छत्तीसगढ़ एवम पाटेश्वर धाम के महान संत राम बालक दास द्वारा पूरे भारतवर्ष को एक मंच: प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन नियमित

0
IMG-20210117-WA0038

छत्तीसगढ़ एवम पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास द्वारा पूरे भारतवर्ष को एक मंच प्रदान करते हुए प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन नियमित

भुवन वर्मा बिलासपुर 16 जनवरी 2021


पाटेश्वर धाम । विश्व ब्रह्मांड का उद्धार करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण का अवतार लिया, भगवान के इस दिव्य आलोकित रूप ने स्वयं की वाणी में गीता का ज्ञान प्रदान किया, महाभारत के भीषण युद्ध में, अर्जुन और श्री कृष्ण के संवाद में हमें अपने संपूर्ण जीवन को पावन करने हेतु श्रीमद्भगवद्गीता प्राप्त हुई
पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा पूरे भारतवर्ष को एक मंच प्रदान करते हुए प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें वे वर्तमान में श्री कृष्ण की गीता वाणी से सभी को अवगत करा रहे हैं, जिससे सभी भक्तगण ज्ञान गंगा में गोते लगा रहे हैं, और अपने मन को पावन कर रहे हैं
आज के गीता ज्ञान में बाबा जी ने बताया कि, भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि हे अर्जुन यदि कुछ मांगते हुए भगवान की भक्ति करोगे तो भगवान उतना ही देंगे जितना आप ने मांगा है यदि बिना मांगे निस्वार्थ भाव से भगवान की भक्ति करोगे तो भगवान इतना देंगे कि आप से संभाले नहीं सम्हलेगा
यही भाव संसार में भी रखना चाहिए किसी से भी कुछ मिले यह सोचकर प्रेम ना करें, माता-पिता से संपत्ति के लिए बच्चों से बुढ़ापे के सहारे के लिए पति से विषय सुख की कामना के लिए,पत्नी से केवल भरण पोषण की कामना या वंश वृद्धि की कामना से भाई-बहन रिश्तेदारों से कुछ पाने की कामना से कभी भी प्रेम भाव नहीं करना चाहिए आप इन से जब निस्वार्थ भाव से प्रेम करोगे तो वह इतना अधिक प्रेम देंगे कि हम संभाल भी नहीं पाएंगे
हम ईश्वर से कामना बस कुछ ना कुछ मांगते ही हैं परंतु आवश्यक नहीं कि वह हमें जो देंगे वह हमें पसंद ही आए क्योंकि वे यह सोचकर नहीं देते कि वह हमें अच्छा लगेगा वह तो यह देते हैं जो हमारे लिए अच्छा होता है कभी हमें कष्ट भी मिलते हैं परमात्मा को पता है कि वही हमारे लिए अच्छा है, परमात्मा से निस्वार्थ भक्ति करते हुए आप अपने जीवन को संतुष्ट रूप से निर्वाहित करें, अपनी समस्याओं को अवश्य रूप से पिता माता समझकर भगवान के समक्ष रखना चाहिए लेकिन हर विषय में कामना करना उचित नहीं भगवान की निस्वार्थ भक्ति करें आप अवश्य ही तर जाएंगे
प्रतिदिन की भांति जिज्ञासाओं का समाधान भी बाबा जी द्वारा किया गया इस क्रम में भोलाराम साहू जी ने बाबा जी से प्रश्न किया कि उनकी यूट्यूब चैनल पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम बाबा जी की पाती के शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई, बाबा जी ने बताया कि यह शब्द ब्रह्मलीन श्रीमती शशि बाला गुप्ता जी दिल्ली के द्वारा संचालित त्रैमासिक महत्यागी कल्याण कल्पतरू पत्रिका से संबंधित है उसमें परम पूज्य मचान वाले बाबा जी दिल्ली से श्री श्री महामंडलेश्वर राम कृष्ण दास
महात्यागीजी ,जिनका एक संदेश हर अंक में छपता था, जो कि स्वयं बालक दास जी द्वारा लिखा जाता था, उसके नाम निर्माण में चुकी यह बाबा जी के एक चिट्ठी के रूप में ही संदेश जाता था तो हमने इसका नाम बाबा जी की पाती रखना ही उचित समझा
पाठक परदेसी जी ने जिज्ञासा रखते हुए प्रश्न किया कि, गायत्री गीता और गाय शब्द के महत्व पर प्रकाश डालने की कृपा हो, बाबा जी ने इस पर अपने विचार रखते हुए कहा कि यह तीनों ही शब्द गो शब्द के उच्चारण से निर्मित हुए हैं, गो शब्द का अर्थ संस्कृत में होता है इंद्रियां, रामायण में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि भगवान माया से परे हैं गुणों से परे हैं गो से भी परे हैं अर्थात इंद्रियों से भी परे हैं जो गो से परे हो जो इंद्रियों को वश में कर सके इंद्रियों का स्वामी हो इंद्रियों का शासक हो इंद्रियों के वशीभूत ना होकर इंद्रियों को वश में करने की कला उसमें हो, ऐसी अद्भुत क्षमता केवल और केवल गायत्री मंत्र से ही मिलती है गायत्री मंत्र अर्थात ध्यान धारणा समाधि गायत्री मन्त्र अर्थात सूर्य की उपासना प्रकाश की ओर चलना अग्नि पूजन यज्ञ होम करना उसी प्रकार जो गीता अध्ययन करेगा वह इंद्रियों का स्वामी होगा जो गाय की सेवा करेगा उसके पंचगव्य का सेवन करेगा वह कभी भी इंद्रियों के वशीभूत नहीं होगा
इस प्रकार आज का सत्संग सम्पन्न हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *