देहात्मभाव भावित संविधान से न्याय की प्राप्ति नहीं — पुरी शंकराचार्य
देहात्मभाव भावित संविधान से न्याय की प्राप्ति नहीं — पुरी शंकराचार्य
भुवन वर्मा बिलासपुर 6 दिसंबर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज उस सिद्धांत / संविधान की चर्चा करते हुये संकेत करते हैं जिसके आधार पर सृष्टि की संरचना एवं प्रयोजन निर्भर करता है। पुरी शंकराचार्य जी उद्घृत करते हैं कि किस संविधान का अनुपालन करने पर कोई ब्रह्मा हो सकता है, इंद्र हो सकता है , क्या आज के संविधान के परिपालन में सम्भव है ? कदापि नहीं।आज जो ब्रह्मा जी के पद पर हैं किसी कल्प में वे कभी बृहद् भारत में, सत्कुल में उनका जन्म था, वे मनुष्य थे, अश्वमेध यज्ञ में अधिकृत थे। उन्होंने अश्वमेध यज्ञ के अवांतर फल को ना चाह कर अश्वमेध यज्ञ के माध्यम से प्रजापति की विधिवत समर्चा की, आज जिसके फलस्वरूप वे ब्रह्मा हैं। एक मनुष्य को ब्रह्मा जी का पद देने वाला कौन है ? आधुनिक संविधान हो सकता है क्या ? इंद्र के पद को प्रदान करने वाला कौन संविधान हो सकता है ? हमारे जीवन में वह बल और वेग भरने वाला कौन संविधान हो सकता है ? कि देह त्याग के बाद, कर्म और उपासना के स्तर से स्वर्गादि लोकों में हम जा सकें । इसका अर्थ क्या है ? लौकिक उत्कर्ष, पारलौकिक उत्कर्ष और परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो जाये , अभ्युदय – निःश्रेयस दोनों फलों की सिद्धि हो जाये , ऐसा संविधान ही तो संविधान हो सकता है। तो संविधान कौन सा उत्कृष्ट हो सकता है ? श्रीमद्भागवत के अनुसार महासर्ग के प्रारंभ में सच्चिदानंद स्वरूप परमेश्वर ने आकाश, वायु, तेज, जल, पृथ्वी से मण्डित सृष्टि की संरचना की। जो प्राणी महाप्रलय के अव्यवह्यित पूर्वक क्षण पर्यंत भगवत्तत्त्व को नहीं जान पाये , जिन्हें कैवल्य मोक्ष प्राप्त हो सका। उन अकृतार्थ प्राणियों को कृतार्थ करने का अवसर प्रदान करने की भावना से सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने देह, इंद्रिय, प्राण, अंतः करण से युक्त जीवों को प्रकट किया। जीवों को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष संज्ञक पुरुषार्थ चतुष्ट्य की सिद्धि हो सके, इस भावना से भावित होकर करुणावरूणालय सच्चिदानंद स्वरूप सर्वेश्वर ने महासर्ग के प्रारंभ में आकाश आदि से मण्डित सृष्टि की संरचना की और जीवों को देह, इंद्रिय, प्राण, अंतःकरण से युक्त जीवन प्रदान किया। तो हमने संकेत किया, इस रॉकेट, कंप्यूटर, एटम और मोबाइल के युग में भी सनातन सिद्धांत को जो नहीं मानेगा वह दिशाहीन हुये बिना नहीं रहेगा। पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, प्रकृति और परमात्मा में सन्निहित जो सिद्धांत है, जिस सिद्धांत / संविधान के आधारपर सृष्टि की संरचना होती है, सृष्टि की रक्षा होती है/ पालन होता है, सृष्टि का संहार होता है, उसको जब तक नहीं समझेंगे तब तक जो संविधान विनिर्मित होगा वो दिशाहीन किये बिना नहीं रहेगा। देहात्मभाव भावित संविधान न्याय दे ही नहीं सकता। क्योंकि उसमें पाप-पुण्य का उल्लेख नहीं, पूर्वजन्म-पुनर्जन्म में आस्था नहीं। वह संविधान अर्थ और काम तक ही सीमित रहेगा। और अर्थ तथा काम को इस तरह से परिभाषित करेगा जिसके गर्भ से अनर्थ और पिशाचवृत्ति निकले बिना ना रहे। ऐसे संविधान का आश्रय लेकर प्रगति का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। संविधान की आधारशिला तब स्वस्थ मानी जाती है जब आप इस आधारशिला को मानें कि — देह के नाश से जीवात्मा का नाश नहीं होता, देह के भेद से जीवात्मा में भेद की प्राप्ति नहीं होती। जिस संविधान से शिक्षा, रक्षा, अर्थ, सेवा और स्वच्छता के प्रकल्प सबको संतुलित रूप में प्राप्त हो सकें वही संविधान सबके लिये सुमङ्गलकारी होता है। सृष्टि की संरचना का जो प्रयोजन है, पृथ्वी, पानी, प्रकाश, पवन ये सब जिस अधिनियम का पालन करते हैं, उन सब का अनुशीलन करके त्रिकालदर्शी महर्षियों के द्वारा जो संविधान बनाया गया है, उसके विपरीत चलने पर विप्लव ही विप्लव हो सकता है। अतः इस रॉकेट, कंप्यूटर, एटम और मोबाइल के युग में भी सनातन सिद्धांत की उपयोगिता पूर्ववत् चरितार्थ है।