साक्षी चौबे होंगी सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से सम्मानित

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साक्षी चौबे होंगी सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से सम्मानित

भुवन वर्मा बिलासपुर 12 फ़रवरी 2022

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रायपुर – छत्तीसगढ़ गो सेवा संगठन द्वारा बीस वर्ष तक के नवलेखक लेखिकाओं को प्रोत्साहित करने हेतु कवितायें आमंत्रित किया गया था। इस श्रेणी में जांजगीर-चांपा जिले के गौरव ग्राम सेमरा निवासी साक्षी चौबे को संगठन द्वारा लेखन के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ प्रदेश में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया है। कोरोना काल समाप्त होते ही उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा। बताते चलें साक्षी चौबे गौरव ग्राम सेमरा की नवलेखिका हैं , लेखन कार्य के साथ साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू महाविद्यालय नवागढ़ से बीएससी (बायो) और कम्प्यूटर की अध्ययनरत छात्रा हैं। नवमीं कक्षा में पढ़ाई के समय से ही इनके द्वारा विभिन्न मुद्दों पर कविता , आलेख लिखी जा रही है। गो सेवा संगठन छत्तीसगढ़ द्वारा लेखन के क्षेत्र में प्रदेश में प्रथम पुरस्कार देने का निर्णय लिया है। इसके पहले भी समय – समय पर अनेकों संगठनों ने इन्हें लेखन के क्षेत्र में पुरस्कृत किया है। ये अपने दादाजी जगदीश प्रसाद चौबे को ही अपनी प्रेरणा मानती हैं और अपने माता – पिता चंद्रप्रभा द्वारिका प्रसाद चौबे को अपनी सफलता का श्रेय देती हैं। उनकी चयनित कविता निम्न हैं –

“क्यों बैठी है तू निराशा में”

( साक्षी चौबे)

क्यों बैठी है तू निराशा में ,
अतीत से अपने क्लांत हुये।
जो बीते पल जहरीले थे ,
आज क्यूँ उनके नाम जिये।।
झटककर पांव जंजीरों से अब ,
पाबंदियों का त्याग किये।
जो मन बंधा था बेड़ियो से ,
खुद को उससे आजाद किये।।
लहरों सा जो अशांत मन था ,
उसको नदियों सा शांत किये।
क्यों बैठी है तू निराशा में ,
अतीत से अपने क्लांत हुये ॥
जो बीत गया सो बीत गया ,
उस कल में आज क्यूँ बर्बाद करें ,
एक नया सवेरा आया है ,
उसको खुशियों के नाम करें।।
पतझड़ के मौसम को फिर ,
सावन में बदलाव किये।
निकलकर घोर अंधेरो से ,
फिर सुबह का आगाज किये।
क्यों बैठी है तू निराशा में ,
अतीत से अपने क्लांत हुये॥
तू छू ले उस आसमां को ,
जो बरसों पहले छुटा था।
क्या याद अभी भी है तुझे ,
तेरा जो भी सपना टूटा था।।
तू रुके नहीं तू झुके नहीं ,
तु बस मेहनत कर बढ़ते जायेगा।
आज तो तुझमें उमंग आया है ,
कल दामन खुशियों से भर जायेगा।।
अब ना कभी बैठूँगी मैं ,
अतीत का अपने क्लांत लिये।
जी करता है मैं उड़ जाऊं ,
अपने पंखो को आजाद किये॥

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