोई फैसला नहीं हो पा रहा है. ऐसे में युवाओं का एक बड़ा वर्ग अपने भविष्य को लेकर चिंतित है। इनके भविष्य से लगता है कि सियासी दांव-पेंच को कोई मतलब नहीं है, यही कारण है। कि किसी भी स्तर से कोई ठोस पहल नहीं हो पा रही है। आरक्षण में संशोधन का विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद राजभवन में अटका हुआ है। वहां राज्यपाल बदल गए, उसके बाद सरकार और युवाओं को उम्मीद थी कि इस दिशा में जल्द ही नतीजा आएगा, लेकिन नतीजा तो दूर अभी तक कोई सुगबुगाहट तक नहीं है। इंजीनियरिंग, कृषि, बीएड, डीएलएड समेत महत्वपूर्ण परीक्षाओं की तारीख नहीं आ रही है। व्यावसायिक परीक्षा मंडल ने भी अब तक प्रवेश परीक्षाओं के बारे में कोई विचार- विमर्श तक शुरू नहीं किया है। आरक्षण तय नहीं होने से सरकारी विभाग खुद असमंजस का शिकार हो गए हैं और यही कारण हे कि उनके स्तर से प्रस्ताव बन कर व्यावसायिक परीक्षा मंडल के पास नहीं गया है। आमतौर पर मार्च से मई तक छत्तीसगढ़ में प्रवेश परीक्षाओं का सीजन होता है और अभी अप्रैल का आधा माह गुजर चुका है। प्रवेश परीक्षा में लेट होने से नतीजे विलंब से आएंगे, जाहिर है ऐसे में पढ़ाई प्रभावित होना भी तय है। सरकार ने आरक्षण संशोधन विधेयक में अनुसूचित जाति को 13 अनुसूचित जनजाति को 32, पिछड़ा वर्ग को 27 और ईडब्ल्यूएस को चार प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। इस संशोधन पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर चर्चा गई थी। विधेयक पारित होने के बाद राजभवन में जाकर अटका हुआ है। विधेयक अटकने के बाद कांग्रेस और भाजपा की राजनीति भी चली, लेकिन इन सबसे अलग युवाओं का भविष्य अटका रहा। अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर छत्तीसगढ़ के 76 फीसद आरक्षण को 9वीं अनुसूची में शामिल करनेका आग्रह किया है।

झारखंड और कर्नाटक विधानसभा में भी आरक्षण का प्रतिशत बढ़ा कर 50 से अधिक करने का प्रस्ताव पारित किया जा चुका है। जबकि तमिलनाडु और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में भी आरक्षण पचास प्रतिशत से ज्यादा है। आरक्षण के मसले की वजह से परीक्षा में देरी की बात की जा रही है, पर यहां सवाल ये है कि आरक्षण का प्रवेश परीक्षा के आयोजन से तात्कालिक लेना-देना नहीं है। ये मामला, तो प्रवेश के वक्त आएगा। बेहतर ये होगा कि जिम्मेदार लोग सक्रिय होकर प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करें, और प्रवेश तक आरक्षण का क्या रास्ता निकलेगा, उसे नतीजों के बाद के लिए छोड़ दें।
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