छत्तीसगढ़ भाजपा में छत्तीसगढ़ीयां नेतृत्व कर्ता की मांग पकड़ रही जोर : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ीया वाद ने अब भाजपा को कान और आंख दोनों खड़े करने कर दिया है मजबूर

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छत्तीसगढ़ भाजपा में छत्तीसगढ़ीयां नेतृत्व कर्ता की मांग पकड़ रही जोर : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ीया वाद ने अब भाजपा को कान और आंख दोनों खड़े करने कर दिया है मजबूर

भुवन वर्मा बिलासपुर 29 सितंबर 2021/ 9826704304

बिलासपुर । छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ीया वाद से अब भाजपा को कान और आंख दोनों खड़े करने मजबूर कर दिया हैं ।
अगर अब छत्तीसगढ़ीया वाद को नहीं समझे तो उनकी सत्ता में वापसी मुश्किल होगी ।
भाजपा को छत्तीसगढ़ नेतृत्व में अपने परदेशिया प्रेम को त्याग करनी होगी । शायद कुछ हद तक अब उन्हें भी समझ आने लगी है । इसकी स्पष्ट झलक अभी अभी बस्तर के मंथन शिविर में देखने को मिली है । सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार भाजपा के प्रभारी पुरंदेश्वरी देवी के आदेशानुसार उस मंथन शिविर में परदेशियों को नहीं बुलाया गया था ।


वर्तमान भूपेश सरकार ने एक बात अब सिखा दिए हैं। छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति तीज त्यौहार परंपराओं ,गांव गरीब मजदूर किसान को आगे कर चलेगा वहीं छत्तीसगढ़ पर राज करेगा । निश्चित ही अब समय आ गया है जो छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ियों के विकास की बात करेगा । छत्तीसगढ़ीयों को नेतृत्व का अवसर देंगे उन्हीं की ही सरकार बनेगी ।

विदित हो कि 15 साल राज करने के बाद बुरी तरह से पराजित छत्तीसगढ़ भाजपा में छत्तीसगढ़िया और जमीनी नेताओं को कमान संभालेंगे की मांग छोटे कार्यकर्ताओं में जोर पकड़ी है। जिस तरह से 15 साल बाहरी और कुछ उच्च वर्ग के भाजपा नेताओं ने राज किया और आम कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जिससे त्रस होकर जमीनी कार्यकर्ताओं ने उन्हें हराकर सबक सिखा दिया,बावजूद इसके अभी भी हवा में रहने वाले कथित बड़े नेताओं को कोई असल नही हुआ है। केंद्रीय नेतृत्व भले ही इस ओर गंभीर है पर छत्तीसगढ़ भाजपा में आज भी बाहरी नेताओं का ही बोल बाला है। प्रदेश संगठन मंत्री पवन देव साय रबड़ स्टांप से ज्यादा कुछ नहीं हैं। डा रमन सिंह,सौदान सिंह,सरोज पांडेय, गौरी शंकर अग्रवाल,अमर अग्रवाल,भूपेंद्र सवन्नी,शिव रतन शर्मा,राजेश मूणत आदि बाहरी नेताओं ने गैर छत्तीसगढ़ीयो और अपने करीबियों को प्रदेश और जिला बाडी में पदाधिकारी बनाए हुए जिनका अपने वार्डों में कोई वजूद नहीं है।


