किसानों के हक में नहीं है केंद्र सरकार की कृषि बिल: बैजनाथ चंद्राकर अध्यक्ष अपेक्स बैंक

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किसानों के हक में नहीं है केंद्र सरकार की कृषि बिल: बैजनाथ चंद्राकर अध्यक्ष अपेक्स बैंक

भुवन वर्मा बिलासपुर 26 सितंबर 2020

रायपुर/बिलासपुर । देश में कृषि से संबंधित लाये गये कानून कृषि को निजिकरण की ओर ले जाने की दिशा में एक पहल प्रतीत होता है। इतने महत्वपूर्ण निर्णय पर देश के कृषकों की राय न लेकर यह जल्दबाजी में लाया गया एक कानून हैं और इसलिये इस कृषि बिल के उद्देश्य पर देश के नागरिकों और जन प्रतिनिधियों ने प्रश्न चिन्ह लगाये है।

भारत कृषि प्रधान देश है। यहां की अर्थव्यवस्था खेती पर आधारित है और खेती करना अब जोखिम भरा हो गया है। मानसून और प्राकृतिक विपदाओं से जुझते हुए किसान यदि अच्छी पैदावारी कर भी लेता है तो उनके सामने उपजों की उचित मूल्य न मिलने की समस्या आती है। केन्द्र सरकार ने कृषि उत्पाद एवं वाणिज्य] आवश्यक वस्तु भंडारण अधिनियम] न्यूनतम समर्थन मूल्य] विपणन] ट्रेड एंड ट्रेड] कृषि प्रसंस्करण आदि गम्भीर मुद्दों पर बिना चर्चा के ही तीन कृषि बिलो को संसद में पारित कर दिया है। केन्द्र सरकार को बिलों के प्रावधानों पर पहले संसद में व्यापक विचार विमर्श किया जाता है। प्रश्न यह उठता है कि इतनी जल्दबाजी में कृषि बिल क्यों पारित किया गया। क्या कोविड से निपटने के बाद बिल को नही लाया जा सकता था। क्या केन्द्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य जो वह स्वयं घोषित करती है उससे कम मूल्य में कृषि उत्पाद नही
बिकेगी। ऐसी गारंटी कृषकों को देगी क्या….? कान्टेक्ट फार्मिंग में न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नही किया गया है। स्पष्ट है केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी से बचना चाहती है। क्या ये छोटे-छोटे किसानों की जमीने लेकर भविष्य में बड़े उद्योगपतियों द्वारा निजीकरण की दिशा में कदम नही होगा। कृषि बिल से लघु एवं सीमांत किसान की हितों को ज्यादा प्रभावित करेगा। साथ ही यह राज्य सरकार के हितों की रक्षा नही करेगा। राज्य सरकार मंडी समितियां बनाती है। प्रत्येक मंडी के कार्यक्षेत्र में लगभग 200 से 250 गांव आता है । नया कृषि बिल राज्य सरकारी की मंडियों के खिलाफ है। निजि मंडी खोला जावेगा और इससे बड़े-बड़े खरीदारों] कॉर्पोरेट का ही फायदा मिलेगा। किसान की उपज का मूल्य बड़ी कंपनियां तय करेगी और यह ये कंपनियां अपनी मनमर्जी से काम करेगा। नये कानून से किसान] कमीशन एजेंट एवं राज्य सरकार तीनों का हित प्रभावित होगा। केन्द्र सरकार की कृषि विधेयक के लागू होने से छ0ग0 सरकार द्वारा वर्तमान में किसानों के हित में चलाये जा रहे कल्याणकारी नीतियां जैसे प्रति कविन्टल रूपये 2500-00 में धान खरीदी व बोनस की राशि देने में बाधा उत्पन्न होगा। इस बिल के लागू होने से छत्तीसगढ़ के मेहनतकश किसानों को उनके धान का वाजिब दाम नही मिल पायेगा। साथ ही छ0ग0के गरीब किसान] खेतीहर मजदूरों एवं जरूरत मंद लोगों को सस्ते दर पर चावल एवं गेंहू जैसे खाद्यान उपलब्ध कराने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। टेड एरिया प्रावधानों से छोटे एवं सीमांत किसान को नुकसान उठाना पड़ेगा। आवश्यक वस्तु अधिनियम (भंडारण नियम से बड़े व्यापारियों को कालाबाजारी करने की छूट मिलेगा एवं जमाखोरी बढ़ने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ेगी। दूसरे अध्यादेश मूल्य आश्वासन पर बंदोबस्त एवं सुरक्षा समझौता कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में ट्रेडर यानि इसमें प्रोसेसर एक्सपोर्ट व्होलसेलर] मिलर एवं रिटेलर को भी जोड़ा गया है।
राज्य सरकार में भी कमीशन एजेंट को परीक्षण कर लाईसेंस देती है। सरकार को उन पर भरोसा होता है। नया कृषि बिल में इन कमीशन एजेंटों के अलावा वे सभी लोग काम करेंगे जो गैर लाइसेंसी है। ऐसे गैर लाइसेंसी लोग को पैनकार्ड के आधार पर खरीदने की इजाजत होगी। किसानों का ऐसे फ्राड लोगों का भी सामना करना पड़ सकता है।

ऐसे समय जबकि सम्पूर्ण भारत में कोविड-19 की वजह से नागरिकों का जीवन संकट के दौर से गुजर रहा है तब हमारे देश के किसान जी-जान से मेहनत कर देश को अन्न की समस्या न होने देने हेतु रात-दिन एक कर देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। ऐसे में उन्हें और ताकत देने के बजाय केन्द्र सरकार कृषि क्षेत्र को कमजोर कर किसानों को हतोत्साहित करने का काम कर रही है। आज जब कृषि का क्षेत्र किसानों की मेहनत से धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की ओर जा रहा है, ऐसे समय में उन्हें बिना विश्वास में लिये गये निर्णय क्या भविष्य में धातक नही होगे। अभी भी समय है केन्द्र सरकार इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने के बजाय सम्पूर्ण देश से इस कृषि बिलों के संबंध में विचार – विमर्श कर इस किसान विरोधी व उत्पादन विरोधी तीनों कृषि विधेयक को वापस लेना चाहिए।

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