सनातनियों के विरुद्ध मैकाले की कूटनीतियांँ — पुरी शंकराचार्य
सनातनियों के विरुद्ध मैकाले की कूटनीतियांँ — पुरी शंकराचार्य
भुवन वर्मा बिलासपुर 30 नवम्बर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज मैकाले द्वारा सनातन धर्म एवं सनातनियों के बिरूद्ध कूटनीतिक चाल को उद्भासित करते हुये संकेत करते हैं कि अंग्रेजो की कूटनीति के कारण देश दिशाहीन है। मैकाले की कूटनीति को अभिशाप ना समझकर यहां का शासनतंत्र वरदान समझता है, मैकाले की छ: कूटनीतियांँ थीं।पहली कूटनीति थी क्लास और को-ऐजुकेशन ,दूसरी कूटनीति थी कोर्ट और तीसरी कूटनीति थी क्लब । इन तीन कूटनीतियों को मैकाले ने उद्भासित किया था। उसकी योजना क्या थी वो आजकल क्रियान्वित है । शिक्षा , न्याय और संस्कृति के नाम पर , क्लास , कोर्ट और क्लब के नाम पर सनातन वैदिक आर्य हिन्दुओं के शील , समय , सम्पत्ति और संबंध का विलोप कर दो। किसी संस्कृति और राष्ट्र के जो नागरिक होते हैं उनके शील , सम्पत्ति , संबंध और समय का विलोप कर दिजिये उस संस्कृति और राष्ट्र का नैतिक और आर्थिक पतन आरंभ हो जायेगा । फिर भी सनातन धर्मी नहीं माने तो मैकाले ने और अंग्रेजों ने चौथी कूटनीति चली की वेद की व्याख्या अपने अनुकूल ऐसे व्यक्तियों से करवा दो की वेद के नाम पर ही वैदिक सिद्धांत की हत्या कर दी जाये और उसमें अंग्रेज सफल हुऐ ये उनकी चौथी कूटनीति थी। पांँचवी कूटनीति मैकाले की यह थी कि वर्णाश्रम व्यवस्था जो कि इनके सनातनी हिन्दुओं के उत्कर्ष का मूल है उस वर्णाश्रमम व्यवस्था के प्रति इनके मन में अनास्था उत्पन्न कर दो मनुवादी कहलवाना आरंभ कर दो । छठी कूटनीति थी ईस्वी सन से 507 वर्ष पूर्व भगवत्पाद आदि शंकराचार्य अवतीर्ण हुये उनके अवतरण काल को आठवीं शताब्दी में ला कर रख दो उनको आठवीं शताब्दी का सिद्ध कर दो और हिन्दुओं का विश्व का सार्वभौम कोई आध्यात्मिक , धार्मिक गुरु ना रह जाये , गली गली में जगदगुरु बनकर पन्थाई लोग घूमने लगें और जितने तंत्र , जितने वर्ग , जितने पंथ उतने जगद्गुरु हो जायें बल्कि एक-एक तंत्र में सौ सौ जगद्गुरु बन जायें ताकि स्वस्थमार्गदर्शन ना मिलने के कारण गुरु के नाम पर ही हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श का विलोप हो जाये । ध्यान देने योग्य बात यह है की इस 21वीं शताब्दी में भी अगर राजतंत्र के दिन लद गये तो अंग्रेजो ने अपने यहां क्यों विक्टोरिया से भी अधिक समय से शासन कर रही ऐलिजा़बेथ को पाल के रखा है ? किसी ना किसी रुप में अंग्रेजो ने अपने यहांँ क्यों राजतंत्र को सुरक्षित रखा है ? इस 21वीं शताब्दी में यदि शंकराचार्य के दिन लद गये तो क्यों उन्होंने अपने यहां पोप की गद्दी को सुरक्षित रखा है ? रिलिजन , मजहब , पंथ के सार्वभौम गुरु ही नहीं पोप राष्ट्राध्यक्ष और सेनाध्यक्ष भी होते हैं । इसी भारतवर्ष में विस्थापित होकर अतिथि के रुप में दलाई लामा जी 50 वर्षों से निवास कर रहे हैं । उनकी परम्परा के अनुसार वे बौद्धों के सार्वभौम धर्मगुरु ही नहीं राष्ट्राध्यक्ष और सेनाध्यक्ष भी होते हैं । लेकिन अंग्रेजो की कूटनीति एक राजनेता को राजगद्दी दे दी, प्रधानमंत्री बना दिया और एक राजनेता को महात्मा, आध्यात्मिक मनीषी के रुप में ख्यापित करवा दिया। राजनेता ही राजगद्दी और व्यासगद्दी के पुरोधा बना दिये गये, फिर विनोबा जी ले आये गये फिर दलाई लामा जी ले आये गये । परंपरा से सनातन धर्मियों के सार्वभौम जगदगुरु शंकराचार्य को आध्यात्मिक सार्वभौम धर्मगुरु और आध्यात्मिक न्यायाधीश , राष्ट्राध्यक्ष ना रहने दिया जाये , अंग्रेजों की इस कूटनीति का क्रियान्वयन अब स्वतंत्र भारत के राजनेता कर रहें हैं ।