कम लागत में ज्यादा मुनाफा ही प्राकृतिक खेती : कृषि संबंधी प्राचीन ज्ञान को वैज्ञानिक फ्रेम में ढालना आवश्यक – प्रधानमंत्री मोदी

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कम लागत में ज्यादा मुनाफा ही प्राकृतिक खेती : कृषि संबंधी प्राचीन ज्ञान को वैज्ञानिक फ्रेम में ढालना आवश्यक – प्रधानमंत्री मोदी

भुवन वर्मा बिलासपुर 16 दिसंबर 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

नई दिल्ली – कम लागत में ज्यादा मुनाफा ही प्राकृतिक खेती है। आज दुनियां जब ‘बैक टू बेसिक’ की बात करती है तो उसकी जड़ें भारत से जुड़ती दिखायी पड़ती है। कृषि से जुड़े हमारे इस प्राचीन ज्ञान को हमें ना सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है , बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी जरूरत है। इस दिशा में हमें नये सिरे से शोध करने होंगे , प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक फ्रेम में ढालना होगा।
उक्त बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये गुजरात के आणंद में प्राकृतिक और शून्य बजट खेती पर चल रहे राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में गुरुवार को देश भर के किसानों और वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुये कही। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अमित शाह और नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल हुये। पीएम ने कहा कृषि सेक्टर , खेती-किसानी के लिये आज का दिवस बहुत ही महत्वपूर्ण है। मैंने देश भर के किसान भाईयों से आग्रह किया था कि वे प्राकृतिक खेती के राष्ट्रीय सम्मेलन से जरूर जुड़ें। आज देश के हर कोने से टेक्नोलॉजी के माध्यम से हजारों किसान भाई हमारे साथ जुड़े हुये हैं। पीएम मोदी ने कहा ये कान्क्लेव भले ही गुजरात में जरूर हो रहा है लेकिन इसका असर पूरे भारत के लिये है , भारत के हर किसान के लिये है। उन्होंने कहा नेचुरल फार्मिंग से देश के देश के 80 प्रतिशत किसानों को सर्वाधिक फायदा होगा जिनका काफी खर्च , केमिकल फर्टिलाइजर पर होता है। अगर वो प्राकृतिक खेती की तरफ मुड़ेंगे तो उनकी आर्थिक स्थिति और फसल दोनों बेहतर होगी। उन्होंने कहा-नया सीखने के साथ हमें उन गलतियों को भुलाना भी पड़ेगा जो खेती के तौर-तरीकों में आ गई है।उन्होंने कहा कि केमिकल और फर्टिलाइजर ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है लेकिन इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करते रहने की जरूरत है। जानकार ये बताते हैं कि खेत में आग लगाने से धरती अपनी उपजाऊ क्षमता खोती जाती है। कृषि से जुड़े हमारे प्राचीन ज्ञान  को हमें ना सिर्फ फिर से सीखने की जरूरत है , बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब में तराशने की भी जरूरत है। इस दिशा में हमें नये सिरे से शोध करने होंगे , प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक फ्रेम में ढालना होगा। चाहे कम सिंचाई वाली जमीन हो या फिर अधिक पानी वाली भूमि , प्राकृतिक खेती से किसान साल में कई फसलें ले सकता है। यही नहीं बल्कि गेहूं , धान , दाल या जो भी खेत से कचरा या पराली निकलती है , उसका भी इसमें सदुपयोग किया जाता है। पीएम ने कहा आजकल एक भ्रम पैदा हो गया है कि बिना केमिकल के फसल अच्छी नहीं होगी , जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। पहले केमिकल नही होते थे लेकिन फसल अच्छी होती थी , मानवता के विकास का इतिहास इसका साक्षी है। पीएम मोदी ने कहा हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। जब मैं प्रकृति की प्रयोगशाला की बात करता हूं तो ये पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है। ये सही है कि केमिकल और फर्टिलाइज़र ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है , लेकिन ये भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करते रहना होगा। पीएम ने कहा बीते छह – सात साल में बीज से लेकर बाज़ार तक , किसान की आय को बढ़ाने के लिये पीएम किसान सम्मान निधि से लेकर लागत का डेढ़ गुना एमएसपी तक , सिंचाई के सशक्त नेटवर्क से लेकर किसान रेल तक एक के बाद एक अनेक कदम उठाये गये हैं। उन्होंने आगे कहा कि आजादी के बाद के दशकों में जिस तरह देश में खेती हुई , जिस दिशा में बढ़ी वो हम सब हम सबने बहुत बारीकी से देखा है। अब आज़ादी के 100 वें वर्ष तक का जो हमारा सफर है , वो नई आवश्यकताओं , नई चुनौतियों के अनुसार अपनी खेती को ढालने का है। कृषि के अलग-अलग आयाम हो , फूड प्रोसेसिंग हो , प्राकृतिक खेती हो , यह विषय इक्कीसवीं सदी में भारतीय कृषि का कायाकल्प करने में बहुत मदद करेंगे। पीएम मोदी ने कहा कि खेती के साथ पशुपालन , मधुमक्खी पालन , मत्स्य पालन और सौर ऊर्जा , बायो फ्यूल जैसे आय के अनेक वैकल्पिक साधनों से किसानों को निरंतर जोड़ा जा रहा है। गांवों में भंडारण , कोल्ड चैन और फूड प्रोसेसिंग को बल देने के लिये लाखों करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। मिट्टी की जांच से लेकर सैकड़ों नये बीज तक हमारी सरकार ने काम किया है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि आईये , आजादी के इस अमृत महोत्सव में मां भारती की धरा को रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त करने का संकल्प लें। क्लाइमेट चेंज समिट में मैंने दुनियां से लाइफस्टाइल फॉर एनवायरामेंट को ग्लोबल मिशन बनाने का आह्वान किया था। इक्कीसवीं सदी में इसका नेतृत्व भारत करने वाला है , भारत का किसान करने वाला है।

क्या है शून्य बजट प्राकृतिक खेती ?

शून्य बजट प्राकृतिक खेती को उत्‍पादन के एक भाग पर किसानों की निर्भरता को कम करने , पारंपरिक क्षेत्र आधारित प्रौद्योगिकियों पर भरोसा करके कृषि की लागत को कम करने के लिये एक आशाजनक उपकरण के रूप में पहचाना गया है , जिससे मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह कृषि पद्धतियों को एकल-फसल से विविध बहु-फसल प्रणाली में स्थानांतरित करने पर जोर देता है। इसमें देसी गाय , उसका गोबर और गोमूत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिससे विभिन्न निविष्टियां जैसे बीजामृत , जीवामृत और घनजीवमृत खेत पर बनते हैं और अच्छे कृषि उत्पादन के लिये पोषक तत्वों और मिट्टी के जीवन का स्रोत हैं। अन्य पारंपरिक प्रथायें जैसे कि बायोमास के साथ मिट्टी में गीली घास डालना या साल भर मिट्टी को हरित आवरण से ढक कर रखना , यहां तक ​​कि बहुत कम पानी की उपलब्धता की स्थिति में भी ऐसे कार्य किये जाते हैं जो पहले वर्ष अपनाने से निरंतर उत्पादकता सुनिश्चित करती हैं।

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