नागपंचमी पर्व भगवान भोलेनाथ के प्रमुख श्रृंगार नागदेव की स्तुति का पर्व है : सांप भोलेनाथ के प्रिय माने जाते हैं इसलिये इस दिन भगवान शिव के साथ नागदेवता की पूजा करना होता है अत्यंत ही फलदायी
नागपंचमी पर्व भगवान भोलेनाथ के प्रमुख श्रृंगार नागदेव की स्तुति का पर्व है : सांप भोलेनाथ के प्रिय माने जाते हैं इसलिये इस दिन भगवान शिव के साथ नागदेवता की पूजा करना होता है अत्यंत ही फलदायी
भुवन वर्मा बिलासपुर 13 अगस्त 2021
आज नागपंचमी विशेष : (अरविन्द तिवारी की कलम से)
नई दिल्ली — भारत कृषि प्रधान देश है , यहां लोकजीवन में भी लोगों का नागों से गहरा नाता है। सांप खेतों का रक्षण करता है, जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं , उनका नाश करके सांँप हमारे खेतों को हरा भरा रखता है। हिन्दू धर्म में देवी देवताओं की पूजा उपासना के लिये पर्व मनाये जाते हैं। इसी कड़ी में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है , यह पर्व आज भारत सहित अन्य देशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाया जायेगा। यह पर्व भगवान भोलेनाथ के प्रमुख श्रृंगार नागदेव की स्तुति का पर्व है , सांप भोलेनाथ के प्रिय माने जाते हैं इसलिये इस दिन भगवान शिव के साथ नागदेवता की पूजा करना अत्यंत ही फलदायी माना गया है। इस दिन कई लोग व्रत भी रखते हैं और खासतौर से ये दिन रुद्राभिषेक के लिये विशेष माना जाता है। आज नागपंचमी के पावन पर्व पर उत्तरा योग और हस्त नक्षत्र का विशेष संयोग बन रहा है , साथ ही शिन नक्षत्र भी लग रहा है जो कालसर्प दोष से मुक्ति के लिये विशिष्ट फलदायी होता है। इस बार की नागपंचमी पर ऐसा संयोग करीब 108 साल बाद बन रहा है। किवदंती के अनुसार बालकृष्ण जब यमुना किनारे अपने सखाओं के साथ गेंद खेल रहे थे तब उनकी गेंद यमुना नदी में चली गयी। जब वे उसे लाने यमुना पर उतरे तो कालियानाग ने उस पर आक्रमण कर दिया लेकिन बालकृष्ण ने उस पर विजय भी हासिल कर ली। तब भगवान से माफी मांँगते हुये लोगों को हानि ना पहुंँचाने का वचन देकर कालियानाग यमुना नदी को छोंड़कर अन्यत्र चला गया। कालियानाग पर भगवान कृष्ण की विजय को ही नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है।आज के दिन वासुकी नाग , तक्षक नाग , शेषनाग आदि की पूजा करने का विधान है। इस दिन लोग अपने घर के द्वार एवं दीवार पर नागों की आकृति बनाकर नागदेवता की दधि, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चाँवल आदि से पूजन आरती कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं। यदि सपेरा आये तो उसके नाग की पूजा करने का भी प्रचलन है फिर सपेरे को दक्षिणा देकर विदा किया जाता है , अंत में नाग पंचमी की कथा सुनी जाती है। ऐसी मान्यता है कि इससे नाग देवता की कृपा बनी रहती है और नाग देवता घर की सुरक्षा करते हैं। हिन्दू संस्कृति ने पशु-पक्षी, वृक्ष-वनस्पति सबके साथ आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रयत्न किया है। परन्तु नाग पंचमी जैसे दिन नाग का पूजन जब हम करते हैं, तब तो हमारी संस्कृति की विशिष्टता पराकाष्टा पर पहुंँच जाती है। प्राणीमात्र के साथ आत्मीयता साधने का हम प्रयत्न करते हैं, क्योंकि वे उपयोगी हैं। नागदेवता को भगवान शिव और विष्णु का सर्वाधिक प्रिय बताया गया है। नागदेवता देवों के देव महादेव भगवान शिव के गले की शोभा बढ़ाते हैं तो वहीं वह जगत के पालनहार भगवान विष्णु की शैय्या भी हैं। भगवान विष्णु नागदेवता की कुंडली से बनी सैय्या पर ही विश्राम करते हैं। इन सभी के कारण नागदेवता का धार्मिक महत्व काफी अधिक है। इसके साथ ही सबसे क्रूर ग्रहों में माने जाने वाले राहु को भी नाग का रूप माना जाता है। दुर्जन भी यदि भगवद् कार्य में जुड़ जाये तो प्रभु भी उसको स्वीकार करते हैं, इस बात का समर्थन शिव ने साँप को अपने गले में रखकर और विष्णु ने शेष-शयन करके किया है। इसके कारण नागदेवता का धार्मिक महत्व काफी अधिक है।