लोक कला एवं वनांचल गेड़ी नृत्य के पुरोधा पुजारी सुभाष बेलचंदन गुरुजी हुए परलोकवासी : मेनका दीदी तुंहर आशीर्वाद से लौहा लौहा आगू बढ़त हंव – सुभाष बेलचंदन
लोक कला एवं वनांचल गेड़ी नृत्य के पुरोधा पुजारी सुभाष बेलचंदन गुरुजी हुए परलोकवासी : मेनका दीदी तुंहर आशीर्वाद से लौहा लौहा आगू बढ़त हंव – सुभाष बेलचंदन
भुवन वर्मा बिलासपुर 2 जून 2021
भिलाई । वैश्विक महामारी कोरोना ने अस्मिता और स्वाभिमान पत्रिका के पहुना ऊर्जावान लोककलाकार वनांचल गेड़ी नृत्य के पुरोधा भाई सुभाष बेलचंदन आज हमसे जुदा होकर परलोक धाम चले गये । कला और साहित्य संपादक श्रीमती मेनका वर्मा भारी मन से टपकती आंसुओं की धारा से मुंह मोले भाई के लिए एक संदेश लिख भेजी है । विनम्र श्रद्धांजलि के साथ हम सबका शत शत नमनॐ शांति…. ज्ञात हो कि अस्मिता और स्वाभिमान पत्रिका के फरवरी अंक में हमारे पहुना संग गोठ बात कालम के विशेष आमंत्रित अतिथि थे ।
“एक आख़री सन्देश तुम्हारे नाम”……प्रिय सुभाष ,
अब भी, तुम्हारे लिये दिल से वही आशीर्वाद निकलता है, कि
“विश्वफलक तक तुम अपनी नेकनीयती और मेहनत से सजी, छत्तीसगढ की माटी की सोंधी महक, पहुंचाओ और महतारी के सच्चे लाल कहावो” और इसके साथ ही मान देकर तुम्हारा कहना
‘हौ दीदी तुंहर आशीर्वाद से लौहा लौहा आगू बढ़त हंव’
तो तुम्हे इस बात की जल्दबाज़ी थी?
क्या तुम जानते थे, तुम्हे जल्दी लौटना होगा..?
तुम्हारी सदा की अतिव्यस्तता, बहुत काम है दीदी..और बिल्कुल टाइम नही है। और मुझसे नये आइडियास सुनकर मैं अकेला क्या-क्या करूँ..?
सचमुच,तुम अकेले ही थे, तुम जैसा कोई और हो ही नही सकता अपनी माटी के लिये तुम्हारी चिंता,लोककलाकारों की चिंता लोककला की विकृति की खीझ, आदिवासी संस्कृति में डूबकर उसका अध्ययन और उस पर तुम्हारा शोध ,उसे संजोकर प्रस्तुत करने की तुम्हारी इच्छा ,किसी और की कभी हो ही नही सकती।
इंटरव्यू के शुरुवात में ही,हुई तुमसे पहली फोन वार्ता तुम्हारी ऊर्जा से भरी,आत्मविश्वास से लबरेज रौबदार आवाज़ और मेरे लिये ‘मैडम’ सम्बोधन कब आत्मीयता की,गुरतुर पाग में बंध गया, पता ही नही चला। ऐसा लगा, जन्मों से तुमसे मन का जुड़ाव है।
तुमने कहा – अभी दो दिन एक कार्यक्रम की तैयारी में बहुत व्यस्त हुँ, फिर आपको बताता हूँ फिर खुद ही और लोककलाकारों की इंटरव्यूज़ मंगाए और जिस दिन हमारी बातचीत होनी थी, सुबह के 6 बजे ही खुद सारे सवालों के जवाब हाथ से लिखकर पेपर की फोटो पोस्ट कर देना।कुछ और पूछना हो तो फोन पर बताऊंगा।तुम शायद कवरेज के बाहर थे, पर जिम्मेदारी के भीतर ही बने रहे।
ये, मेरे अब तक के इंटरव्यूज़ से उतना ही अलग था ,जितने तुम और सबसे अलग थे। फिर फोन पर, तुमने मैडम से दीदी बना लिया।अपने इंटरव्यू वाली
मैगजीन और पेपर लेने भी तुम, व्यस्तता में आज कल करते हुए एक रविवार की देर शाम अचानक ही आये थे। और हम आधी अंधेरी सड़क पर एक दूसरे को ढूढते अचानक कुछ इस तरह मिले…
‘हलो ..आपने जहां कहा था मैं वहीं खड़ा हूँ दीदी’
“पर मुझे क्यों नही दिख रहे…”
‘मुझे भी आप नही दिख रहीं’
“बाइक पर टिककर खड़े हो क्या..?”
