पितृपक्ष पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का समय – पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉ. दिनेश जी महाराज
बिलासपुर।पीतांबरा पीठाधीश्वर आचार्य डॉक्टर दिनेश जी महाराज ने बताया कि पितृपक्ष, जिसे श्राद्ध पक्ष या कनागत भी कहते हैं, हिंदू धर्म में पितरों (पूर्वजों) को समर्पित एक 16-दिवसीय अवधि है। यह भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इस दौरान, लोग अपने दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और तर्पण करते हैं। पितृपक्ष का मुख्य उद्देश्य अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करना है। यह माना जाता है कि हमारे पूर्वजों के आशीर्वाद से ही हमारा जीवन सुखमय और समृद्ध होता है। इसलिए, इस समय उनका स्मरण कर, उनके प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करना हमारा कर्तव्य है।
पितृपक्ष क्यों मनाया जाता है?
ऋण चुकाने की परंपरा – हिंदू धर्म में पांच प्रकार के ऋण माने जाते हैं, जिनमें से एक है ‘पितृ ऋण’। यह ऋण हमारे पूर्वजों का है, जिन्होंने हमें जीवन, संस्कार और वंश दिया। पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करके हम इस ऋण को चुकाने का प्रयास करते हैं।
आत्मा की शांति और मुक्ति: ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को मोक्ष प्राप्त करने के लिए कुछ अनुष्ठानों की आवश्यकता होती है। पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म, पिंडदान और तर्पण से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है।
आशीर्वाद प्राप्त करना: यह माना जाता है कि पितृपक्ष में किए गए तर्पण और दान-पुण्य से प्रसन्न होकर पितर हमें सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और वंश वृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
सामाजिक और पारिवारिक एकता: पितृपक्ष एक ऐसा समय है जब परिवार के सभी सदस्य एक साथ आते हैं और अपने पूर्वजों को याद करते हैं। यह नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने और पारिवारिक मूल्यों को बनाए रखने का एक अच्छा अवसर है।
श्राद्ध: क्या है और क्यों करते हैं?
‘श्राद्ध’ शब्द ‘श्रद्धा’ से बना है, जिसका अर्थ है ‘श्रद्धापूर्वक किया गया कार्य’। यह वह अनुष्ठान है जो किसी दिवंगत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है। यह मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है:
पिंडदान:आटे, चावल, जौ और काले तिल से बने पिंड (गोलियां) पितरों को अर्पित किए जाते हैं। यह उनकी आत्मा के लिए भोजन का प्रतीक है।
तर्पण:जल, दूध, काले तिल और जौ मिलाकर पितरों को अर्पित किया जाता है। यह उन्हें तृप्त करने का एक तरीका है।
ब्राह्मण भोजन: श्राद्ध के दौरान, ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हें दान-दक्षिणा दी जाती है। यह माना जाता है कि ब्राह्मणों के माध्यम से भोजन और दान सीधे पितरों तक पहुँचता है।
श्राद्ध करने के कई कारण हैं:
यह पितरों की आत्मा को यमलोक से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।यह पितरों की अधूरी इच्छाओं को पूरा करने का एक जरिया है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
यह वंश परंपरा को बनाए रखने और नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने का एक माध्यम है।
चतुर्दशी श्राद्ध:
चतुर्दशी श्राद्ध उन लोगों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु किसी दुर्घटना, अकाल मृत्यु, युद्ध या आत्महत्या के कारण हुई हो। ऐसी मान्यता है कि इन लोगों की आत्मा को शांति नहीं मिलती और वे भटकती रहती हैं। इसलिए, चतुर्दशी को श्राद्ध करके उनकी आत्मा को शांति और मुक्ति दिलाने का प्रयास किया जाता है।इसके पीछे एक और कारण यह है कि चतुर्दशी तिथि को श्राद्ध करने से प्रेत बाधाओं से मुक्ति मिलती है और दिवंगत आत्मा को शांति मिलती है। यह एक विशेष श्राद्ध है जो केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है।
अमावस्या श्राद्ध (सर्वपितृ अमावस्या): अमावस्या का श्राद्ध, जिसे ‘सर्वपितृ अमावस्या’ या ‘महालय अमावस्या’ भी कहते हैं, पितृपक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन है। यह उन लोगों के लिए है जो अपने पितरों की मृत्यु तिथि भूल गए हैं या किसी कारणवश उनकी तिथि पर श्राद्ध नहीं कर पाए हैं।इस दिन सभी ज्ञात और अज्ञात पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है। यह माना जाता है कि इस दिन सभी पितर पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध को स्वीकार करते हैं। इस दिन किया गया श्राद्ध सभी पितरों को तृप्त करता है और उन्हें मोक्ष प्रदान करता है।
अमावस्या श्राद्ध का महत्व:
सभी पितरों का श्राद्ध: यह उन लोगों के लिए एक अवसर है जो अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि भूल गए हैं। इस दिन श्राद्ध करके वे सभी पितरों को एक साथ श्रद्धांजलि दे सकते हैं।
अंतिम श्राद्ध: पितृपक्ष का यह अंतिम दिन होता है, और इसके बाद पितर अपने लोक लौट जाते हैं। इसलिए, इस दिन श्राद्ध करके उन्हें विदाई दी जाती है।
अधूरी इच्छाएं पूरी करना: यह माना जाता है कि इस दिन श्राद्ध करने से पितरों की अधूरी इच्छाएं पूरी होती हैं और वे हमें आशीर्वाद देते हैं।
निष्कर्ष:
पितृपक्ष, श्राद्ध, और इन अनुष्ठानों का महत्व हमारे जीवन में गहरा है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों के प्रति हमारी श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक है। यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और हमें यह सिखाता है कि हम अकेले नहीं हैं, बल्कि हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ है।इस समय किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य से न केवल हमारे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि हमें भी सुख, समृद्धि और शांति का अनुभव होता है। यह एक ऐसा समय है जब हम अपने जीवन में संतुलन और स्थिरता प्राप्त करते हैं, यह जानते हुए कि हमारे पूर्वज हमें देख रहे हैं और हमें आशीर्वाद दे रहे हैं।
इस प्रकार, पितृपक्ष एक ऐसा पर्व है जो हमें अपनी परंपराओं, संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों से जोड़े रखता है। यह एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है जो हमें हमारे इतिहास और भविष्य के बीच एक सेतु का निर्माण करने में मदद करता है।
भवदीय
ब्रह्मचारी मधुसूदन पाण्डेय व्यवस्थापक
श्री पीतांबरा पीठ त्रिदेव मंदिर सुभाष चौक सरकंडा सरकंडा बिलासपुर छत्तीसगढ़
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