हाई कोर्ट के नए आदेश से राज्य शासन के निर्देश के बावजूद संतुलाल के अध्यक्ष पद पर बैठना संभव नहीं…हेमेंद्र पुनः अध्यक्ष

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हाई कोर्ट ने माना कि नगर पालिका अध्यक्ष संतुलाल सोनकर पर आरोपो के बाद बर्खास्तगी फिर नए निर्वाचन के बाद अध्यक्ष हेमेंद्र गोस्वामी को तय सीमा तक हटाना संभव नही।

मुंगेली। नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए 7 अक्टूबर को हाई कोर्ट के आदेश में नाली आरोप से घिरे संतुलाल सोनकर के पुनः अध्यक्ष के रूप में होने वाला आदेश अब हाई कोर्ट के ही एक नए आदेश से ठंडे बस्ते पर जाता नजर आ रहा है। जिसमे अब हाई कोर्ट ने माना कि हेमेंद्र गोस्वामी के अध्यक्ष पद निर्वाचन की विधिवत प्रकिया व प्रतिद्वंद्वी एवं समस्त पार्षदों के बीच निर्वाचन पर निर्वाचित अध्यक्ष हेमेंद्र गोस्वामी को निर्वाचन प्रमाण पत्र मिलने के बाद तय समय सीमा तक हटाया जाना संभव नही है। हाई कोर्ट के नए आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया कि बर्खास्तगी के बाद विधिवत अध्यक्ष निर्वाचन के बाद राज्य शासन का संतुलाल सोनकर के लिए कलेक्टर के नाम आदेश जारी करना एक जल्दबाजी जैसा निर्णय रहा। बहरहाल हाई कोर्ट के नए आदेश में स्पष्ट किया गया है कि हेमेंद्र गोस्वामी के नए निर्वाचन की प्रक्रिया के बाद तय समय सीमा तक उन्हें पद से हटाया जाना न्याय उचित नही है। अब ऐसे में दो दिन पूर्व राज्य शासन के आदेश का कोई औचित्य नजर नही आ रहा है। हाई कोर्ट के नए आदेश में अब जिला प्रशासन को पुनः हेमेंद्र गोस्वामी के तय समय सीमा तक अध्यक्ष पद पर बने रहने जैसे हाई कोर्ट के आदेश का पालन करना होगा।

इस मामले में नगर पालिका अधिनियम, 1961 (संक्षेप में 1961 का अधिनियम”) के तहत नगर पालिका के अध्यक्ष संतुलाल सोनकर को नाली घोटाले में संलिप्तता आरोपों के कारण उसके पद से हटा दिया गया था। उसके बाद हेमेंद्र गोस्वामी को बाकी पार्षदों के बीच अध्यक्ष चुना गया और इस आशय का प्रमाण पत्र भी उसके पक्ष में 05/01/2022 को जारी किया गया। हटाए गए अध्यक्ष संतुलाल सोनकर ने अपने निष्कासन को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की गई। उन्होंने कहा कि इस न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 07/10/2024 के माध्यम से रिट याचिका को अनुमति दी और संतुलाल सोनकर के दिनांक 30/11/2021 के निष्कासन आदेश को रद्द कर दिया। हालांकि प्रतिवादी संतुलाल सोनकर का अधिनियम 1961 की धारा 41-ए के तहत पारित निष्कासन आदेश अपास्त कर दिया गया था, तथापि, इस न्यायालय ने उक्त पद पर उसकी पुनः बहाली के लिए परिणामी राहत के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया है। उनका कहना है कि इस न्यायालय द्वारा आदेश पारित किए जाने के पश्चात प्रतिवादी/राज्य ने कलेक्टर को प्रतिवादी सं. 5 के अध्यक्ष का कार्यभार प्रतिवादी सं. 6 को सौंपने की कार्यवाही करने का निर्देश दिया था।

याचिकाकर्ता की नियुक्ति अधिनियम 1961 की धारा 37 के तहत की गई थी, जिसके अनुसार याचिकाकर्ता का कार्यकाल परिषद के कार्यकाल तक होगा। प्रारंभ में चुनाव वर्ष 2019 में आयोजित किया गया था और प्रतिवादी अध्यक्ष हेमेंद्र गोस्वामी की परिषद का कार्यकाल दिसंबर, 2024 तक जारी रहेगा। इसलिए, बीच में, प्रतिवादी हेमेंद्र गोस्वामी को इस न्यायालय के दिनांक 07/10/2024 के आदेश के आलोक में पद धारण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, खासकर जब इस न्यायालय द्वारा कोई परिणामी राहत नहीं दी गई है। चूंकि हेमेंद्र गोस्वामी एक निर्वाचित अध्यक्ष होने के नाते केवल 3 तरीकों से हटाया जा सकता है। सबसे पहले, धारा 12 के तहत चुनाव याचिका द्वारा 1961 के अधिनियम की धारा 20, 1961 के अधिनियम की धारा 41-ए और 1961 के अधिनियम की धारा 47 यानी अविश्वास प्रस्ताव (वापस) द्वारा।

