नीतियों के मूल में रखें मानवता — नरेन्द्र मोदी
नीतियों के मूल में रखें मानवता — नरेन्द्र मोदी
भुवन वर्मा बिलासपुर 21 दिसंबर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
नई दिल्ली — वैश्विक विकास पर चर्चा केवल चुनिंदा देशों के बीच नहीं हो सकती इसका दायरा बड़ा होना चाहिये , इसका एजेंडा व्यापक होना चाहिये , विकास का स्वरूप मानव केन्द्रित होना चाहिये और आसपास के देशों की तारतम्यता साथ होनी चाहिये। ग्रोथ पैटर्न को मानव केन्द्रित दृष्टिकोण का पालन करना चाहिये। हमें अपनी नीतियों के मूल में मानवतावाद को रखना चाहिये , हमें अपने अस्तित्व के केंद्रीय स्तम्भ के रूप में प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व बनाना चाहिये।
उक्त बाते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को बीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये छठवें भारत-जापान संवाद सम्मेलन को संबोधित करते हुये कहा। अपने संबोधन शुरुआत में प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं भारत जापान संवाद को निरंतर समर्थन देने के लिये जापान सरकार का धन्यवाद करना चाहूंँगा। यह संवाद ऐसे समय में हो रहा है जब हमें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।यह संवाद मानव इतिहास के एक महत्वपूर्ण क्षण में हो रहा है , हमारे कार्य आने वाले समय में प्रवचन को आकार देंगे। पीएम मोदी ने भगवान बुद्ध के विचारों और आदर्शों को विशेष रूप से युवाओं के बीच बढ़ावा देने के लिये किये गये महान कार्य के लिये मंच का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह मंच पिछले कुछ वर्षों में काफी विकसित हुआ है और इसने वैश्विक शांति , सौहार्द्र और भाईचारे को आगे बढ़ाने में योगदान दिया है। इस मंच ने भगवान बुद्ध के विचारों और आदर्शों को बढ़ावा देने के लिये भी बहुत काम किया है। ऐतिहासिक रुप से बुद्ध के संदेश की रोशनी दुनियाँ के कई हिस्सों में फैल गयी। बौद्ध साहित्य और दर्शन का महान खजाना कई देशों और भाषाओं में विभिन्न मठों में पाया जा सकता है। पीएम मोदी ने पारंपरिक बौद्ध साहित्य और धर्मग्रंथों के पुस्तकालय और शास्त्रों के निर्माण का भी प्रस्ताव रखते हुये कहा कि यदि ऐसा पुस्तकालय भारत में बनता है तो यह हमारे लिये खुशी की बात होगी। भारत इस सुविधा की मेजबानी करेगा और इसके लिये उपयुक्त संसाधन प्रदान करने में प्रसन्न होगा। पुस्तकालय ना केवल साहित्य का भंडार होगा बल्कि यह शोध और संबाद का भी एक मंच होगा। मनुष्य के बीच , समाज के बीच और मनुष्य – प्रकृति से बीच एक सच्चा संबाद होगा। पुस्तकालय विभिन्न देशों के सभी बौद्ध साहित्य की डिजिटल प्रतियाँ एकत्र करेगा जिसका उद्देश्य उनका अनुवाद करना होगा और उन्हें बौद्ध धर्म के सभी भिक्षुओं और विद्वानों को लिये स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराना होगा। इसके अनुसंधान जनादेश में यह जाँचना भी शामिल होगा कि बौद्ध संदेश समकालीन चुनौतियों के खिलाफ हमारे आधुनिक दुनियाँ को कैसे निर्देशित कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि अतीत में मानवता ने साम्राज्यवाद से लेकर विश्व युद्ध तक ,हथियारों की दौड़ से लेकर अंतरिक्ष की दौड़ तक अक्सर सहयोग के बजाए टकराव का रास्ता अपनाया। हमारे पास संवाद तो थे लेकिन वे एक दूसरे को नीचे खींचने के उद्देश्य से थे , लेकिन अब साथ मिलकर आगे बढ़ने का समय है। उन्होंने कहा कि संवाद ऐसा होना चाहिये जो सकारात्मकता , एकता और करूणा की भावना फैलाये।गौरतलब है कि भारत-जापान के संबंधों को मजबूत करने के लिये इंडो-जापान संवाद का आयोजन हो रहा है। भारत-जापान के बीच इस तरह का पहला संवाद सम्मेलन 2015 में बोधगया में आयोजित किया गया था. उस दौरान प्रमुख विद्वानों, धार्मिक नेताओं, शिक्षाविदों और राजनीतिक हस्तियों ने इसमें हिस्सा लिया था।