आज के दिन अनेकों गाँवों व कस्बों में कुश्ती का आयोजन होता है जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में योगों के साथ साथ दोषों को भी देखा जाता है। कुंडली के दोषों में कालसर्प दोष एक बहुत ही महत्वपूर्ण दोष होता है जो कई प्रकार का होता है। जिस इंसान की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उसे पारिवारिक जीवन से लेकर व्यापार, नौकरी क्षेत्र में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। नागपंचमी का दिन कालसर्प दोष के निवारण के लिये सर्वोत्तम माना गया है। इस दोष से मुक्ति के लिये ज्योतिषाचार्य नागपंचमी पर नाग देवता की पूजा करने के साथ साथ दान दक्षिणा का महत्व बताते हैं। इस दोष की शांति के लिये नागपंचमी के दिन चांदी के नाग नागिन का जोड़ा शिवजी पर चढ़ावे नदी में चांदी के नाग नागिन का जोड़ा बहावे नाग नागिन के जोड़े को मुक्त करावे इस दिन हर घर में दीवार पर कोयले से नाग देवता का चित्र बनाकर पूजा की जाती है एवं दाल बाटी लड्डू बनाकर उसका भोग लगाया जाता है साथ ही रात्रि में घर के बाहर दूध रखा जाता है एवं इस दिन नाग देवता को दूध पिलाकर उनकी पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार नागों को पाताल लोक का स्वामी माना गया है। सांपो को क्षेत्रपाल भी कहा जाता है। सांप चूहों आदि से किसान के खेतों की रक्षा करते हैं। साथ ही नाग भूमि में बांबी बना कर रहते हैं इसलिये नागपंचमी के दिन भूलकर भी भूमि की खुदाई या खेतों में हल नही चलानी चाहिये। आज के दिन नागदेव का दर्शन अवश्य करना चाहिये। बांँबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिये। नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिये क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।
रुद्राभिषेक कराने के लाभ
वैसे तो सावन के पूरे महीने में किसी भी दिन रुद्राभिषेक करा सकते हैं , लेकिन इसके लिये नागपंचमी का दिन अत्यंत ही शुभ माना गया है। मान्यता है कि रुद्राभिषेक कराने से व्यक्ति की समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं। ज्योतिष अनुसार मनुष्य अपनी आवश्यकता अनुसार अलग-अलग पदार्थों से रुद्राभिषेक कराके मनोवांछित फल प्राप्त कर सकता है। भगवान शिव का दूध से रुद्राभिषेक कराने से परिवार में सुख शांति आने और संतान सुख की प्राप्ति की कामना पूर्ण होने की मान्यता है। भगवान शिव का अभिषेक गाय के दूध से करना चाहिये। अगर किसी कार्य को पूरा करने में बाधायें आ रही हैं तो शिव का अभिषेक दही से करने की सलाह दी जाती है , इससे कार्यों में तेजी आने लगती है। इसके साथ ही घर या प्रॉपर्टी से जुड़े लाभ भी प्राप्त होते हैं। शिव का शहद से अभिषेक करने से समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होने की मान्यता है। इससे वाणी दोष भी खत्म होता है और व्यक्ति के स्वभाव में विनम्रता आती है। जिन जातकों को टेंशन काफी ज्यादा रहती हैं और नींद की समस्या रहती है उन्हें भगवान शिव का अभिषेक इत्र से करना चाहिये, इससे जीवन में शांति आती है। भगवान शिव का अभिषेक गंगाजल से करने से मोक्ष की प्राप्ति होने की मान्यता है , ऐसे जातकों का जीवन सुख से भर जाता है। शिव का अभिषेक घी से करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। अगर कोई किसी गंभीर रोग से पीड़ित है तो उसे भगवान शिव का अभिषेक घी से करने की सलाह दी जाती है। मान्यता है जो व्यक्ति शिव का अभिषेक पंचामृत से करता है उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने या कर्ज से मुक्ति पाने के लिये भगवान शिव का अभिषेक गन्ने के रस से करने की सलाह दी जाती है। भगवान शिव का अभिषेक साफ जल से करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है भगवान शिव का सरसों के तेल से रुद्राभिषेक करने से दुश्मनों का नाश हो जाता है और व्यक्ति के साहस में वृद्धि होती है।
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