खैरागढ़ विधानसभा से पिछले कुछ चुनाव में कांग्रेस पार्टी के जातीय बाहुल्यता से ताल्लुकात रखने वाले प्रत्याशीयों का नहीं चला जादू : सतरंज की तर्ज पर चल रहा सियासी खेल

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खैरागढ़ विधानसभा से पिछले कुछ चुनाव में कांग्रेस पार्टी के जातीय बाहुल्यता से ताल्लुकात रखने वाले प्रत्यासियों का नहीं चला जादू : सतरंज की तर्ज पर चल रहा सियासी खेल

भुवन वर्मा बिलासपुर 19 मार्च 2022


खैरागढ़ से नितिन कुमार भांडेकर की रिपोर्ट
खैरागढ़। खैरागढ़ विधानसभा में उप चुनाव की घोषणा हो गई है। इसके साथ ही साथ यहां पर चुनाव आयोग ने चरणबद्ध रूप से उपचुनाव की तिथियों की भी घोषणा कर दी है। वहीं घोषणा होते ही तत्काल जिले में आचार सहिंता भी प्रभावशील हो गया है। जहां आज से नामांकन भरने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के सत्ता में काबिज कांग्रेस सरकार की पार्टी एवं विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी के द्वारा उक्त विधानसभा में अपने अपने प्रत्याशियों के चयन हेतु दोनों पार्टी के संगठन प्रमुखों के द्वारा राजधानी से लेकर जिला एवं नगर में सर्वे एवं बैठकें लेने का दौर शुरू हो गया है। उक्त विधानसभा में गत 15 वर्षों में हुए चुनाव परिणाम की यदि हम समीक्षा करें तो हमें इस विधानसभा में प्रत्यासियों को लेकर कई तरह के सियासती समीकरण देखने को मिलता है। जहां पर कांग्रेस पार्टी को लोधी जातीय के प्रत्यासियों से हमेशा निराशा ही हाथ लगी है। जबकि इसके बाउजूद उक्त विधानसभा से कांग्रेस पार्टी से एक जाति वर्ग के द्वारा इस बार भी थोक के भाव में पुनः दावेदारी किया जा रहा है। खैर….
विधानसभा उपचुनाव में उम्मीदवारों को लेकर कांग्रेस पार्टी के संगठन को अपनी ही पार्टी में प्रत्यासि के चयन में इस वजह से भारी मशक्कत कर जातिवाद का सामना करना पड़ रहा है। इधर होली का त्यौहार सर पर है। ऐसे में आज से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। समय सीमा भी काफी कम बचा है। जहाँ खासकर कांग्रेस में टिकट को लेकर प्रत्यासियों में घमासान मचा हुआ है। सत्तासीन कांग्रेस में कुछ प्रमुख दावेदारों की दावेदारी सामने आई है।
जिसमें कांग्रेस से प्रबल दावेदारों में सबसे पहला नाम है, ऑल इंडिया प्रोफेशनल कांग्रेस राजनांदगांव के जिला अध्यक्ष उत्तम सिंह ठाकुर का नाम सबसे आगे चल रहा है। वहीं ब्लॉक कांग्रेस कमेटी खैरागढ़ की अध्यक्ष यशोदा नीलांबर वर्मा , पदमा सिंह , गिरवर जंघेल की दावेदारी भी सामने है। हम अपने पाठकों को बता दें कि खैरागढ़ की जनता ने सदैव चुनाव में कांग्रेस पार्टी को चौका देने वाला परिणाम दीया है। जब देवव्रत सिंह को कांग्रेस पार्टी से खैरागढ़ विधानसभा के आम चुनाव में टिकट नहीं मिला तो उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर स्वर्गीय जोगी जी की क्षेत्रीय पार्टी में जॉइन कर इस विधानसभा से चुनाव लड़ा था । जहाँ देवव्रत सिंह के मध्य , कोमल जंघेल, गिरवर जंघेल जैसे जातीय समीकरण पर प्रभाव रखने की बात करने वालों के बीच चुनाव हुवा था। परिणामस्वरूप देवव्रत सिंह चुनाव जीत गए थे। ऐसे ही कुछ और चुनाव परिणाम हम आपको बताते हैं , जो यह सिद्ध करते हैं कि कांग्रेस पार्टी के लिए एक जातीय बाहुल्य वर्ग से ताल्लुकात रखने वाले प्रत्यासियों से सदैव चुनाव में कांग्रेस पार्टी को निराशा ही हाथ लगी है।
▪️जातिवाद का तिलस्म नहीं है खैरागढ़ में प्रभावशील― हम बात करते हैं बीते कुछ ही वर्षों की जहां पर खैरागढ़ विधानसभा अन्तर्गत जिला पंचायत क्षेत्र के कुल 4 क्षेत्र क्रमांकों की, जहाँ पर सन-2020 में हुई जिला पंचायत चुनाव संपन्न हुई। जिसका परिणाम यहाँ के बाहुल्य जातीय समीकरण को ध्वस्त कर चुकी है।
क्षेत्र क्र-02
1- कांग्रेस समर्थित महिला प्रत्याशी प्रियंका जंघेल जो लोधी समाज की थी वह लोधी बाहुल्य क्षेत्र से भाजपा समर्थित महिला प्रत्याशी प्रियंका ताम्रकार (पिछडा़ वर्ग से) के लोधी बाहुल्य क्षेत्र से हार गई थीं।
क्षेत्र क्र.04

2- कांग्रेस समर्थित महिला प्रत्याशी दशमत जंघेल (लोधी समाज से लोधी बाहुल्य क्षेत्र से) भाजपा समर्थित पुरुष प्रत्याशी -विक्रांत सिंह से (समान्य वर्ग से लोधी बाहुल्य क्षेत्र से) हार गई थी।

3.जनपद क्षेत्र -उपचुनाव-2022
कांग्रेस समर्थित लोधी समाज का प्रत्याशी- डोमार लोधी (लोधी बाहुल्य क्षेत्र से थे) जो भाजपा समर्थित समान्य वर्ग के प्रत्याशी- शैलेन्द्र मिश्रा (सामान्य वर्ग) के प्रत्यासी से हार गया था।
जातिवाद का तिलस्म तोड़कर जिला पंचायत सदस्य बने विक्रांत सिंह ने अपना प्रभाव एवं दबदबा यहाँ पर साबित कर दिखाया है।
इन्होंने बगैर सत्ता-सरकार के भी अपनी लोकप्रियता साबित की है। वे जतिवाद का तिलस्म तोड़कर जिला पंचायत सदस्य बने। जिला पंचायत उपाध्यक्ष के पद पर भी जब लड़ाया गया। तो वहाँ भी उन्होंने अपनी राजनीतिक कौशल और रणनीति के बलबूते पर जीत का परचम लहराया। जो यह साबित करता है कि खैरागढ़ में यदि कांग्रेस पार्टी पुनः जातीय समीकरण अपनाते हुए यदि एक बाहुल्य जाति से ताल्लुकात रखने वाले प्रत्यासी को यहाँ से चुनाव लड़ाता है तो परिणाम पूर्व की भांति विपक्ष के खाते में ही जाएगी। जिनसे अब सिख ले लेना चाहिए।

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