बस्तर के पठार में होगी अब बस्तरिहा नारियल की खेती
बस्तर के पठार में होगी अब बस्तरिहा नारियल की खेती, विश्व नारियल दिवस पर शहीद गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय की सफलता का पहला कदम
भुवन वर्मा बिलासपुर 2 सितंबर 2020
जगदलपुर- बस्तर के पठारों में स्थानीय किस्मों के नारियल की व्यवसायिक खेती संभव होने जा रही है। स्थानीय किस्में इसलिए संवर्धित और संरक्षित की जा रही है ताकि इसके जरिए व्यावसायिक खेती आकार ले सके और आदिवासी किसान अपनी आय का जरिया बढा सके। दिलचस्प बात यह है कि इन स्थानीय किस्मों के नारियल के पेड़ों के साथ सब्जी और फूलों की खेती भी सफलतापूर्वक की जा सकेंगी।
बुधवार को विश्व नारियल दिवस बस्तर के लिए अनोखी सौगात लेकर आ रहा है। वैसे इसे अकेले बस्तर तक ही सीमित रखा जाना उचित नहीं होगा क्योंकि जो उपलब्धियां शहीद गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र ने हासिल की है वह पूरे छत्तीसगढ़ के लिए गौरव का विषय कहीं जा सकती है। दरअसल गौरव के इस पल के लिए 1987-88 मैं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा बस्तर में अनुसंधान और नारियल की खेती को बढ़ावा देने के लिए परियोजना की शुरुआत की गई। कमान डॉक्टर पीके सलाम और डॉक्टर श्रीमती बीना सिंह को सौंपी गई। अखिल भारतीय ताड़ अनुसंधान परियोजना के तहत पूरे प्रोजेक्ट पर नजर रखने मार्गदर्शन और दिशा निर्देश के लिए डीन एच सी नंदा ने जिम्मेदारी संभाली। अब यह अनुसंधान पूरा होने जा रहा है और छह ऐसी स्थानीय नई प्रजातियां खोजी गई है जिनके जर्म प्लाज्मा से नारियल की खेती को प्रदेश में नई पहचान मिलेगी।
इसलिए स्थानीय प्रजाति
अधिष्ठाता डॉ एच सी नंदा के मार्गदर्शन में परियोजना टीम का शुरू से ही प्रयास था कि जो जिम्मेदारी उन्हें दी गई है उसमें स्थानीय किस्मों के संवर्धन और संरक्षण पर जोर देना होगा क्योंकि इन प्रजातियों के दम पर ही सफलता का मुकाम हासिल किया जा सकेगा। इसलिए 33 साल पहले किए गए मेहनत ने अब जाकर सफलता की ओर पहला कदम बढ़ा दिया है। अब 6 स्थानीय किस्मों के जर्म प्लाज्मा की पहचान कर उनमें से श्रेष्ठ प्रजाति की किस्मों को बढ़ावा दिए जाने का काम बस्तर के पठारों में उतरता दिखाई दे रहा है।
तीन फसलों का मिलेगा अतिरिक्त लाभ
शहीद गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र ने जिन नई प्रजातियों की उसकी खोज की है उनके पेड़ों के बीच तीन किस्म की फसलें अतिरिक्त रूप से ली जा सकेंगी। फूल सब्जी और नारियल के अवशेष से खाद जिनसे मशरूम की खेती संभव हो सकेगी। फूलों में गेंदा, रजनीगंधा,ग्लेडियोलस ,गेर्लाडिया मुख्य होंगे तो सब्जियों में कोचई , जिमीकंद, लौकी, लोबिया, अमरूद, केला दालचीनी कालीमिर्च और आमी हल्दी मुख्य होगी। तीसरा लाभ नारियल के अवशेषों से खाद के रूप में मिलेगा जिसके जरिए मशरूम की फसल के लिए मदद मिलेगी।
प्रदर्शन खेती के लिए तैयार
बस्तर के पठार में व्यवसायिक खेती के पहले स्थानीय प्रजातियों के जर्म प्लाज्मा के माध्यम से जो पौधे तैयार किए जा रहे हैं उनके 1850 पौधों का वितरण प्रदर्शन खेती के लिए 10 गांव के 11 किसानों को दिए गए हैं। आने वाले कुछ सालों में इन से हासिल होने वाले नारियल न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि देश में बस्तर को नई पहचान दिलाएंगे।
“बस्तर के पठारों में स्थानीय प्रजातियों के नारियल की किस्मों की व्यवसायिक खेती की प्रबल संभावनाएं हैं। खोज में 6 प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है जिनके जर्म प्लाज्मा से पौधे तैयार किए जा कर प्रदर्शन खेती के लिए किसानों को दिए गए हैं” – डॉ एच सी नंदा, डीन, शहीद गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र जगदलपुर।