सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश मोहन शांतनागोदर का निधन

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सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश मोहन शांतनागोदर का निधन

भुवन वर्मा बिलासपुर 25 अप्रैल 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

नई दिल्ली — उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनागोदर (62 वर्षीय) का शनिवार देर रात गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार न्यायमूर्ति शांतनागोदर को फेफड़े में कोरोना संक्रमण के चलते मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था और वे आईसीयू में थे। शनिवार को उनकी हालत स्थिर बतायी गयी थी लेकिन देर रात करीब 12:30 बजे उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने परिवार को यह दुखद समाचार दिया।हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं की गई है कि न्यायाधीश कोरोना वायरस से संक्रमित थे या नहीं। न्यायमूर्ति शांतनागोदर को 17 फरवरी 2017 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर पदोन्नत किया गया था. उनका जन्म 05 मई 1958 को कर्नाटक में हुआ था। उन्होंने 05 सितंबर 1980 को एक वकील के तौर पर पंजीकरण कराया था। उच्चतम न्यायालय में पदोन्नत किये जाने से पहले न्यायमूर्ति शांतनागोदर केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रहे।
मौलिक अधिकारों की रक्षा को लेकर उन्होंने अहम फैसला दिया था। जस्टिस शांतनागोदर ने प्रमोशन में आरक्षण मामले की सुनवाई भी की थी। कर्नाटक हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रहते हुये उन्होंने कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण तभी दिया जाये जब कर्मचारी उस पद लायक हो , इसके लिये परीक्षण होना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस शांतनागोदर ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट और मजिस्ट्रेट को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी उतनी ही है , जितनी इस देश की सर्वोच्च अदालत को है। उन्होंने कहा था कि ट्रायल कोर्ट जज और मजिस्ट्रेट को ना सुने जाने लायक मामलों को शुरुआत में ही या ट्रायल से पहले ही निरस्त कर देना चाहिये , उसे सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने का मौका ही नहीं दिया जाना चाहिये। कोर्ट में एक ही मामले में एक ही पक्ष की ओर से एक ही आरोपी के खिलाफ अलग-अलग शिकायतों को लेकर भी जस्टिस शांतनागोदर ने सख्त आदेश दिया था। जस्टिस शांतनागोदर ने कहा था कि ऐसी शिकायतें अस्वीकार्य होनी चाहिये। एक ही मामले में एक ही आरोपी पर एक पक्ष की ओर से अलग-अलग शिकायतें मान्य नहीं होंगी।

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