आज वट सावित्री व्रत — अरविन्द तिवारी की कलम से
भुवन वर्मा, बिलासपुर 22 मई 2020
रायपुर — वट सावित्री व्रत हिन्दू महिलाओं के लिये सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक व्रतों में से एक है। अपने अखंड सौभाग्य और कल्याण के लिये महिलायें आज के दिन यानि ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखती हैं। इसी दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। वट का वृक्ष त्रिमूर्ति को दर्शाता है यानि यह वृक्ष भगवान ब्रह्मा , विष्णु और महेश का प्रतीक है। इसके नीचे बैठकर पूजन करने , व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। पूजा के बाद सौभाग्यवती महिला अपनी सास को वस्त्र और श्रृंगार का देकर उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेती है। भगवान बुद्ध को भी इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। अत: वट वृक्ष को ज्ञान , निर्वाण ,व दीर्घायु का पूरक माना गया है। वट वृक्ष की पूजा के बाद पेंड़ के तने के चारो ओर पीले रंग का पवित्र कच्चा धागा एक सौ आठ बार बांधते और फेरे लगाते हैं। इसी दिन सावित्री से प्रसन्न होकर यमराज ने उनके पति के प्राण उनको सौंपे थे। इस व्रत के रखने से पति दीर्घायु होता है। इस दिन महिलायें स्नान करके सोलह श्रृंगार करती हैं और बरगद पेंड़ की विधिवत पूजा कर वट सावित्री की कथा सुनती हैं। पूजन समाप्ति के पश्चात घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेती हैं।
जानें वट सावित्री व्रत कथा
भद्र देश के अश्वपति नाम के एक राजा थे जिनकी कोई संतान नही थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिये मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा। इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।काफी लंबे समय से राजा अपनी बेटी सावित्री के लिये एक उपयुक्त वर खोजने में असमर्थ था तो इस प्रकार उसने सावित्री को अपना जीवनसाथी स्वयं खोजने के लिये कहा। अपनी यात्रा के दौरान सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पाया। राजा अंधा था और उसने अपना सारा धन और राज्य खो दिया था। सावित्री ने सत्यवान को अपने उपयुक्त साथी के रूप में पाया और फिर अपने राज्य में लौटकर राजा को अपनी पसंद के बारे में बताया। उसकी बात सुनकर नारद मुनि ने राजा अश्वपति से कहा कि इस संबंध को मना कर दें क्योंकि सत्यवान का जीवन बहुत कम बचा है और वह एक वर्ष में मर जायेगा। राजा अश्वपति ने सावित्री को उसके लिये किसी और को खोजने के लिये कहा। लेकिन स्त्री गुणों के एक तपस्वी और आदर्श होने के नाते उसने इंकार कर दिया और कहा कि वह केवल सत्यवान से ही शादी करेगी, भले ही उसकी अल्पायु हो या दीर्घायु। इसके बाद सावित्री के पिता सहमत हो गये और सावित्री और सत्यवान विवाह बंधन में बंध गये। एक साल बाद जब सत्यवान की मृत्यु का समय आने वाला था तब सावित्री ने उपवास शुरू कर दिया और सत्यवान की मृत्यु के निश्चित दिन पर वह उसके साथ जंगल में चली गयी। एक बरगद के पेड़ के नीचे जब सावित्री की गोद में सत्यवान सोया था। तभी सत्यवान के प्राण लेने के लिये यमलोक से यम के दूत आये पर सावित्री ने अपने पति के प्राण नही ले जाने दिये। तब यमराज खुद सत्यवान के प्राण लेने आये और सत्यवान की आत्मा को लेकर चलने लगे। उसके पीछे पीछे सावित्री भी चल पड़ी। यमराज के बहुत मनाने के बाद भी सावित्री नहीं मानीं तो यमराज ने उन्हें वरदान मांगने का प्रलोभन दिया। सावित्री ने अपने पहले वरदान में सास-ससुर की दिव्य ज्योति मांँगी। दूसरे वरदान में उनका छिना हुआ राज-पाट मांगा और दूसरे तीसरे वरदान में सत्यवान के पुत्र की मांँ बनने का वरदान मांगा जिसे यमराज ने तथास्तु कह स्वीकार कर लिया। इसके बाद भी जब यम सत्यवान को साथ ले जाने लगे तो सावित्री ने उसे यह कहते हुये रोक दिया कि उसके पति सत्यवान के बिना बेटा पैदा करना कैसे संभव है ? यमराज अपने दिये वरदान में फंँस गये थे और इस तरह उन्हें सावित्री की भक्ति और पवित्रता देखकर सत्यवान के जीवन को वापस करना पड़ा। उस दिन के बाद से वट सावित्री व्रत सैकड़ों हिंदू विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पतियों की दीर्घायु के लिये मनाया जाता है।
वट सावित्री का महत्व
वट सावित्री की कथा हर परिस्थिति में अपने जीवनसाथी का साथ देने का संदेश देता है। इससे ज्ञात होता है कि पतिव्रता स्त्री में इतनी ताकत होती है कि वह यमराज से भी अपने पति के प्राण वापस ला सकती है। वहीं सास-ससुर की सेवा और पत्नी धर्म की सीख भी इस पर्व से मिलती है। मान्यता है कि इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और उन्नति के लिये यह व्रत रखती हैं।