अराजक तत्व को सन्त ख्यापित करने का दुष्प्रभाव असली सन्तो पर भी होता है – पुरी शंकराचार्य

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भुवन वर्मा, बिलासपुर 20 मई 2020

जगन्नाथपुरी — अनन्त श्री विभूषित श्री ऋग्वेदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठाधिश्वर श्रीमज्जगदगुरु शंकर‍ाचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि विगत ४० वर्षों से भारत के क्षेत्रीय , प्रान्तीय,राष्ट्रीय और विश्व स्तर के आचार्य संत और बाबा तथा स्वामी के रुप में ख्यातिप्राप्त कतिपय व्यक्ति लांछित होने लगे हैं । जिसके कारण जनमानस में आचार्यों , सन्तों , स्वामियों , बाबाओं के प्रति हीनभावन‍ा और आक्रोश परिलक्षित है । वस्तुस्थिति यह है कि दिशाहीन व्यापारतंत्र , शासनतंत्र और प्रचारतंत्र अवाञ्छित और अराजक तत्व को पूज्य आचार्य , स्वामी , सन्त , बाबा के रुप में ख्यापित कर स्वयं लाभान्वित होने के कुचक्र चलाते हैं । जिसके चपेट में आकर मान्य आचार्य , सन्त , स्वामी और बाबा कुदृष्टि और आक्रोश के शिकार बनते हैं। उक्त तीनों तंत्रों के द्वारा ख्यातिप्राप्त इन्हीं के द्वारा प्रताड़ित होते हैं। उन्होंने डंके की चोट कहा कि तीन रुपये का असली नोट ना होने के कारण उनका जाली नोट भी संभव नहीं है। यह दार्शनिक और व्यावहारिक तथ्य है की असली के सहारे ही नकली की दाल गलती है । असली सन्तों के कारण ही नकली सन्तों की कुछ समय तक पूजा-प्रतिष्ठा सध पाती है। अत: यह ध्यान रखना आवश्यक है कि नकली सन्तों के नाम पर असली अनास्था और आक्रोश के पात्र ना बनें। ऐसी स्थिति में यदि शासनतंत्र से सम्बद्ध राजनेता तथा पदाधिकारी अवाञ्छित और अराजक तत्वों के बुद्धिपूर्वक सहयोगी सिद्ध ना हों तो उन अराजक तत्वों को अपराधी उदघोषित करने पर प्राप्त विभिषिका का समाधान सुगमतापूर्वक और शीघ्र संभव है ।

अरविन्द तिवारी की रपट

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