ऐसे में सवाल उठता है कि 2023 में भाजपा छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने का जो सपना देख रही है वो पूरा कैसे होगा?
जमीनी और छत्तीसगढ़ीया कार्यकर्ता तो आज भी भाजपा संगठन से दूर है या दूर कर दिया गया है।
आज वास्तविकता में भाजपा की स्थिति कांग्रेस से भी खराब है। गुटबाजी और संगठन में कब्जा को लेकर अंदरूनी स्तर पर काफी घमासान मचा हुआ है।
आम कार्यकर्ता को पूछने वाला कोई नही है। आज भाजपा संगठन से बड़ा नेता हो गया है। भाजपा के इन बड़े नेताओं के सुविधानुसार ही आंदोलन या कार्यक्रम हो रहे है।
जनता त्रस्त है महंगाई से, राशन दुकान से,ग्राम पंचायत और नगर निकाय से, मकान, दुकान की नक्शा पास करवाने से, राजस्व विभाग से, तहसील कार्यालय से,बिजली कटौती से, अधिकारियों की मनमानी से,कानून व्यवस्था से,प्राइवेट अस्पतालों से, बच्चों की पढ़ाई में आ रही दिक्कत से, राज्य सरकार नेता,मंत्री और अधिकारियों की लूट खोरी से पर भाजपा नेताओं को क्या उन्हे तो अपना दामन बचाना है। 15 साल के राज में जो काला पीला किए हुए है वह सब कागज चिट्ठा कांग्रेस नेताओं के पास है,जिन्हे वे समयानुसार भाजपा नेताओं पर करते रहते हैं।
कभी केंद्रीय नेतृत्व से चाबुक चलता है तो आंदोलन के नाम पर खाना पूर्ति कर ली जाती है। भाजपा के बड़े नेताओं का दामन तो गले तक फंसी हुई है वे किस मुंह में जनता की परेशानी को लेकर मुखर होंगे?
भाजपा को कुछ मुद्दा ही नहीं दिखता है, दिखता भी है तो धर्म परिवर्तन, राम मंदिर, कश्मीर, पाकिस्तान, तालिबान। प्रदेश की आम और ज्वलंत समस्याओं से उन्हें क्या।
ऐसे स्थिति में अब आम कार्यकर्ताओं के बीच और जनता के बीच चौक चौराहों में एक सक्षम और छत्तीसगढ़िया नेतृत्व की बात जोर शोर से उठने लगी है। कमोबेश सभी जिलों में यही स्थिति है। जमीनी और मजबूत नेताओं को बाहरी नेताओं ने जिस प्रकार शीर्ष नेतृत्व को कारण बता कर किनारे लगा रखा है उसे उन्हें भी समझना होगा,जैसे फला नेता तो निष्क्रिय है,वह तो संगठन का विरोध करता है, समय नही देता,कार्यक्रमों में शामिल नही होता जैसे रटे रटाए शब्द उनके पास है। जबकि हकीकत यह है कि वे बाहरी नेता जिनकी कोई जनाधार नही है,जिनका व्यापार भाजपा से मस्त फलफूल रहा है, वे चाहते ही नही है कि योग्य और जमीनी नेता सामने आए। और उन्हें वे कभी पूछते ही नही तो वे बेचारे स्वाभिमानी और संगठनकर्ता नेता,कार्यकर्ता जाए कैसे? वैसे भी जो कर्मठ कार्यकर्ता,नेता है वे व्यक्ति (दरबारी) नही संगठन को महत्व देते है। इस कारण आ नही पाते और इसी लिए मौका परस्त नेताओं की मनमानी चल रहा है। जमीनी नेताओ को आखिर सामने लाए कौन? इसमें गलती शीर्ष नेतृत्व का भी है वे भी जमीनी हकीकत जानने की कोशिश ही नही करना चाह रहे है।
अब भी समय है अगर ईमानदारी से शीर्ष नेतृत्व प्रयास करे तो हर जिला केंद्र में राज्य स्तर के योग्य,जमीनी और छत्तीसगढ़िया नेतृत्व मिल जायेंगे।
कुछ नाम उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत है जो प्रदेश में भाजपा को सत्ता में लौटा सकती है या कहे तो कांग्रेस से खुल कर लड़ सकती है तो उनमें झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस, सासंद विजय बघेल,अरुण साव,चंदूलाल साहू, बृजमोहन अग्रवाल,मधुसूदन यादव, संतोष पाण्डेय, नारायण चंदेल,पूनम चंद्राकार, अजय चंद्राकार, धरम लाल कौशिक, डा मोहन चोपड़ा, डा सोमनाथ यादव, प्रहलाद रजक, लखन देवांगन,श्याम बिहारी जायसवाल,भैयाराम रजवाड़े, ओ पी चौधरी ,टेशू लाल धुरंधर आदि नामों पर विचार किया जा सकता है। इसके लिए भाजपा को निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचना होगा।


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