भाजपा का गुजरात चुनाव मॉडल छत्तीसगढ़ में : बड़े कद्दावर भीष्मपितामह मानने वालों नेताओं का कट सकता है पत्ता – बीजेपी दमदार विपक्ष के रूप में अपनी पहचान बनाने में रही नाकाम
भाजपा का गुजरात चुनाव मॉडल छत्तीसगढ़ में : बड़े कद्दावर भीष्मपितामह मानने वालों नेताओं का कट सकता है पत्ता – बीजेपी दमदार विपक्ष के रूप में अपनी पहचान बनाने में रही नाकाम
भुवन वर्मा बिलासपुर 24 नवंबर 2022
रायपुर । गुजरात में विधानसभा के चुनाव शुरू हो चुके हैं और छत्तीसगढ़ में 1 साल बाद यानी 2023 में चुनाव हैं। गुजरात में बीजेपी उम्मीदवारों की लिस्ट निकलती जा रही है और उम्मीदवारों की फेहरिस्त को देखकर छत्तीसगढ़ में भी टिकट के पुराने दावेदारों के बीच हलचल महसूस की जा रही है।…. तो इसकी एक बड़ी वजह यह है कि गुजरात को देशभर में बीजेपी की एक अलग तरह की प्रयोगशाला के रूप में देखा जाता है, तो वहीं छत्तीसगढ़ बीजेपी में भी तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं। ऐसी सूरत में गुजरात के कद्दावर नेताओं का पत्ता कटने के बाद अब़ छत्तीसगढ़ की सियासी फिजा में एक यह भी अहम सवाल तैरने लगा है कि क्या अब तक बीजेपी के चेहरे के रूप में पहचान रखने वाले छत्तीसगढ़ के कद्दावर नेताओं को भी टिकट के लाले पड़ सकते हैं..?
वैसे तो बीजेपी की राजनीति में गुजरात और छत्तीसगढ़ के बीच कोई तुलना नहीं हो सकती। दोनों ही सूब़ों के हालात बहुत ही अलग – अलग हैं। लेकिन एकाध मायने में दोनों के बीच समानता भी देखी जा सकती है। वह यह कि गुजरात में बीजेपी की ओर से हाल के दिनों में जो बड़े प्रयोग किए गए हैं, उसका छोटा संस्करण छत्तीसगढ़ में भी अपनाया जा रहा है। मसलन बीजेपी ने गुजरात में मुख्यमंत्री सहित पूरा कैबिनेट ही बदल दिया था। इधर छत्तीसगढ़ में 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने उस समय के अपने सभी सांसदों की टिकट काटकर पूरे के पूरे 11 नए चेहरे उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारे थे। जिनमें उस समय के केंद्रीय मंत्री – आदिवासी नेता विष्णु देव साय और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह की भी टिकट काट दी गई थी। जाहिर सी बात है की चुनाव नतीजे सामने आए तो बीजेपी को छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीटों पर कामयाबी मिली गई थी। उसके बाद से छत्तीसगढ़ बीजेपी में छोटे-छोटे बदलाव के सिलसिला ज़ारी रहा। पार्टी ने छत्तीसगढ़ में अपना प्रभारी बदला और डी पुरंदेश्वरी को कमान सौंपी।
जिन्होंने लगातार दौरा कर छत्तीसगढ़ में अपने संगठन के अंदर नया जोश भरने की तमाम कोशिशें की। कई बार बैठक- मंथन का दौर चला। लेकिन दो हजार अट्ठारह के विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवाने के बाद से बीजेपी दमदार विपक्ष के रूप में अपनी पहचान बनाने में नाकाम ही रही।2018 औऱ उसके बाद तक बीजेपी के चेहरे के रूप में पहचान रखने वाले तमाम नेता हाईकमान की नज़र में अपना नंबर नहीं बढ़ा सके थे। नतीजतन 2023 के चुनाव की आहट सुनते ही बीजेपी ने 2022 के मध्य में बदलाव के तौर पर छत्तीसगढ़ में भी नए प्रयोग शुरु किए। जिसके तहत बिलासपुर के सांसद अरुण साव के रूप में नया प्रदेश अध्यक्ष दिया और चांपा के विधायक नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष की कमान सौंपी। इसी बीच डी पुरंदेश्वरी की जगह ओम माथुर को छत्तीसगढ़ का नया प्रभारी बनाया गया । अजय जामवाल भी को भी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई। प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बदले जाने के बाद बीजेपी ने छत्तीसगढ़ के कुछ जिलों में भी संगठन की कमान नए लोगों को सौंपी है। बदलाव के प्रयोग का यह सिलसिला अभी चल रहा है और उम्मीद की जा रही है कि फीडबैक के हिसाब से और भी बदलाव आने वाले समय में देखने को मिल सकते हैं।
