मिसाइलमैन की जयंती पर देश ने किया पुण्य स्मरण
मिसाइलमैन की जयंती पर देश ने किया पुण्य स्मरण
भुवन वर्मा बिलासपुर 15 अक्टूबर 2020
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
नई दिल्ली — मिसाइलमैन कहे जाने वाले देश के महान वैज्ञानिक और ग्यारहवें राष्ट्रपति डॉ० एपीजे अब्दुल कलाम (अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम) की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित कई दिग्गजों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुये नमन किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि चाहे वह वैज्ञानिक के रुप में हो या राष्ट्रपति के रुप में , राष्ट्र कभी उनके योगदान को नही भूल सकता। भारत की प्रगति में सबसे बड़ा योगदान देने वाले डॉ. अब्दुल कलाम आज भी सबके दिलों में बसे हैं। उनकी मेहनत और सफलता की ओर अग्रसर रहने की चाह ने बहुतों को प्रेरणा दी है। उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक मध्यवर्गीय मुस्लिम अंसार परिवार में जैनुलाब्दीन (पिता) और आशियम्मा (माता) के घर हुआ था। इनके पिता नाविक का काम करते थे और ज्यादा पढ़े लिखे भी नहीं थे। वे मछुआरों को नाव किराये पर देते थे और ईमान , बुद्धि , उदारता , देशप्रेम से परिपूर्ण थे। इनकी माता घरेलू , धर्मपरायण , और दयालु महिला थी , उनका कलाम साहब की परवरिश पर खास प्रभाव पड़ा। उन्होंने अपने माता पिता के सीख को अपने जीवन में बखूबी उतारा , वे सपनों को सच करने में यकीन करते थे। अब्दुल कलाम का बचपन गरीबी और संघर्षों से गुजरा था। पांँच भाई और पांँच बहनो के परिवार को चलाने के लिये उनके पिता को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। ऐसे में होनहार और होशियार अब्दुल कलाम को अपनी शुरूआती शिक्षा को जारी रखने के लिये अखबार बेचने का काम करना पड़ता था। आठ साल की उम्र में ही कलाम सुबह चार बजे उठ जाया करते थे। इसके बाद अपने नित्यक्रम से निवृत्त होकर वह गणित की पढ़ाई करने चले जाते थे। ट्यूशन से आने के बाद कलाम सीधे रामेश्वरम रेलवे स्टेशन जाते और बस अड्डे पर अखबार बांँटने लगते थे , बचपन में ही आत्मनिर्भर बनने की तरफ उनका यह पहला कदम रहा। उस वक्त उनके घर में बिजली नही थी जिस कारण वे दीपक जलाकर उसकी रोशनी में पढ़ाई किया करते थे। वैज्ञानिक के रुप में कलाम ने सितंबर 1985 में त्रिशूल मिसाइल , फरवरी 1988 में पृथ्वी मिसाइल और मई 1989 में अग्नि मिसाइल का परीक्षण किया। इसके बाद 1998 में रूस के साथ मिलकर सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया , फिर ब्रह्मोस प्राईवेट लिमिटेड की स्थापना की गयी। ब्रह्मोस को जमीन , आसमान और समुद्र कहीं भी दागा जा सकता है। इस सफलता के बाद ही कलाम को “मिसाइलमैन” के रूप में ख्याति मिली। डाॅ. कलाम के इस जज्बे को सलाम करते हुये देश उन्हें मिसाइलमैन के नाम से संबोधित करता है। पहले वे वैज्ञानिक नही बल्कि पायलट बनना चाहते थे लेकिन उनका यह सपना एक कदम दूर रह गया। इन्होंने तब 25 उम्मीद्वारों में नौवाँ स्थान हासिल किया जबकि वहाँ आठ लोगों का ही चयन होना था। इसके बाद वे अपने नई राह पर चल पड़े थे। डाॅ. कलाम को 1981 में भारत सरकार ने पद्म भूषण, 1990 में पदम् विभूषण और 1997 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। कलाम ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे, जिनको ये पद मिलने से पहले ही भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका था। इससे पहले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ. जाकिर हुसैन भी राष्ट्रपति पद पर आने से पहले भारत रत्न से सम्मानित हो चुके थे. डॉ. कलाम को 1997 में भारत रत्न मिला था, जबकि वो 2002 में राष्ट्रपति पद के लिये चुने गये थे , वे भारत के इकलौते राष्ट्रपति थे, जो कुंवारे थे। दुनियाँ जानती है कि डा. कलाम ने शादी नहीं की, उनकी कोई औलाद नहीं थी। लेकिन उनका बच्चों से प्रेम बेशुमार था। एक बार उनसे किसी विदेशी पत्रकार ने ऐसा ही सवाल पूछा, कि आपकी कोई संतान नहीं है, फिर भी आप बच्चों से इतना प्यार करते हैं क्यों ? कलाम साहब मुस्कुराए और बडी शालीनता से बोले, मेरे तीन बच्चे हैं पृथ्वी, अग्नि और ब्रह्मोस। यकीनन राष्ट्रप्रेम और भारत को दुनिया के मानचित्र में विकसित देशों की श्रेणी में लाने का उनका प्रयास ही उनका वास्तविक प्रेम था। जिसके परिणाम स्वरूप भारत के करोड़ों बच्चों की आज भी कलाम साहब पहली पसंद हैं। वे 18 जुलाई 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुये थे। इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एनडीए घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया था। उन्होंने 25 जुलाई 2002 को उन्होंने संसद भवन के अशोक कक्ष में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी और 25 जुलाई 2007 को उनका कार्यकाल समाप्त हो गया था। कलाम के राष्ट्रपति रहते दया याचिकाओं को लेकर काफी विवाद रहा। डॉ० कलाम ने 21 में से केवल एक दया याचिका का ही निबटारा किया। कोलकाता में 15 साल की बच्ची का रेप, मर्डर करने वाले धनजंय चटर्जी की दया याचिका जरूर उन्होंने खारिज की, जिसे बाद में फांँसी पर लटका दिया गया, बाकी दया याचिकाओं पर उन्होंने कोई फैसला नहीं लिया। डॉ. कलाम की लोकप्रियता और योगदान का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उनके जन्मदिन यानी 15 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र हर साल विश्व छात्र दिवस के तौर पर मनाता है। इस दिन स्कूलों में तरह-तरह के कार्यक्रमों का आयोजन होता है। राष्ट्रपति पद से हटने के बाद डा० कलाम 27 जुलाई 2015 को आईआईएम, शिलांग में ‘Creating a liveable planet’ पर लेक्चर देते हुये गिर पड़े थे।जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया , जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। इस महान शख्स ने दुनियाँ को सदा के लिये अलविदा भले ही कह दिया है लेकिन लोगों के दिलों में वो आज भी मौजूद हैं।