सर्वधारक, सर्वाधार, सर्वतारक धर्म है सनातन धर्म — पुरी शंकराचार्य
सर्वधारक, सर्वाधार, सर्वतारक धर्म
है सनातन धर्म — पुरी शंकराचार्य
भुवन वर्मा बिलासपुर 20 नवम्बर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जगन्नाथपुरी — हिन्दू राष्ट्र संघ के प्रणेता, हिन्दू धर्म के सार्वभौम धर्मगुरु श्रीगोवर्द्धनमठ पुरी पीठ के श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाभाग सनातन धर्म की विविध विशेषता के संबंध में चर्चा करते हुये संकेत करते हैं कि विश्व के लौकिक और पारलौकिक सर्वविध उत्कर्ष की जिसमें सर्वविध क्षमता सन्निहित है, अज्ञता और विद्वेषपूर्वक उस धर्म का तिरस्कार सर्व अनर्थों का मूल है। यद्यपि वैज्ञानिक आविष्कारों और अनुसंधानों ने सनातन धर्म की उत्कृष्टता सिद्धकर इसकी सनातनता को स्वीकार किया है, तथापि प्रचार तन्त्र की प्रचुरता और पाश्चात्य जगत् की भूमिका ने बाईबिल आदि की उपयोगिता पर ही विश्व का ध्यान केन्द्रित कर रखा है। भारत में पाश्चात्य जगत् की अपेक्षा विज्ञान को कम प्रोत्साहन और वैदिक वाङ्गमय के प्रति उदासीनता तथा उसकी अवहेलना और सर्वथा विपरीत शासनतन्त्र , व्यापारतन्त्र तथा प्रचार प्रसार की प्रणाली ने सनातनियों को अत्यन्त तिरस्कृत कर दिया है। भारतीय संविधान, शिक्षा पद्धति, चुनाव पद्धति और प्रचार तन्त्र को भारतीय संस्कृति के अनुरूप परिष्कृत करने की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में सनातन धर्म की दार्शनिकता, वैज्ञानिकता और व्यावहारिक धरातल पर उपयोगिता विश्वस्तर पर सिद्ध करने की आवश्यकता है। सर्वधारक, सर्वाधार, सर्वतारक धर्म सनातन धर्म है , सर्वविध उत्कर्ष का विधायक धर्म सनातन धर्म है। महाप्रलय के पश्चात प्रति महासर्ग के प्रारम्भ में श्रीहरि के नि:श्वासभूत वेदों में सन्निहित तथा सनातन सर्वेश्वर श्रीहरि के द्वारा सनातन ब्रह्मादि महर्षियों को उपदिष्ट धर्म सनातन धर्म है । सनातन धर्म के साथ सनातन सर्वेश्वर का अभिव्यङ्ग्य – अभिव्यङ्जक तथा स्थाप्य — स्थापक भाव सम्बन्ध है। इस धर्म के मार्ग पर चलने वाला अपने नित्य शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, सच्चिदानन्द स्वरूप का साक्षात्कार करके परमात्मस्वरुप हो जाता है। सनातन सर्वेश्वर से समुत्पन्न और संरक्षित तथा स्वयं सनातन एवम् सनातन जीवों को सर्वेश्वर को प्राप्त कराने वाला धर्म सनातन धर्म ही है । मनुस्मृति, अथर्ववेद, महाभारत अनुशासन पर्व आदि में वर्णित वचनों के अनुशीलन से सिद्ध है कि धर्म नित्य अर्थात सनातन है, वह शुद्ध और समाहित अतीन्द्रिय मन से ग्राह्य है। सनातन सर्वेश्वर की प्राप्ति के लिये सनातन जीवों द्वारा समनुष्ठित होने पर उसका फल भी सनातन मोक्ष ही होता है । वेद और वेदोक्त कर्म, योग, ज्ञान, विज्ञान तथा धर्मादि की स्फूर्ति सनातन सर्वेश्वर से ही सम्भव है, महाभारत भीष्मपर्व के अनुसार अव्यय सर्वेश्वर से सनातन धर्म संरक्षित है ।