छत्तीसगढ़ में कांसादान महाअभियान : ऐतिहासिक महाभियान के सहभागी बने और छत्तीसगढ़ को विश्व पटल पर स्थापित करने में अपना बहुमूल्य योगदान दें – अमित बघेल

छत्तीसगढ़ में कांसादान महाअभियान : ऐतिहासिक महाभियान के सहभागी बने और छत्तीसगढ़ को विश्व पटल पर स्थापित करने में अपना बहुमूल्य योगदान दें – अमित बघेल
भुवन वर्मा बिलासपुर 06 अप्रैल 2023

रायपुर । अमित बघेल क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष छत्तीसगढ़ व छत्तीसगढ़ीयों के आत्मसम्मान और हमार धरोहर को सहेजने में लगातार कार्य करने वाले युवा जुझारू कार्यकर्ता से हुई चर्चा पर विश्व की सबसे बड़ी बूढ़ादेव की प्रतिमा व दान व स्थापना की महत्ता पर उन्होंने बताया कि हमारे देश में विभिन्न प्रकार के दानों की परंपरा है, जिसमें अन्न दान, गोदान, कन्यादान, रक्तदान, शिक्षा दान, नेत्रदान और यहां तक कि देहदान भी प्रचलन में आ चुका है। किंतु भारत का ही एक राज्य जिसे हम छत्तीसगढ़ कहते हैं वहां दान की एक नई परिपाटी का जन्म हुआ है, और यह दान किसी व्यक्ति के हित के लिए नहीं बल्कि अपनी विरासत को सहेजने के लिए छत्तीसगढ़ के प्रत्येक गांव से प्रत्येक घरों से किया जा रहा है, जिसे कांसा दान के रूप में जाना जाता है। किसी ने सोचा नहीं था की कोई संगठन लोगों के पास जाएगा और उनसे कांसा पीतल तांबे की मांग करेगा और लोग सहर्ष उन्हें इन धातुओं का दान कर देंगे। पहले जब कांसादान की घोषणा हुई तो कई राजनीतिक पार्टियां या फिर अपने आप को प्रबुद्ध कहने वाले लोग व्यंग्यात्मक शैली में यह कहते थे कि लोग चावल का दान इसलिए कर देते हैं क्योंकि सरकार द्वारा मुफ्त में चावल वितरण किया जा रहा है। लेकिन अगर कांसे की बात करें तो लोग अपने घरों में कांसे के बर्तन को अपने पूर्वजों के विरासत के रूप में सहेज कर रखे हुए हैं, और कोई भी अपनी विरासत को दान में नहीं देता। लेकिन जब छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के सेनानियों ने लोगों के सामने यह निवेदन किया कि हम छत्तीसगढ़ की अस्मिता को उसके गौरवशाली इतिहास को विश्व पटल पर अंकित करने जा रहे हैं तब लोगों को लगा कि कोई तो है जो छत्तीसगढ़ की परंपरा, संस्कृति, भाषा जिससे इसकी विशिष्ट पहचान है उसे विश्व मंच पर प्रस्तुत करने के लिए तैयार है। फिर क्या! लोग निकले अपने घरों से और बिना किसी प्रश्न के अपने हृदय में हर्ष लिए हुए, एक परिवर्तन की आस लिए हुए पंचधातु दान करना प्रारंभ कर दिया। जब रायपुर के मंच से छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना द्वारा विश्व की सबसे बड़ी बुढ़ादेव की प्रतिमा स्थापना करने की घोषणा हुई तो राजनीतिक गलियारे से यह हलचल होने लगी कि कहीं छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना राजनीति में कदम तो रखने नहीं जा रही है। लेकिन जब उन्होंने कहा कि हमारा काम राजनीति करना नहीं हमारा काम राज्य सत्ता को छत्तीसगढ़ियावादी बनाना है तो पक्ष और विपक्ष के कान खड़े हो गए। फिर वह इसका लाभ उठाने के लिए स्वयं से सहयोग देने की बात करने लगे। वैसे सत्ता द्वारा अगर धन प्राप्त कर लिया जाता तो गांव-गांव घूमकर धूप में, बरसात में, ठंड में लोगों से कासा मांगने की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन इससे क्या होता लोग अपने योगदान को जान नहीं पाते फिर उन्हें ऐसा लगता है कि सरकार ने बुढ़ादेव की प्रतिमा स्थापित कर दी। लेकिन जब एक व्यक्ति एक छोटा सा पंचधातु दान कर देता है और भविष्य में विश्व की सबसे बड़ी बूढ़ादेव की प्रतिमा को आसमान का आलिंगन करते देखेगा तो यह कहेगा कि इस प्रतिमा को बनाने में