हाई कोर्ट के नए आदेश अनुसार जब संतुलाल सोनकर को हटा दिया गया था, तो अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ था और हेमेंद्र गोस्वामी ने एक और उम्मीदवार आनंद देवांगन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था इसलिए, इस न्यायालय के आदेश के आधार पर निर्वाचित उम्मीदवार को प्रतिवादी संतुलाल सोनकर द्वारा हटाया / प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि याचिकाकर्ता हेमेंद्र गोस्वामी को अध्यक्ष पद पर चुना गया था क्योंकि संतुलाल सोनकर को 1961 के अधिनियम की धारा 37 के तहत हटाए जाने के कारण आकस्मिक रिक्ति हुई थी। आकस्मिक रिक्ति की अवधि केवल परिषद की अवधि तक होगी। संतुलाल सोनकर को चुनाव के माध्यम से पहले चुना गया था और वह पद पर थे और नाली घोटाले आरोपों पर 1961 के अधिनियम की धारा 41-ए के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए उन्हें हटा दिया गया था। हालाँकि, उक्त आदेश को इस न्यायालय द्वारा WPC संख्या 63/2023 में पहले ही अलग रखा जा चुका है और इस तरह, इसमें कोई कलंक नहीं जुड़ा है, इसलिए, जिस आधार पर हटाने का आदेश पारित किया गया था वह अब मौजूद नहीं है, इसलिए, इस न्यायालय के आदेश के आधार पर उन्हें फिर से बहाल करने का अधिकार स्वचालित रूप से है। प्रारंभ में संतुलाल सोनकर को अध्यक्ष पद पर निर्वाचित किया गया था तथा उसके बाद उसे अधिनियम 1961 की धारा 41-ए के अंतर्गत शक्तियों का प्रयोग करते हुए हटा दिया गया था। पार्षदों के बीच वर्ष 2021 में चुनाव हुआ जिसमें अध्यक्ष पद के लिए दो प्रतिभागियों ने चुनाव लड़ा जिसमे कांग्रेस के हेमेंद्र गोस्वामी को शेष पार्षदों द्वारा निर्वाचित किया गया। अधिनियम 1961 की धारा 37 नीचे उद्धृत है-
“धारा 37 – आकस्मिक रिक्तियों को भरना – (1) जैसे ही अध्यक्ष का पद, या वार्ड से निर्वाचित पार्षद का पद रिक्त हो जाता है, या रिक्त घोषित कर दिया जाता है, या अध्यक्ष या पार्षद का निर्वाचन हो जाता है,यदि अध्यक्ष का पद धारा 29-बी के तहत आरक्षित है तो अध्यक्ष को ऐसे आरक्षित वर्ग के निर्वाचित पार्षदों में से नामित किया जाएगा।

अधिनियम 1961 की धारा 37 की भाषा में यह स्पष्ट किया गया है कि जैसे ही अध्यक्ष का पद या वार्ड से निर्वाचित पार्षद की सीट रिक्त हो जाती है या रिक्त घोषित कर दी जाती है या अध्यक्ष या पार्षद का चुनाव शून्य घोषित कर दिया जाता है तो राज्य सरकार उस रिक्त स्थान को भरने के लिए राज्य चुनाव आयोग को तत्काल सूचित करेगी। अब इस स्थिति में निर्वाचित अध्यक्ष हेमेंद्र गोस्वामी के अध्यक्ष का कार्यकाल दिसंबर, 2024 के महीने में समाप्त होगा क्योंकि प्रारंभिक चुनाव वर्ष 2019 में आयोजित किए गए थे इसका अर्थ यह है कि हेमेंद्र गोस्वामी अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुआ था। 15/10/2024 को किया गया है हेमेंद्र गोस्वामी के वकील ने प्रस्तुत किया कि उन्हें ऊपर बताए गए तीन प्रावधानों में से किसी का भी प्रयोग करके नहीं हटाया गया है, इसलिए न्यायालय ने ये माना कि हेमेंद्र गोस्वामी की नियुक्ति के संबंध में पक्षकारों द्वारा यथास्थिति बनाए रखी जानी चाहिए।

संतुलाल सोनकर ने बर्खास्तगी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी

नगर पालिका परिषद में संतुलाल सोनकर साल 2019-20 में अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। इस बीच महज एक साल के कार्यकाल के बाद नाली निर्माण के भुगतान संबंधी अनियमितता में लिप्त होने का आरोप लगाकर कांग्रेस की भूपेश सरकार ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था। अपनी बर्खास्तगी आदेश को उन्होंने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
जिसमें बताया गया कि राज्य शासन ने अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए राजनीतिक दुर्भावना के चलते याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की है। जबकि, शासन के पास उसे हटाने के लिए कोई मजबूत और ठोस कारण नहीं है। जिन आरोपों के चलते उन्हें हटाया गया है, उसके लिए वो प्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार भी नहीं है।

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