राजभवन ने आरक्षण विधेयक नहीं लौटाया: छत्तीसगढ़ सरकार से 10 सवाल पूछे, एससी एसटी को सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा बताने का आधार भी

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राजभवन ने आरक्षण विधेयक नहीं लौटाया: छत्तीसगढ़ सरकार से 10 सवाल पूछे, एससी एसटी को सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा बताने का आधार भी

भुवन वर्मा बिलासपुर 14 दिसंबर 2022

रायपुर । छत्तीसगढ़ का आरक्षण छत्तीसगढ़ में आरक्षण विधेयकों पर सत्ता प्रतिष्ठानों के टकराव का मंच पूरी तरह तैयार है। राज्यपाल ने 12 दिनों बाद भी आरक्षण संशोधन विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। वहीं विधेयक को फिर से विचार करने के लिए भी सरकार को नहीं लौटाया। अब राजभवन ने राज्य सरकार को 10 सवालों की एक फेहरिस्त भेजी है। इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा मानने का आधार पूछा गया है। इसके जरिये राजभवन ने कुछ कानूनी सवाल भी उठाये हैं।

उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक राजभवन ने पूछा है कि क्या इस विधेयक को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण। 1992 में आये इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50% से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। उस विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों से संबंधित विवरण क्या है।

उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उनको देखने के बाद न्यायालय का कहना था, ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं किया गया है जिससे आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50% से अधिक की जा रही है। राजभवन ने यह भी पूछा है कि सरकार यह भी बताये कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार से समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं।

राजभवन के इस कदम से आरक्षण विधेयक पूरी तरह फंस गया है।राजभवन ने जानना चाहा है कि आरक्षण पर चर्चा के दौरान मंत्रिमंडल के सामने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 50% से अधिक में. आरक्षण का उदाहरण रखा गया था। उन तीनों राज्यों ने तो आरक्षण बढ़ाने से पहले आयोग का गठन कर उसका परीक्षण कराया था। छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी किसी कमेटी अथवा आयोग का गठन किया हो तो उसकी रिपोर्ट पेश करे। राजभवन ने क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट भी मांगी है।

वहीं विधेयक के लिए विधि विभाग का सरकार को मिली सलाह की जानकारी मांगी गई है। राजभवन में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए बने कानून में सामान्य वर्ग के गरीबों के आरक्षण की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। तर्क है कि उसके लिए अलग विधेयक पारित किया जाना चाहिए था। राजभवन ने यह भी जानना चाहा है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति सरकारी सेवाओं में चयनित क्यों नहीं हो पा रहे हैं।

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