‘हां ..,पर आप ..?’
“पीछे मुड़ो “तुम उल्टी दिशा में मुंह करके खड़े हो।
‘क्या नीले सूट में आप सामने से आ रही हो..?’
“हां भाई मैं ही हूँ
अन्धेरे में रंग भी दिख रहा है..? आवो… “
फिर बाइक स्टार्टकर पास आये, और मैं तुम्हारे साथ घर पर
अचानक तुम्हारे फोन से, मैं जिस तरह दौड़ी थी, साहब दरवाजे पर ही इंतजार करते मिले
उस छोटी सी, जल्दबाजी वाली मुलाकात में भी, हमने बहुत सारी चर्चा और चिंता कर ली थी।
चाय और बातचीत के बीच, कनखियों से तुम और साहब एक दूसरे को देखते और पहचानने की कोशिश करते रहे और अंततः पता चल ही गया कि ,कई बार तबले की प्रक्टिस में साथ थे। इससे हम सब थोड़ी और मजबूती से बंध गए थे। तब कहाँ पता था, ये पहली ही मुलाकात आखरी हो जाएगी।
तुम्हे पता था क्या….?
तुमने गाड़ी स्टार्ट करने के बाद फिर बन्द की थोड़ा पीछे खिसके और कहा आप लोग तो उधर आते ही हैं ,न इस बार जल्दी आना और मुझे पहले फोन करना खाना हम साथ खाएंगे। इतना प्यार और अपनापन…😢
जनधारा में तुम्हारी इंटरव्यू तुम्हारे, नये वीडियोस के साथ व्हाट्सएप पर चैट और आशीर्वाद का लेन देन चलता रहा। तुम्हारी कोरोना बचाव वाली vdo के बाद, अचानक एक दिन तुम्हारा अस्पताल से मैसेज आया,
“पिछले दस दिनों से स्पर्श अस्पताल के आईसीयू में जिंदगी और मौत से सँघर्ष कर रहा हूँ।”
पढ़कर मन अनिष्ट की आशंका से कांप उठा, तुंरत फोन लगाया पर बात नही हो पाई। एक दो और करीबी लोंगो से पता करवाने की कोशिश की, अस्पताल प्रबन्धन ने सबको वही जानकारी दी फिलहाल स्थिति खतरे से बाहर है ,सेमी आइसीयू में हैं। हो सकता है, कल तक बाहर आ जाये ।
और यही जवाब ,अगले कई दिनों वे देते रहे।इस बीच तुम्हें मैसेज भेजा मनोबल बनाये रखो,थोडा आराम कर लो, फिर बहुत काम है।बताया कि छोटे दामाद जी ,वहां जोनल इंचार्ज हैं, हम उनसे मदद लेंगे उन्होंने भी सम्पर्क बनाये रखा।
18 मई को मिला तुम्हारा मैसेज, अब तक दर्द से चीर देता है।
“जल्दी निकलवा दीदी इंहा ले”
20 मई- “हालत स्थिर हे”
और ये आखरी संवाद बन गया।
जरूर तुमने बहुत संघर्ष किया होगा…अफसोस हम प्रार्थना के सिवाय कुछ नही कर सके और तुम्हे हारते देखते रहे
🙏🏻😭
अब तुम्हारे सपनो का क्या होगा
30 से 40 विद्यार्थियों को कलाकार बनाना…
अंग्रेजी को उन बच्चों के लिये सरल करने की पहुंच में लाना…
गेंड़ीनृत्य को विश्वस्तर पर परिचित कराना…
चिलमगोटा में तुमने जो अलख जगाई, उसे दिशा कौन देगा….
तुम्हारी कठपुतली कला के लिये हमें कथा खोजनी थी…
अब तुम्हारी कठपुतलीयां, कैसे चलेंगी…
नानाजी का इन्टरव्यू अभी तुम्हारे साथ लेना बाकी था …
देवार गीत पर फिर से नए सिरे से नई जगह से खोजबीन करनी थी…
कितने सपने अधूरे रह गए
तुम सब यहीं छोड़कर चले गए
तुम्हे भूल पाना नामुमकिन है..
और बहुत ही मुश्किल तुम्हारे सपने को भूल पाना…
छतीसगढ़ महतारी के सच्चे सपुत
प्यारे भाई सुभाष…
ईश्वर तुम्हें शांति दे🙏🏻💐😔
तुम्हारी दीदी
मेनका वर्मा मौली कला साहित्य सम्पादक
अस्मिता और स्वाभिमान पत्रिका,अस्मितावेब साईड छत्तीसगढ़