संस्कार के लिये माँ सरस्वती की आराधना आवश्यक – झम्मन शास्त्री

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संस्कार के लिये माँ सरस्वती की आराधना आवश्यक – झम्मन शास्त्री

भुवन वर्मा बिलासपुर 17 फ़रवरी 2021

अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

रतनपुर — मां भगवती महामाया देवी मंदिर प्रांगण रतनपुर परिसर में गुप्त नवरात्र पर्व के पावन अवसर पर आयोजित शतचंडी महायज्ञ आराधना महोत्सव मंगलमय वातावरण में संपन्न हो रहा है , इसी क्रम में बसंत पंचमी का पावन पर्व उल्लास पूर्वक मनाया गया। श्री सरस्वती मां की आराधना पूजन के बाद यज्ञाचार्य आचार्य पंडित झम्मन शास्त्री जी महाराज ने सारगर्भित संबोधन में मां शारदा की महिमा बताते हुये कहा कि बुद्धि एवं विचार की पवित्रता के लिये ,अज्ञान कृत अंधकार के निवारण हेतु तथा सत्य ज्ञान की प्राप्ति के लिये सरस्वती मां की नित्य आराधना करनी चाहिये। विद्या की अधिष्ठात्री देवी की आज जयंती पर्व है , आज के दिन सरस्वती मां का प्राकट्य उत्सव मनाने की प्राचीन परंपरा है। भारत वर्ष धन्य है जहाँ ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश सृष्टि के आदि में प्रकट होते हैं वैसे ही आद्य शक्ति मां भगवती भी तीन रूपों में महाकाली , महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के रूप में प्रकट होती है। हमारे सनातन धर्म में 64 प्रकार की कला के साथ साथ 32 प्रकार की विद्या तथा कहीं पर 16 प्रकार की विद्या का भी वर्णन है। विद्या और कला के साथ संगीत साधना के लिये सरस्वती मां की कृपा अनिवार्य है। सद्बुद्धि पूर्वक हमारे विचारों की पवित्रता बनी रहे , हम विवेक पूर्वक सत्कर्म के मार्ग में चलकर भगवत प्राप्ति के मार्ग में सफल हों , इसके लिये आज संकल्प लेने का दिन है।

संस्कार प्रधान तथा संस्कृति प्रधान समाज एवं आदर्श राष्ट्र निर्माण के लिये मां सरस्वती से आज प्रार्थना करने का सौभाग्य सुलभ हुआ। परिवार में सुमति हो इसके लिये आवश्यक है कि सबके हित कल्याण की भावना से हम नित्य ईश्वर , धर्म और राष्ट्र भक्ति की कामना श्री चरणों में समर्पित करें। कहा गया है कि सा विद्या या विमुक्तये , आचार्य श्री ने कहा कि जहाँ ज्ञान है वहीं सार्थकता है। जिससे मुक्ति मिल जाये , ऋतेज्ञानान् मुक्तिः , दोष से, दुर्गुण से ,बुराइयो से एवं दुर्व्यसन से हम मुक्त रहें।

भौतिक शिक्षा के साथ साथ अध्यात्म ज्ञान की भी आवश्यकता है। दुर्भाग्य है कि शिक्षा पद्धति में नीति और अध्यात्म का कोई समावेश नहीं है। ऐसी शिक्षा पद्धति से बच्चे ज्ञानवान , संस्कारवान , विचारवान एवं नैतिक मूल्यों से ओतप्रोत कैसे बनेंगे। शिक्षा स्वालंबन अभियान से युक्त है। किसी के पास बुद्धि है तो सकारात्मक चिंतन से मुक्त हो तो कल्याणकारी है, नहीं तो विस्फोटक है। उसी का प्रभाव है कि आतंकवाद , उग्रवाद , नक्सलवाद , माओवाद जैसी विचारधायें इनके पास ईश्वर ,धर्म और उपासना का आलम्बन ही नहीं है । ज्ञान के साथ आचरण की पवित्रता आवश्यक है।

आचारो परमो धर्मः आचारहीनं न पुनन्तिवेदाः, विद्या से विनम्रता आती है। विद्या ददाति विनयम् , गुरुकुल परंपरा लुप्त होने से माता पिता गुरु गोविंद के प्रति आस्था कम हो गई है, समाज में अनाचार , दुराचार ,व्यभिचार , अपराध बढ़ते जा रहे हैं। पूज्यपाद गुरुदेव भगवान पुरी शंकराचार्य जी इसीलिए प्रेरणा देते हैं कि गुरु , गोविंद और ग्रंथ का बल जीवन में हो तभी जीवन सार्थक होता है। वसंत ऋतु ऋतुओं के राजा हैं। भगवान कृष्ण भी कहते हैं। ॠतुणांकुसुमाकरः , इसीलिये आज से इस महान पर्व पर हम विकृत ज्ञान विज्ञान का शोधन करें । लुप्त ज्ञान विज्ञान को प्रकट करें तथा सुत्रात्मक ज्ञान को विषद करें और परंपरा प्राप्त ऋषियों ने लाखो वर्ष पूर्व से ही विज्ञान अध्यात्म एवं व्यवहार में सामंजस्य साधकर आर्षप्रषीत ग्रंथों का प्रतिपादन किया है, इस यांत्रिकी युग में उसकी उपयोगिता सिद्ध करते हुये लेखनी के द्वारा , वाणी के द्वारा , व्यवहार के द्वारा , समाज को दिशा प्रदान करने की आवश्यकता है। इसी शैली में पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य महाभाग ने 200 ग्रंथों का लेखन कर अपने दिव्य वाणी के अमोघ प्रभाव से पूरे विश्व को प्रभावित किया है । सरस्वती मां का बीज मंत्र ( ऐं ) है ।

वाणी में दिव्यता लाने के लिये , बच्चों में स्थिर बुद्धि के लिये , अध्ययन में मन लगाने के लिये, इस मंत्र का जप अवश्य करना चाहिये। सरस्वती मां को प्रसन्न करने के लिये सात्विक भाव से त्याग , संयम, सेवा , तपस्या , साधना एवं स्वाध्याय के प्रति आस्था को बढ़ाने की आवश्यकता है ।समाज में तामस प्रवृतियां बढ़ रही है लेकिन केवल भौतिक विकास के नाम पर बहिर्मुखता बढ़ रही है जो गंभीर चिंतन का विषय है। अंत में शास्त्री जी ने कहा कि मां सरस्वती उन्हीं के ऊपर कृपा करती है जो परंपरा प्राप्त व्यासपीठ का सम्मान करते हुये उनके बताए आदर्श मार्ग का पालन करते हैं। महादिव्य आयोजन श्री मां महामाया देवी मंदिर ट्रस्ट की ओर से जनकल्याणार्थ , राष्ट्र के सर्वविध उत्कर्ष के लिये किया गया है। सभी पदाधिकारी एवं श्रद्धालु भक्तजन यज्ञ दर्शन परिक्रमा से लाभ उठाकर जीवन को धन्य बना रहे हैं। धर्म संघ पीठ परिषद ,आदित्य वाहिनी आनंद वाहिनी के सदस्य पदाधिकारी यहां पहुंचकर सेवा प्रदान कर रहे हैं। अंत में आचार्य श्री ने सभी भक्तों के लिये बसंत पंचमी की शुभ मंगलकामना प्रेषित की।

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