फेफड़ों के सीटी स्कैन से पता चलेगा कोरोना है कि नहीं
भुवन वर्मा, बिलासपुर 22 मई 2020
डीप मशीन लर्निंग व एक्सप्लेनेबल एआई तकनीकी का उपयोग करके यह सिस्टम बनाया गया
बिलासपुर । अटल बिहारी वाजपेयी यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस विभाग ने कोरोना की जांच को लेकर शोध किया है। इसमें कंप्यूटर साइंस के विभागाध्यक्ष डॉ. एचएस होता और शोधार्थी निलेश वर्मा ने डीप मशीन लर्निंग व एक्सप्लेनेबल एआई तकनीकी पर शोध किया और इन तकनीकी का उपयोग करते हुए एक सिस्टम बनाया है। इस सिस्टम का नाम कोविस-हैल्थ (कोरोना वायरस आईडेंटीफिकेशन सिस्टम फॉर हैल्थ) है। इस सिस्टम से फेफड़ों का सीटी स्कैन किया जाएगा। इससे पता चल जाएगा कि मरीज को कोरोना है या नहीं? साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि फेफड़ा कितना संक्रमित है, जो ब्लड जांच में पता नही चलता है।
कंप्यूटर साइंस के विभागाध्यक्ष ने बताया कि इस डिसीजन सपोर्ट सिस्टम को पूर्ण प्रमाणिकता के साथ कोरोना के मेडिकल डायग्नोसिस के लिए आने वाले समय में उपयोग में लाया जा सकता है। मेडिकल हिस्ट्री के अनुसार कोरोना फेफड़ों को प्रभावित करता है। जिससे धीरे-धीरे सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। ऐसी परिस्थितियों में फेफड़ों के सीटी स्केन के माध्यम से कोरोना के लक्षण की पहचान पूर्ण प्रमाणिकता के साथ की जा सकती है। डॉ. होता ने दावा किया कि यह सिस्टम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब तक के इस क्षेत्र में हुए शोध में से सर्वाधिक 99 प्रतिशत शुद्धता के साथ परिणाम देता है। उन्होंने बताया कि डीप मशीन लर्निंग का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर में मशीन विजन के रूप में बहुतायत में किया जा रहा है। परन्तु कोविड-19 के पहचान के लिए वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शोध नहीं के बराबर है। इस शोध को सॉफ्टवेयर के रूप में अपडेट करके उपयोग में लाया जाएगा।
कोरोना इफेक्टेड मरीजों के सीटी स्कैन इमेज पर किया शोध
कम्प्यूटर साइंस के विभागाध्यक्ष डॉ. एचएस होता और शोधार्थी निलेश वर्मा ने बताया कि इस डिसीजन सपोर्ट सिस्टम में सीटी स्केन इमेज के माध्यम से कोविड-19 के रोगियों की पहचान उच्च गुणवत्ता के साथ की जा सकती है। इस माॅडल को तैयार करने के लिए चाइना में कोविड-19 से संक्रमित व्यक्तियों के सीटी स्केन इमेज, जो शोध कार्य के लिए उपलब्ध है, उसका उपयोग किया गया है। मशीन लर्निंग के साथ-साथ एक्सप्लेनेबल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी उपयोग किया गया है, जो एक नई एवं आधुनिक तकनीक है। इन दोनों तकनीकी के उपयोग से कोरोना प्रभावित लोगों का पता लगाया जा सकता है।
शोध को अंतर्राष्ट्रीय जर्नल ने प्रकाशित करने के लिए स्वीकारा : डॉ. एचएस होता और शोधार्थी निलेश वर्मा का यह शोध पत्र कोविड-19 के लिए विशेष रूप से प्रकाशित होने वाले एल्सवेयर के प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशन के लिए भेजा गया है। इस शोध को प्रकाशित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय जर्नल ने स्वीकार कर लिया है।
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