मोक्ष के लिये सबसे श्रेष्ठ मार्ग है श्रीमद्भागवत – पं० लहरेश्वरानंद : उक्त बातें आशीर्वाद हास्पिटल, महादेव घाट रायपुर में तुयेन्द्र हरि मढ़रिया की स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में
मोक्ष के लिये सबसे श्रेष्ठ मार्ग है श्रीमद्भागवत – पं० लहरेश्वरानंद : उक्त बातें आशीर्वाद हास्पिटल, महादेव घाट रायपुर में तुयेन्द्र हरि मढ़रिया की स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में
भुवन वर्मा बिलासपुर 28 मार्च 2022
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रायपुर – जीव उस ईश्वर की समक्ष अपने समस्त संसार के बंधन को भूलकर बस प्रभु की शरणागति में हो जाये तो फिर उसका भवसागर से पार होना निश्चित है। वास्तव में संसार के बंधन मात्र स्वार्थ के साथी है अन्त में ईश्वर की शरणागति ही परम मोक्ष को प्रदान करने वाली है। जो जीव श्रद्धा और विश्वास के साथ मात्र एक बार इस श्रीमद्भागवत कथा को श्रवण कर लेता है उनका जीवन सुखमय हो जाता है और वह सदैव के लिये मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है और उसे सांसारिक बंधनों के चक्कर मे आना नही पड़ता। इस कलिकाल में मोक्ष दिलाने वाला श्रीमद्भागवत महापुराण कथा से कोई अन्य श्रेष्ठ मार्ग नही है।




उक्त बातें आशीर्वाद हास्पिटल , महादेव घाट रायपुर में तुयेन्द्र हरि मढ़रिया की स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिवस आचार्य पंडित लहरेश्वरानंद महाराज ने कही। महाराजश्री ने बताया कि परीक्षित को ऋषि पुत्र द्वारा सातवें दिन मरने का श्राप दिया गया था। उन्होंने अन्य उपाय के बजाए श्रीमद्भागवत की कथा का श्रवण किया और मोक्ष को प्राप्त कर भगवान के बैकुण्ठ धाम को चले गये। ऐसे श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने का सौभाग्य केवल श्रीकृष्ण की असीम कृपा से ही प्राप्त हो सकती है। कथा सुनाने के बाद श्रीशुकदेव जी ने राजा परिक्षित को पूछा राजन् मरने से डर लग रहा हैं क्या ? तब राजा ने कहा महाराज मृत्यु तो केवल शरीर की होती हैं आत्मा तो अमर होती हैं , भागवत कथा सुनने के बाद अब मेरा मृत्यु से कोई डर नही हैं औऱ अब मैं भगवत्प्राप्ति करना चाहता हूँ। मुझे कथा श्रवण कराने वाले सुकदेवजी आपकों कोटि-कोटि मेरा प्रणाम कहकर परिक्षित ने श्री शुकदेव जी को विदा किया। इसके बाद तक्षक सर्प आया और राजा परीक्षित के शरीर को डसकर लौट गया। परीक्षित की आत्मा तो पहले ही श्रीकृष्ण की चरणारविन्द में समा चुकी थी और कथा के प्रभाव से अंत में उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया। महराजश्री ने बताया कि इस कलयुग में भी मनुष्य श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर अपना कल्याण कर सकता हैं। इस कलिकाल में भी वह भगवान के नाम स्मरण मात्र से भगवत् शरणागति की प्राप्त कर अपने जीवन को धन्य बना सकता है। कथा के अंतिम दिवस महाराजश्री ने भगवान के परमधाम गमन का मार्मिक वर्णन करते हुये बताया कि बलराम ने पहले अपने धाम के लिये प्रस्थान किया। उसके बाद भगवान ने इस लोक को छोड़कर अपने धाम के लिये गमन किया , वे अपने एक स्वरूप में श्रीमद्भागवत में ही समा गये। उनके गमन के साथ ही यदुवंशियों का भी पतन शुरू हो गया। श्रीमद्भागवत कथा का विश्राम राज परीक्षित के मोक्ष प्रसंग के साथ हुआ।
इस दौरान सभी हरिभक्तों के अलावा बैजनाथ चंद्राकर अध्यक्ष अपैक्स बैंक,भूपेश चंद्रवंशी, श्रीमती दामनी मढ़रिया,डॉ एल सी मढ़रिया, गिरधर मढ़रिया,डॉ सत्येन्द्र मढ़रिया,हरिशंकर मढ़रिया सहित परिवार जन उपस्थित रहे।
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