दुर्गा महानवमीं विशेष – अरविन्द तिवारी की ✍️ कलम से
दुर्गा महानवमीं विशेष – अरविन्द तिवारी की ✍️ कलम से
भुवन वर्मा बिलासपुर 25 अक्टूबर 2020
रायपुर – या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
— हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। मांँ दुर्गा की नौंवी शक्ति अर्थात नवदुर्गाओं में माँ सिद्धदात्री अंतिम स्वरूप है। सिद्धि का मतलब आध्यात्मिक शक्ति और दात्री यानि देने वाली अर्थात माता सिद्धीदात्री अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये सभी प्रकार के सिद्धियों को देने वाली है । आज नवरात्रि पूजन के अंतिम दिवस शास्त्रीय विध विधान एवं पूर्ण निष्ठा के साथ इनकी उपासना की जाती है। इस दिन साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिये अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। वे इनकी कृपा से अनंत दुख रूपी संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। देव , गंधर्व भी सिद्धियों को प्राप्त करने के लिये माँ सिद्धिदात्री की आराधना करते हैं।भगवान शिव जी ने इस देवी की कृपा से सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं एवं इनकी कृपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था और इसी कारण शिवजी अर्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुये। हिमाचल का नंदा पर्वत इनका प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार यह देवी केतु ग्रह को नियंत्रित करती है। कई जगह तो अष्टमी को ही कन्या भोज और हवन हो गया वहीं कई जगह आज नवमीं को कन्या भोज और हवन होगा। चूकि दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं इसीलिये सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जाती है। देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार आहुति देनी चाहिये।
माता सिद्धिदात्री का स्वरूप
माँ सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं और वे शेर की सवारी करती हैं। उनकी चार भुजायें हैं जिनमें दाहिने एक हाथ में वे गदा और दूसरे दाहिने हाथ में चक्र तथा दोनों बायें हाथ में क्रमशः शंख और कमल का फूल धारण की हुईं हैं। देवी का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है और इनकी पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। माता की उपासना में हल्के बैंगनी रंग के वस्त्रों को धारण करें। माता सिद्धिदात्री की पूजा में नौ तरह के फल-फूल अर्पित किये जाने का विधान है। मोक्ष की प्राप्ति के लिये मांँ सिद्धिदात्री पर केले का भोग लगायें। “ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥” के साथ निम्न मंत्र से माँ का ध्यान करना चाहिये।
— सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
भगवती सिद्धिदात्री का ध्यान, स्तोत्र व कवच का पाठ करने से ‘निर्वाण चक्र’ जागृत हो जाता है। वहीं इस दुर्गा महानवमीं के अगले दिन दशमीं मनायी जाती है , इस दिन माँ दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।