दशनामी सन्यासियों की परम्परा एवं कर्तव्य – पुरी शंकराचार्य
दशनामी सन्यासियों की परम्परा एवं कर्तव्य – पुरी शंकराचार्य
भुवन वर्मा बिलासपुर 05 फ़रवरी 2021
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज जी दशनामी सन्यासियों के संबंध में विस्तृत चर्चा करते हुये संकेत में उद्घृत करते हैं कि आदि शंकराचार्य महाभाग ने दशनामी सन्यासियों को वन , अरण्य , पुरी , भारती , सरस्वती , गिरि , पर्वत , तीर्थ , सागर और आश्रम में भौगोलिक आधार पर विभाजित किया एवं आदि शंकराचार्य ने इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग दायित्व सौंपे। जैसे वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को जो पुरी पीठ से संबद्ध है, इन्हें आदि शंकराचार्य ने ये दायित्व दिया कि हमारे वन (बड़े जंगल) और अरण्य (छोटे जंगल) सुरक्षित रहें, वनवासी भी सुरक्षित रहें , इनमें विधर्मियों की दाल ना गले। पुरी , भारती और सरस्वती ये श्रंगेरी मठ से जुड़े हैं, सरस्वती सन्यासियों का दायित्व है हमारे प्राचीन उच्च कोटि के शिक्षा केंद्र , अध्ययन केंद्र सुरक्षित रहें, इनमें अध्यात्म और धर्म की शिक्षा होती रहे। भारती सन्यासियों का दायित्व ये है कि मध्यम कोटि के शिक्षा केंद्र सुरक्षित रहें, यहां विधर्मियों का आतंक ना हो। पुरी सन्यासियों का दायित्व तय किया कि हमारी प्राचीन आठ पुरियों जैसे अयोध्या , मथुरा और जगन्नाथपुरी आदि सुरक्षित रहें। तीर्थ और आश्रम नाम के संन्यासी जो द्वारिका मठ से सम्बद्ध हैं , तीर्थ सन्यासियों का दायित्व तीर्थों को सुरक्षित रखना और आश्रम सन्यासियों का काम हमारे प्राचीन आश्रमों की रक्षा करना था। कुछ सालों पहले समुद्र के रास्ते से कुछ आतंकियों ने भारत वर्ष में घुसकर आतंक मचाया था। ये आदि शंकराचार्य की दूरदर्शिता ही थी कि उन्होंने ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ) से सम्बद्ध सागर सन्यासियों को समुद्र सीमाओं की रक्षा का दायित्व दिया था। सेतु समुद्रम के कारण हमें ईंधन प्राप्त हो रहा है, इसी से समुद्र का संतुलन है, राम सेतु के टूटने से रामेश्वर का ज्योतिर्लिंग भी डूब जायेगा। यूपीए सरकार के समय इसे तोड़ने के प्रस्ताव भी बन रहे थे , संतों ने आगे आकर इसे रोका। आदि शंकराचार्य की दूरदर्शिता थी कि उन्होंने सैंकड़ों साल पहले ही सागर नाम के संन्यासियों को समुद्र की रक्षा के लिये तैनात कर दिया था। गिरि और पर्वत नाम के सन्यासियों को पहाड़ , वहां के निवासी , औषधि , प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिये नियुक्त किया , ये भी ज्योतिर्मठ से संबद्ध हैं। इस प्रकार दस तरह के संन्यासियों को उनके दायित्व सौंप दिये। अगर ये दशनामी संन्यासी अपने दायित्यों को ठीक से समझते और चारों शंकराचार्य इनका ठीक से नेतृत्व करते तो आज भारत की ये दुर्दशा नहीं होती। धर्मराज्य की पुनर्स्थापना और सम्राट सुधन्वा की स्थापना के बाद आदि शंकराचार्य ने भारतीय सनातन ग्रंथों को क्रमबद्ध किया। बौद्ध धर्म में जिन ग्रंथों को दूषित कर दिया गया था, उन सबको फिर से अपनी व्याख्याओं से शुद्ध किया। ब्रह्मसूत्र आदि की व्याख्या से सूत्र विज्ञान को विकसित किया।