शरद पूर्णिमा धन-धान्य और सुख समृद्धि का पर्व – पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश महाराज
बिलासपुर।पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉक्टर दिनेश जी महाराज ने बताया कि इस वर्ष आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 06 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 07 अक्टूबर को सुबह को 09 बजकर 16 मिनट पर होगा। पंचांग गणना के आधार पर इस साल शरद पूर्णिमा का पर्व 06 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं, हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण और मनोहारी पर्वों में से एक है। यह पर्व अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं से लेकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण तक, इस रात का विशेष महत्व है।माता लक्ष्मी का प्राकट्य दिवस (लक्ष्मी पूजा)पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए इसे “लक्ष्मी प्रकटोत्सव” के रूप में भी मनाया जाता है।इस रात को “कोजागरी” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘कौन जाग रहा है?’ ऐसी मान्यता है कि धन और ऐश्वर्य की देवी मां लक्ष्मी उल्लू पर सवार होकर पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और देखती हैं कि कौन भक्त जागरण कर उनकी पूजा कर रहा है। जो भक्त रात भर जागकर पूजा-अर्चना करते हैं, उन पर मां लक्ष्मी विशेष कृपा बरसाती हैं, जिससे उनके घर में धन-धान्य और सुख-समृद्धि आती है।शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं से पूर्ण होता है, जो इसे वर्ष का सबसे चमकदार चंद्रमा बनाता है। ज्योतिष और आयुर्वेद के अनुसार, इस रात चंद्रमा की किरणें अत्यंत पोषक और शीतल होती हैं, जिनसे अमृत की वर्षा होती है।द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने इसी रात को गोपियों के साथ महारास रचाया था। यह दिव्य रासलीला प्रेम, भक्ति और आनंद का प्रतीक मानी जाती है। इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
वैज्ञानिक और स्वास्थ्य लाभ वैज्ञानिक रूप से, इस समय मौसम में बदलाव होता है—दिन गर्म और रात ठंडी होने लगती है। आयुर्वेद के अनुसार, चंद्रमा की शीतल किरणें शरीर के पित्त दोष को शांत करने में सहायक होती हैं। कहा जाता है कि इस रात चांदनी की रोशनी से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और मन-मस्तिष्क में शांति आती है।
खीर बनाने और खाने का विधान इस दिन गाय के दूध और चावल की खीर बनाकर, उसमें केसर, मेवे और तुलसी डालकर भोग लगाया जाता है।खीर से भरे बर्तन को पूरी रात खुले आसमान के नीचे चंद्रमा की रोशनी में रखें। माना जाता है कि चंद्रमा की अमृतमयी किरणें खीर में समाहित हो जाती हैं। अगले दिन सुबह नहा-धोकर इस अमृतमयी खीर को प्रसाद के रूप में परिवार के सभी सदस्यों में बांटकर खाना चाहिए। यह खीर उत्तम स्वास्थ्य और आरोग्य प्रदान करती है।
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