पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद जी का श्रीरामजन्मभूमि पर मंतव्य

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भुवन वर्मा बिलासपुर 24 जुलाई 2020

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

जगन्नाथपुरी — श्रीराम मंदिर मामले के बारे में अनन्तश्रीविभूषित श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने मीडिया को अपना मंतव्य देते हुये कहा कि श्रीराम जन्मभूमि को लेकर सारे प्रकल्प जो यहांँ की समिति की स्थिति है उससे भी विकट स्थिति वहांँ की है , मुझसे कुछ पूछा नहीं गया है। मैं भावुकता में आकर नहीं आपको केवल सूचना देता हूंँ कि नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री काल में रामालय ट्रस्ट बना था। तब मेरे अतिरिक्त मान्य शंकराचार्यों ने और बहुत से वैष्णवाचार्यों ने उस ट्रस्ट पर हस्ताक्षर किया था। मैंने नहीं किया था मैं तो पद पर नया प्रतिष्ठित था , फिर भी नहीं किया। जो कार्य अभी होने जा रहा है वो नरसिम्हा राव के शासनकाल में ही सम्पन्न हो गया होता। जबकि मैं इस पद पर नया नया आया था फिर भी भगवान कृपा से इतना प्रभाव था कि मेरे हस्ताक्षर ना करने के कारण मेरी उपेक्षा नरसिम्हा राव नहीं कर सके। उनके उपेक्षा करने पर भी मैं मौन ही रहता। लेकिन नरसिम्हा राव ने मुझे प्रबल समझा होगा,मैं अपने को प्रबल नहीं समझता। तो अभी जो योजना क्रियान्वित होने वाली है वो तो फिर नरसिम्हा राव के समय ही सारी योजना क्रियान्वित हो जाती।
अभी तो ये योजना क्रियान्वित है कि मंदिर से लगभग 20 किलोमीटर दूर मस्जिद बने लेकिन उस समय योजना थी थोड़ी दूर पर मस्जिद भी बन जाये और मंदिर भी बने।अभी राममंदिर को लेकर जो चर्चा चल रही है अगर मैं उस समय हस्ताक्षर कर दिया होता तो मंदिर मस्जिद उसी समय अगल बगल बन जाता , मैं यह समझता हूँ कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री जी को यह बात मालूम ही होगा। मैंने उस समय भी राममंदिर का विरोध तो नहीं किया था। राममंदिर के अतिरिक्त अन्य जो प्रकल्प थे वो भविष्य की दृष्टि से उचित नहीं थे ।अगर मैंने हस्ताक्षर कर दिया होता तो आज यह समस्या ही नहीं रहती। आज जो राममंदिर बनने की चर्चा भाजपा के केंद्रीय एवं प्रांतीय शासनतंत्र के द्वारा जो भी प्रकल्प चल रहा है वो आदित्यनाथ जी और प्रधानमंत्री जी को भी मालूम होगा ही कि अगर पुरी के शंकराचार्य जी ने हस्ताक्षर कर दिया होता तो समस्या का समाधान 25 वर्ष वर्ष पहले ही हो गया होता। लेकिन ऐसा होने पर भी शासनतंत्र किसी अधिकृत व्यक्ति ने आज तक मुझसे श्रीराम जन्मभूमि को लेकर संपर्क नहीं साधा है। ऐसी समस्या जैसी उस समय रथयात्रा की बात थी , इस समय रथयात्रा के लिये समिति वाले तो मेरे पास नहीं आए थे मैंने स्वयं अपनी ओर से जो कुछ किया। तो श्रीराम जन्मभूमि को लेकर जो प्रकल्प चल रहा है उसमें मेरी सहभागिता गुप्त या प्रकट रूप से नहीं है। मैं राममंदिर का विरोध नही कर रहा हूंँ , सिर्फ मौन हूंँ। श्रीराम जन्मभूमि के संदर्भ में पुरी शंकराचार्य ने सूत्रात्मक रूप में लिखित में वक्तव्य जारी किया है कि एक ओर सत्ता का बल सुलभ ना होने पर भी महात्वाकांक्षा प्रबल , दूसरी ओर सत्ता का बल सुलभ तथा महत्त्वाकांक्षा भी प्रबल तथा तीसरी ओर केवल सुमंगल सत्य का बल है।

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