राम एक रूप अनेक – आज रामनवमीं विशेष

0

राम एक रूप अनेक – आज रामनवमीं विशेष

भुवन वर्मा बिलासपुर 21 अप्रैल 2021

– अरविन्द तिवारी के कलम से

रायपुर — यह संसार एक अस्थायी सराय है , आयु एक भूलभुलैया गली है , जीवन एक तुच्छ भिक्षुक है और भक्ति एक दानशीला देवी है। आज रामनवमी के पावन अवसर पर देशवासियों को अपने जीवन में श्रीराम के चरित्र का अनुकरण करने की संदेश प्रेषित कर रहा हूंँ। श्रीराम का अनुपम चरित्र तो प्रत्येक पग पर ऐसा आदर्श प्रतिष्ठित करता है जिसके अनुकरण से लौकिक और पारलौकिक दोनों प्रकार का जीवन सफल हो जाता है। तुलसीदास ने रामचरितमानस में श्री राम को आदर्श पुत्र , शिष्य , बंधु , शत्रु एवं राजा आदि रूपों में उनके उच्च आदर्शों को निरूपित किया है और इसलिये ही वे श्री मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते हैं। श्रीराम बचपन से ही आदर्श पुत्र हैं , माता पिता की आज्ञापालक हैं तथा प्रातः काल उन्हें प्रणाम करने के बाद ही अन्य कार्य करते हैं।
” प्रातकाल उठि कै रघुनाथा , गुरु पितु मातु नवावहि माथा।”
वनगमन के पूर्व भी श्रीराम अपनी माता कैकयी से कहते हैं –
” सुनु जननी सोई सुत बड़भागी , जो पितु मातु बचन अनुरागी।”
जब अनुज लक्ष्मण वनगमन के लिये तत्पर रहते हैं तब भी प्रभु श्रीराम उन्हें समझाते हुये कहते हैं कि माता-पिता और सभी प्रजा की सेवा के लिये तुम अयोध्या में ही रहो।
” जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी , रहहु भवन अस नीति बिचारी।”
“अस जिस जानि सुनहु सिख भाई , करहु मातु पितु पद सेवकाई।”
पिता की मृत्यु के बाद भरत जी अवध का राज्य स्वीकार ना कर श्रीराम को अयोध्या लौटाने चित्रकूट जाते हैं तो कैकयी को लज्जित देखकर सर्वप्रथम नम्रता से उन्हीं से मिलते हैं।
” पग परि कीन्ह प्रबोध बहोरी , काल करम विधि सिर धरि खोरी।”
इस प्रकार श्रीराम का पुत्र के रूप में आदर्श चरित्र प्रत्येक मनुष्य के लिये चरित्र निर्माण में अनुकरणीय है। विश्वामित्र जी की यज्ञ की रक्षा के लिये पिता की आज्ञा लेकर लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम घोर घनघोर जंगल में सहर्ष चल देते हैं और यज्ञ द्रोही राक्षसों का संहार कर ऋषि का यज्ञ कार्य पूर्ण कराते हैं। गुरु के सोते समय दोनों भाई राजकुमार होते हुये भी उनके चरण दबाकर उनकी आज्ञा पाकर ही शयन करते हैं।
” बार-बार मुनि आज्ञा दीन्ही , रघुबर जाई शयन तब कीन्ही।”
विश्वामित्र के आज्ञा पर धनुष तोड़ने के पूर्व उन्हें प्रणाम कर उसे शांत भाव से ही तोड़ देते हैं।
“उठहु राम भंजहु भव चापा , मेटहू तात जनक परितापा।
सुनि गुरू बचन चरन सिरू नावा , हरषु विषादु न कछु उर आवा।”
गुरू वशिष्ठ जब राज्याभिषेक की सूचना देने श्रीराम के पास जाते हैं तो वे उनका भक्ति भाव से स्वागत करते हैं –
” गुरु आगमन सुनत रघुनाथा , झट आई पद नायऊँ माथा।”
जब लक्ष्मण जी लंका युद्ध में मूर्छित हो जाते हैं और हनुमान जी को संजीवनी लाने में देरी होते रहती है तो वे दु:खी होकर कहते हैं —
जौं जानेउ मम बंधु बिछोहू , पिता बचन मनतेउं नहीं ओहू।”
श्री राम का सीता के प्रति प्रेम भी मर्यादित हैं। जब सीता जी वन जाने को हठ करती हैं तब वे समझाते हुये उन्हें कहते हैं —
“हंस गवनि तुम निह बन जोगू , सुनि अपजसु मोहि देहहु लोगू।”
सीताहरण के समय भी श्रीराम उनके विरह में व्याकुल होकर पक्षियों और लताओं से उनकी सुधि पूछते हैं –
” हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी , देखी तुम सीता मृगनयनी।”
जब हनुमान जी सीता जी की खोज करके श्रीराम को उनका कुशल समाचार देते हैं तो वे कृतज्ञता प्रकट करते हुये कहते हैं–
” सुनु कपि तोहि समान उपकारी , नहीं कोउ सुर नर मुनि तनु धारी।”
रावण वध के पश्चात अपने मित्रों और सखाओं को अयोध्या ले जाते हैं और गुरु वशिष्ठ से कृतज्ञता प्रकट करते हुये कहते हैं —
“ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे , भये समर सागर कह बेरे।”
श्रीराम अपने शरण में आये प्रत्येक प्राणी की रक्षा के लिये भी तत्पर रहे। लंका युद्ध में जब रावण ने विभीषण पर अमोघ शक्ति छोड़ी तो प्रभु उन्हें बचाने के लिये विभीषण को पीछे धकेलकर स्वयं सामने आ गये –


“तुरंत विभीषण पाछे मेला , सम्मुख राम सहेउ सोई सोला।”
श्रीरामचंद्र जी आदर्श राजा भी थे। वनवास के समय में लक्ष्मण जी को समझाते हुये राजा का कर्तव्य बतलाते कहते हैं –
” जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ,सो नृप अवसि नरक अधिकारी।”
अस जिय जनि सुनहु सिख भाई , करहु मातु पितु पद सेवकाई।”
रावण वध के पश्चात जब श्रीरामचंद्र जी अयोध्या पहुंँचे और गुरु ने उनका राजतिलक करना चाहा तो श्रारीम ने नीति के अनुसार अपने भाईयों का ध्यान रखकर उन्हें स्वयं बड़े होकर भी नहलाते हैं —
“अन्हवाए प्रभु तीनिउ भाई , भगत बछल कृपाल रघुराई।”
इसी तरह श्री राम के साथ-साथ पवित्रता की देवी श्रीसीता जी , आज्ञाकारी योद्धा लक्ष्मण , तपस्वी भरत , सेवक हनुमानजी की जीवन चरित्र भी अनुकरणीय है।

About The Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *