हमारे ईश्वर जगत बनाते हैं और जगत बनते भी हैं – पुरी शंकराचार्य

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हमारे ईश्वर जगत बनाते हैं और जगत बनते भी हैं – पुरी शंकराचार्य

भुवन वर्मा बिलासपुर 03 नवम्बर 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज वेदों में सन्निहित ज्ञान विज्ञान को उद्भाषित करते हुये संकेत करते हैं कि जिस ज्ञानवान, इच्छावान , प्रयत्नवान , चैतन्य मेकेनिक या इंजिनियर ने लोहा और प्लास्टिक नामक मेटर को माइक नामक यंत्र का रूप प्रदान किया , उसमे माइक बनाने की क्षमता सन्नहित थी परन्तु माइक बनने की क्षमता सन्नहित नहीं थी , उसी प्रकार जिस प्लास्टिक , लोहा नामक पदार्थ या मेटर में माइक बनने की क्षमता तो सन्नहित थी , माइक बनाने की क्षमता नहीं थी। इसी प्रकार वैदिक अवैदिक विविध प्रकार के ईश्वरवादी होते है , उनमें अधिकांश ईश्वरवादी वे है जिनका ईश्वर जगत बना तो सकता है जगत बन नहीं सकता। उदाहरण के लिये हम केवल वैदिक द्रष्टि से विचार करना उचित समझते है , अवैदिक दृष्टि से विचार करने पर सत्य को सामने रखने पर भी हो सकता है। आज के तनावपूर्ण वातावरण में कोई हमारे विचार को अन्यथा रूप दे सकता है ! वैशेषिक , नैयायिक ईश्वर का आस्तित्व मानते है वेदों के आधार पर , लेकिन उनका ईश्वर जगत बना तो सकता है जगत बन नहीं सकता , सेश्वर सांख्यवादी , योगी भी ईश्वर का आस्तित्व मानते है , पाशुपत मत के पक्षधर भी ईश्वर का आस्तित्व स्वीकार करते है लेकिन उनका ईश्वर भी जगत बना तो सकता है जगत बन नहीं सकता है ! परन्तु वेदान्तः प्रस्थान के अनुसार जो ईश्वर सिद्ध होता है वह जगत बनाता भी है जगत बनता भी है , इससे अधिक ऊँचा विज्ञान और क्या होगा ? द्रष्टान्तः सिद्धि नामक दोष भी नहीं है।

महाराजश्री ने मुण्डक उपनिषद के अनुसार एक उदाहरण देते हुये कहा मकड़ी से हम सब परिचित है , जाला बनाने की सामग्री अपने अन्दर संजोकर रखती है और जाले को बनाने की ही भावना से जाला बना भी देती है उसी सामाग्री से , इसका अर्थ जाला बनाने वाली भी मकड़ी होती है और जाला बनाने की सामाग्री भी अपने अन्दर संजोकर रखती है , जिस प्रकार मकड़ी जाला बनाने का उपादान और निमित्त दोनों कारन होती है , उसी प्रकार जो सच्चिदानंद स्वरुप सर्वेश्वर है वे जगत बनाते भी है जगत बनते भी हैं।

दूसरा उदाहरण देते हुये महाराज जी ने संकेत किया कि सिद्ध योगी अपने संकल्प के बल पर व्याघ्र के रूप में अपने को दिखा देता है , उसको हम योग की भाषा में योगाव्याघ्र कहते है , योगाव्याघ्र को बनाने वाला भी योगी होता है और योग्व्याघ्र बनने वाला भी योगी होता है तो सबसे चमत्कार पूर्ण वैज्ञानिक तो भगवान ही है , जिनकी सिद्धि वेदों के द्वारा ही होती है वे जगत बनाते भी है जगत बनते भी है।

आजकल के विज्ञान की दृष्टि से विचार करें तो वैज्ञानिक कह सकते है कि MATTER IS NOTHING BUT ENERGY जो पदार्थ में विविधता परिलक्षित है उसके मूल में एक ऊर्जा एक शक्ति काम करती है ,लेकिन उन वैज्ञानिको से पूछा जाये कि उस ऊर्जा , एनर्जी या शक्ति का जगत परिणाम है या विवर्त , वह जड़ है या चेतन इन प्रश्नों का उत्तर आधुनिक वैज्ञानिको के पास नहीं है , लेकिन हमारे वेद में उसी का नाम ईश्वर है , वह सच्चिदानन्द स्वरूप और चैतन्य है ।

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