उसका भी योगदान है। गर्व से उसका सीना फूल जाएगा। अपनी संस्कृति को, अपने इष्ट देव को अपने हृदय में बिठाकर पूरे छत्तीसगढ़ के सुख समृद्धि की कामना करने लगेगा। आज हमारी माटी में ऐसे लोग हैं जिसके लिए कांसे का बर्तन खरीदना टेढ़ी खीर है। लेकिन फिर भी बात जब माटी के स्वाभिमान की आती है अपना खून पसीना एक कर परिश्रम से लिए गए कांसे के बर्तन को भी दान करने में परहेज नहीं करते। आज जिन लोगों को यह बात बहुत हल्की लग रही होगी उन्हें मैं कह देना चाहता हूं कि कल जब आप राजधानी के बूढ़ा तालाब के किनारे से गुजरेंगे और लगभग 15 किलोमीटर की दूरी से चमकता हुआ बुढ़ा देव की प्रतिमा आपके दृष्टिगोचर होंगी तो बड़ा पछतावा होगा कि मैंने भी कुछ दिया होता तो मैं गर्व के साथ अपने आने वाली पीढ़ी को कह पाता की इस महान बुढ़ा देव की प्रतिमा स्थापना में मेरा भी योगदान है। विभिन्न प्रकार के संगठन इस महाअभियान को असफल करने के षड्यंत्र में लगे हुए हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि व्यक्ति जाग जाए तो उसे बरगलाया जा सकता है पर जब माटी जाग जाए तो उसे अपने उद्देश्यों से भटकाने में कई जन्म बीत जाते हैं। इसलिए यह महाअभियान किसी संगठन का नहीं, किसी राजनीतिक पार्टी का, नहीं किसी व्यक्ति का नहीं,बल्कि छत्तीसगढ़ की माटी का महाअभियान है। अभी भी 8 अप्रैल तक का समय है जो लोग इस माहअभियान में नहीं जुड़ पाए हैं वे जुड़ें और जो इतिहास हम रचने जा रहे हैं उसमें सहभागी बने। जब भी किसी बड़ी इमारत की कल्पना की जाती है तो उसकी शुरुआत एक ईंट से होती है और जब लोग ईट से ईट जोड़ते जाते हैं तब वह वृहद भवन के रूप में हमारे सामने स्थापित होते हैं। तो ऐसा ही एक प्रयास किया गया था बुढ़ादेव प्रतिमा स्थापना महाअभियान के रूप में जिसकी इमारत इतनी बड़ी बनती दिखाई दे रही है जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की है। जब बूढ़ादेव यात्रा प्रारंभ हुई तो लोगों के मन में यह बात भी आई कि बूढ़ादेव तो हमारे देवता नहीं है, हमारे इष्ट देव नहीं है, लेकिन जब छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के माध्यम से यह बताया गया बूढ़ादेव किसी जाति विशेष का नहीं बल्कि हमारे पूर्वज देवता है जो स्वर्गवासी हो गए हैं, और जिस का स्वरूप प्रतीक के रूप में अपने घरों में रखने वाले तीन पिंड हैं, त्रिशूल है और वही स्वरूप बूढ़ादेव का भी है। तब लोगों को लगने लगा कि वास्तव में यही हमारे देवता हैं। कुछ लोगों के मन में यह भी विचार आया कि चलो हमारे समाज का नहीं छत्तीसगढ़ के किसी भी समाज के इष्टदेव की स्थापना राजधानी में तो हो रही है इसलिए हमें दान करना चाहिए।जिसकी परिणति यह हुई कि हर घर से कांसा, तांबा, पीतल और पंचधातु भारी मात्रा में निकलने लगे। इसलिए और देर न कीजिए जल्दी से इस ऐतिहासिक महाभियान के सहभागी बने और छत्तीसगढ़ महतारी को विश्व पटल पर स्थापित करने में अपना बहुमूल्य योगदान दें ।

इतिहास बूढ़ा तालाब का …….
रायपुर । राजधानी के बीचोबीच स्थित बूढ़ातालाब का अपना एक अलग ही इतिहास है। कहा जाता है कि इस तालाब को कल्चुरि राजवंश के राजाओं ने खुदवाया था। तालाब में मिले शिलालेख के मुताबिक 1402 में बूढ़ातालाब बनवाया था। करीब 600 साल पुराने बने इस तालाब को राजा भुवनेश्वर ने आगे चलकर विकसित करते हुए घाट बनवाए थे। हालांकि अब वह घाट दिखाई नहीं देते, लेकिन तालाब को विकसित करने में राजा भुवनेश्वर की महती भूमिका मानी जाती है। इस विशालकाय ऐतिहासिक तालाब को बूढ़ातालाब या विवेकानंद सरोवर के नाम से जाना जाता है।
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