इस बीच गुजरात के चुनाव शुरू हुए और जब वहां बीजेपी उम्मीदवारों की फेहरिस्त जारी होने लगी तो छत्तीसगढ़ में भी इसे लेकर सुगबुगाहट हुई है। गुजरात की बड़ी प्रयोगशाला से यही मैसेज निकल कर आ रहा है कि बीजेपी ने वहां अपने कई कद्दावर नेताओं को चुनाव मैदान से बाहर कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी ने पहली लिस्ट में ही अपने 38 विधायकों की टिकट काट दी है। और मौजूदा विधायकों में 69 ही फिर से फिर चुनाव मैदान में उतारे गए हैं। पार्टी ने जिन बड़े नेताओं को टिकट से वंचित किया है, उनमें पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल, गुजरात की सरकार में पहले मंत्री रहे प्रदीप सिंह जडेजा, भूपेंद्र सिंह, सौरभ पटेल, विवावरी बेन दवे, कौशिक पटेल, बल्लभ काकड़िया, योगेश पटेल सहित भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी शामिल है।
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि बीजेपी ने गुजरात के हालात को देखकर बेहतर कल के लिए बदलाव का यह नुस्खा आजमाया है।इधर हवा में यह आशंका भी तैरनी लगी है कि बीजेपी की बड़ी प्रयोगशाला गुजरात से निकल कर इस मैसेज कि आँच बीजेपी की छोटी प्रयोगशाला छत्तीसगढ़ तक भी पहुंच सकती है और 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा 2023 के विधानसभा चुनाव में भी कई कद्दावर नेताओं का पत्ता कट सकता है। गुजरात से निकल कर आ रहे संदेश को छत्तीसगढ़ पर उतार कर देख रहे लोग कुछ इसी तरह का अनुमान लगा रहे हैं।
वैसे भी केन्द्रीय स्तर पर बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच यह सवाल अब भी जवाब का इंतजार कर रहा है कि 15 साल तक लगातार सरकार चलाने के बाद 2018 में छत्तीसगढ़ में बीजेपी केवल 15 सीटों पर क्यों सिमट गई थी…? इतना ही नहीं 2018 के बाद से छत्तीसगढ़ में बीजेपी अपनी पहचान बनाने में नाकाम क्यों रही ….? बीजेपी आलाकमान ने 2023 के चुनाव के ठीक पहले प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बदल कर यह संकेत दे दिया है कि वह अपने अब तक छत्तीसगढ़ में बीजेपी के चेहरे के रूप में पहचान रखने वाले नेताओं पर भरोसा नहीं कर पा रही है।रायपुर में नौज़वानों की रैली और बिलासपुर में महिलाओं की हुंकार रैली के सफ़ल आयोजन से भी बदलाव का प्रयोग सही साब़ित हुआ है।
ऐसी सूरत में 2023 के चुनाव आते-आते पुराने चेहरों के ऊपर नए चेहरे “कट पेस्ट” कर दिए जाएं तो हैरत की बात नहीं होगी। बीजेपी ने वैसे भी साफ कर दिया है कि इस बार वह छत्तीसगढ़ में किसी को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश नहीं करेगी। लेकिन नए प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल के रूप में पार्टी ने ओबीसी तबके से नए चेहरे छत्तीसगढ़ के लोगों के सामने पेश कर दिये हैं। जिससे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की ओबीसी राजनीति का जवाब दिया जा सके। अब आने वाले समय में तय होगा कि बीजेपी के ये नए चेहरे छत्तीसगढ़ के मतदाताओं का भरोसा क़िस हद तक जीत पाएंगे….?
कुल मिलाकर गुजरात के उम्मीदवारों की फेहरिस्त ने अब तक अपने आप को छत्तीसगढ़ बीजेपी का चेहरा बताने वाले कद्दावर नेताओं की पेशानी में लकीरें तो खींच ही दी है।जो छत्तीसगढ़ बीजेपी में हो रहे बदलावों के बीच अपनी सक्रियता दिखाने और अपना वज़ूद बचाने के लिए जद्दोजहत करते नज़र आ रहे हैं। बहरहाल अब लोगों की नजर गुजरात चुनाव के नतीजों पर रहेगी। जाहिर सी बात है कि अगर गुजरात में बीजेपी का यह नुस्खा कामयाब़ रहा और पार्टी को एक बार फिर जीत हासिल हुई तो पार्टी को गुजरात की तरह का नुस्खा छत्तीसगढ़ में भी आजमाने में कोई हिचक नहीं होगी। लिहाजा अब दिलचस्पी के साथ देखा जाएगा कि गुजरात की बड़ी प्रयोगशाला में आज़माए ज़ा रहे इस नुस्ख़े का छत्तीसगढ़ बीजेपी में कितना असर होगा… ?