रायपुर। त्योहारी सीजन खत्म होने के बाद अब रेलवे फिर पटरियों का कार्य शुरू कर रहा है। इसी क्रम में 16 से 19 नवंबर तक बिलासपुर रेल मंडल के करकेली स्टेशन को तीसरी रेल लाइन से जोडने यार्ड मॉडिफ़किशन का कार्य किया जाएगा। इस वजह से रायपुर व बिलासपुर से गुजरने वाली 16 अलग-अलग ट्रेनों को रद्द करने का फैसला रेलवे ने लिया है। इसमें रायपुर से गुजरने वाली दुर्ग-कानपुर व नौतनवा एक्सप्रेस भी शामिल है। बता दें कि, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के अनुनपुर-कटनी सेक्शन में कुल 165.52 किलोमीटर रेलवे लाइन का कार्य किया जा रहा है, जिसकी कुल लागत 1680 करोड़ रुपये है। अब तक इस सेक्शन में 101.40 किलोमीटर रेलवे लाइन का कार्य पूर्ण किया जा चुका है। बिलासपुर- कटनी सेक्शन के करकेली रेलवे स्टेशन को तीसरी लाइन से जोड़ने से आधारभूत संरचना में विकास के साथ यात्री ट्रेनों की समय बद्धता में वृद्धि होगी। यह ट्रेन रहेगी रद्द ■16 नवंबर से 19 नवंबर तक जबलपुर से चलने वाली 11265 जबलपुर-अम्बिकापुर एक्सप्रेस रद्द रहेगी। ■17 नवंबर से 20 नवंबर तक अम्बिकापुर से चलने वाली 11266 अम्बिकापुर-जबलपुर एक्सप्रेस रद्द रहेगी। ■ 15 नवंबर से 19 नवंबर तक बिलासपुर से चलने वाली 18247 बिलासपुर-रीवा एक्सप्रेस रद्द रहेगी। ■ 16 नवंबर से 20 नवंबर तक रीवा से चलने वाली 18248 रीवा-बिलासपुर एक्सप्रेस रद्द रहेगी। ■ 14 नवंबर को दुर्ग से चलने वाली 18205 दुर्ग- नौतनवा एक्सप्रेस रद्द रहेगी। ■ 16 नवंबर को नौतनवा से चलने वाली 18206 नौतनवा-दुर्ग एक्सप्रेस रद्द रहेगी। ■ 19 नवंबर को चिरमिरी से चलने वाली 05755 चिरमिरी-अनुनपुर पैसेंजर स्पेशल रद्द रहेगी। ■ 19 नवंबर को अनुनपुर से चलने वाली 05756 अनुनपुर- चिरमिरी पैसेंजर स्पेशल रद्द रहेगी। ■ 17 नवंबर से 19 नवंबर तक चिरमिरी से चलने वाली 08269 चिरमिरी-चंदिया रोड पैसेंजर स्पेशल रद्द रहेगी। ■ 17 नवंबर से 19 नवंबर तक चंदिया रोड से चलने वाली 08270 चंदिया रोड-चिरमिरी- पैसेंजर स्पेशल रद्द रहेगी। ■ 16 नवंबर से 19 नवंबर तक कटनी से चलने वाली 06617 कटनी-चिरमिरी मेमू स्पेशल रद्द रहेगी। ■ 17 नवंबर से 20 नवंबर तक चिरमिरी से चलने वाली 06618 चिरमिरी-कटनी मेमू स्पेशल रद्द रहेगी।

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बिलासपुर/ बिलासपुर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 की धारा 52 लागू करने का अधिकार राज्य सरकार को है। विशेष परिस्थितियों में राज्य शासन को यूनिवर्सिटी की प्रशासनिक प्रक्रिया में दखल करने का अधिकार है।

इस आदेश के साथ ही हाईकोर्ट ने बस्तर यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति की अपील को खारिज कर दी है। दरअसल, धारा 52 के तहत तत्कालीन कुलपति को पद से हटाने के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।

राज्य शासन ने वित्तीय अनियमितता बरतने और प्रशासनिक गड़बड़ी करने को लेकर बस्तर यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. एनडीआर चंद्रा को पद से हटा दिया था। राज्य शासन ने यह कार्रवाई धारा 52 के तहत की थी। राज्य सरकार ने इन आरोपों की जांच के लिए एक जांच समिति भी गठित गई।

जांच रिपोर्ट से पता चला कि, विश्वविद्यालय प्रबंधन में गंभीर खामियां हैं और वित्तीय अनियमितताएं भी की गई है। जिसके बाद कुलपति प्रो. चंद्रा को हटाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी। राज्य शासन के इस आदेश के खिलाफ कुलपति चंद्रा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ की अपील

हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने केस की सुनवाई की। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। जिसके बाद कुलपति चंद्रा ने सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील की। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई।

इस दौरान बताया गया कि छत्तीसगढ़ विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 52 की राज्य द्वारा व्यय और उसके प्रयोग पर केंद्रित था, जो सरकार को विश्वविद्यालय प्रशासन में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है। चंद्रा ने तर्क दिया कि उन्हें कानूनी प्रक्रिया और प्रावधान के खिलाफ हटाया गया है।

साथ ही पद से हटाने से पहले उन्हें सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया है। पर्याप्त सुनवाई या जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों को चुनौती देने का अवसर दिए बिना उनके विरुद्ध अधिसूचनाएं जारी की गई थी।

यूनवर्सिटी प्रशासन में सुधार लाने राज्य शासन को है अधिकार

शुक्रवार को सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के निर्णय को बरकरार रखा है। डिवीजन बेंच ने माना कि राज्यपाल की व्यक्तिपरक संतुष्टि जो धारा 52 के तहत एक आवश्यकता है। उसके न्यायिक मानकों द्वारा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि ऐसे मामलों में जहां विश्वविद्यालय के प्रशासन को प्रभावी ढंग से प्रबंधित नहीं किया जा सकता है।

राज्य को संस्थागत हितों की रक्षा के लिए अधिनियम के प्रावधानों को संशोधित करने का अधिकार है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य के पास अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग कर विश्वविद्यालय के प्रशासन में सुधार लाने का अधिकार है, ताकि संस्थागत हितों की रक्षा हो सके।

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