पूर्वाचार्य स्वामी श्रीनिरञ्जन देवतीर्थ महाराज गोरक्षा के प्रति समर्पित थे — झम्मन शास्त्री
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पूर्वाचार्य स्वामी श्रीनिरञ्जन देवतीर्थ महाराज गोरक्षा के प्रति समर्पित थे — झम्मन शास्त्री
भुवन वर्मा बिलासपुर 11 सितंबर 2021
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
रायपुर — सनातन धर्म के साक्षात प्रतिमूर्ति पूर्वाचार्य पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य महाभाग स्वामी निरञ्जन देवतीर्थ जी महाराज के 25 वाॅं निर्वाण आराधना महोत्सव के अवसर पर रायपुर सुदर्शन संस्थानम् श्रीशंकराचार्य आश्रम में भव्यतम कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस पुनीत अवसर पर सर्वजन कल्याणार्थ रुद्राभिषेक समारोह एवं पूर्वाचार्य जी का पूजन आराधना वैदिक विद्वानों के द्वारा संपन्न हुआ , इसी श्रृंखला के दिव्य सौभाग्य क्रम में आयोजित संगोष्ठी में पीठ परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आचार्य पं० झम्मन शास्त्री जी ने श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुये कहा कि आज हम सबका परम सौभाग्य है कि सनातन धर्म के साक्षात प्रतिमूर्ति पूर्व आचार्य गुरुदेव भगवान के चरणों का स्मरण करते हुये उनके द्वारा प्रतिपादित दिव्य आदर्श सन्मार्ग में चलते हुए धर्म एवं राष्ट्र रक्षा के लिये सनातन मानबिंदुओं की रक्षा तथा वैदिक परंपरा की स्थापना में उनके अनंत योगदान इतिहास में अविस्मरणीय रहेगा। पूज्यपाद शंकराचार्य जी का जीवन भक्ति , ज्ञान वैराग्य के त्रिवेणी संगम की धारा के समान वेद , वेदना , दर्शन , न्याय मीमांसा सकल शास्त्रों में पारंगत महान विभूति थे , उनके दर्शन मात्र से ही जीवमात्र का कल्याण हो जाता था। उन्होंने गौ हत्या के कलंक को मिटाने हेतु 72 दिनों का अनशन कर देशवासियों को प्रेरणा प्रदान किया कि गौ माता साक्षात लक्ष्मी है इनकी सेवा करने से धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष नामक पुरुषार्थ चतुष्टय की सिद्धि संभव है। दुर्भाग्य का विषय है ऐसे महात्मा महापुरुषों के द्वारा प्रदत्त मार्ग का अनुसरण ना करते हुये आज भी देश में कोई भी सरकार गौ हत्या बंदी के लिये उचित कदम नहीं उठा पाये जबकि गौ माता है ना कि पशु
गावो विश्वस्य मातर: ( सर्वदेव मयो गाव:) इसीलिये पूज्यपाद शंकराचार्य जी जीवन पर्यंत चांदी सोने के सिंहासन में नहीं बैठते हुये, छत्र चंवर का परित्याग कर सामान्य आसन का ही उपयोग करते थे , उनके इस सरल जीवन से पूरा देश प्रभावित था। जिस देश में गौ हत्या होती है वहां क्या चांदी स्वर्ण के सिंहासन में बैठना उचित होता ये उनकी भावना थी। गौ माता की आर्थिक , धार्मिक , सामाजिक एवं वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से परम उपयोगिता सिद्ध करने की आवश्यकता है , अंत में देसी गाय के दुग्ध का केवल पान करते हुये वाराणसी में वें 1996 में ब्रह्मलीन हुये। शासन तंत्र इस पर विशेष ध्यान दें कि आज आवश्यक है देश में गौ हत्या का कलंक मिटे यही उनके श्रीचरणों में सच्ची श्रद्धांजलि होगी। गोवर्धन पीठ पुरी गौ संरक्षण का केंद्र है इसलिये वहां गोवर्धन गोशाला की स्थापना की गई है , उन्होंने ऐतिहासिक कदम उठाते हुये अपने जीवन काल में ही अद्भुत त्याग के बल पर वर्ष 1996 में वर्तमान पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज को अपने दिव्य कर कमलों के द्वारा अभिषिक्त किया और वर्ष 1992 से 1996 तक काशीवास करते हुये ब्रह्मसायुज्य को प्राप्त हुये। उनके बताये पद चिन्हों में चलते हुये वर्तमान गुरुदेव भगवान शंकराचार्य जी दर्शन , विज्ञान और व्यवहार तीनों दृष्टि से इस यांत्रिक युग में सनातन धर्म संस्कृति के संरक्षण के साथ भारत की एकता एवं अखंडता , हिंदुओं के अस्तित्व और आदर्श की रक्षा के लिये हिंदू राष्ट्र संघ की स्थापना के लिये अनवरत सक्रियता पूर्वक प्रतिबद्ध हैं। ऐसे महापुरुषों का दर्शन परम दुर्लभ होता है इसलिये अंत में शास्त्री जी ने सनातन धर्म प्रेमी भक्तों से अपील की है कि अपना परम सौभाग्य समझते हुये सक्रियता पूर्वक अपने अपने क्षेत्र में आदित्य वाहिनी के युवा टीम सनातनी सेना बनाने में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान कर जीवन को सार्थक बनायें। इस अवसर पर धर्मसंघ पीठ परिषद , आदित्यवाहिनी – आनन्दवाहिनी के पदाधिकारी , सदस्यगण बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
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